जिनेवा सम्मेलन

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जिनेवा सम्मेलन: प्रथम जिनेवा सम्मेलन (1864) के हस्ताक्षर व मुहर पेज; जिसमें युद्ध के मानवीय नियमों की स्थापना की गई।

जेनेवा समझौता दो देशों के बीच युद्ध के दौरान किया गया एक समझौता है जिसके अनुसार जब दो देशों के बीच युद्ध होता है और युद्ध के दौरान कोई सैनिक या नागरिक यदि सीमा पार यानि दुश्मन देश की सीमा में पहुँच जाता है, तो उस पर अंतर्राष्ट्रीय कानून लागू हो जाता है और उस सैनिक को प्रिजनर ऑफ़ वॉर भी कहा जाता है ।  इस कानून के अनुसार कुछ नियम बनाये गये हैं, जिसमें यह कहा गया है कि दुश्मन देश द्वारा उन सैनिक के साथ कैसा बर्ताव किया जाना चाहिए एवं सैनिक को उसके देश में वापस कैसे भेजना चाहिए ।  

जिनेवा सम्मेलनों में चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल (मसौदे) शामिल हैं जो युद्ध के मानवीय उपचार के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के मानकों को स्थापित करते हैं। एकवचन शब्द जिनेवा सम्मेलन, द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के बाद बातचीत के जरिए 1949 के समझौतों को दर्शाता है, जिसमें पहली तीन संधियों (1864, 1906, 1929) की शर्तों को अद्यतन (अपडेट) किया गया और चौथी संधि जोड़ी गयी। चौथे जिनेवा सम्मेलन (1949) के अनुच्छेदों में बड़े पैमाने पर कैदियों के युद्धकालीन बुनियादी अधिकारों (नागरिक और सैन्य) को परिभाषित किया गया; युद्ध क्षेत्र में और आसपास के क्षेत्र में नागरिकों और घायलों के लिए सुरक्षा स्थापित किये जाने की व्यवस्था दी। 1949 की संधियों का 194 देशों ने पूर्णतः या अपवादों के साथ अनुमोदन किया।[१]

इतिहास

जेनेवा कन्वेंशन की चर्चा सोलफेरिनो युद्ध के दौरान हुई थी।मुख्यतः लड़ाई फ्रांस व ऑस्ट्रिया के बीच 1859 में-हुई थी।इस युद्ध का नेतृत्व फ्रांस की तरफ से नेपोलियन तृतीय कर रहे थे।रेडक्रॉस के संस्थापक हेनरी डूरेंट ने जब युद्ध स्थल का दौरा किया तो इस रक्तपात को देखकर उनका हृदय विचलित हो उठा जिससे बाद ही उन्होंने रेडक्रॉस नामक संगठन की स्थापना की थी।इस अच्छे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही जनेवा में अन्य यूरोपीय देशों की बैठक हुई वह इस पर बातचीत संभव है जिसे जनेवा कन्वेंशन का नाम दिया गया।इसका मुख्य उद्देश्य यह रखा की युद्ध में इतनी क्रूरता ना बरती जाए कि इंसानियत व मानवाधिकार को शर्मसार होना पड़े।

इसके प्रमुख चार चरण इस प्रकार हैं:-

प्रथम चरण 1864 जिनेवा कन्वेंशन

  • पहला जेनेवा कन्वेंशन सम्मेलन 22 अगस्त 1864 को हुआ था
  • इसमें चार प्रमुख संधि व तीन प्रोटोकॉल का उल्लेख किया गया है।
  • इसमें युद्ध के दौरान घायल और बीमार सैनिकों को सुरक्षा प्रदान करना था।
  • इसके अलावा इसमें चिकित्सा कर्मियों धार्मिक लोगों व चिकित्सा परिवहन की सुरक्षा की भी व्यवस्था की गई।

दूसरा चरण 1906 का जेनेवा कन्वेंशन

  • इसमें समुद्री युद्ध और उससे जुड़े प्रावधानों को शामिल किया गया
  • इसमें समुद्र में घायल, बीमार और जलपोत वाले सैन्य कर्मियों की रक्षा और उनके अधिकारों की बात की गई

तीसरा चरण 1929 का जेनेवा कन्वेंशन

  • यह युद्ध के कैदियों यानी युद्ध बंदियों पर लागू हुआ है जिन्हें प्रिजनर ऑफ वाॅर कहा गया है।
  • इस कन्वेंशन में कैद की स्थिति  और उनके स्थान की सटीक रूप से परिभाषित किया गया है।
  • इसमें युद्ध बंदियों के श्रम,वित्तीय संसाधनों का ज़िक्र और राहत और न्यायिक कार्रवाई के संबंध में व्यवस्था की गई है।
  • इसमें युद्ध बंदियों को बिना देरी के रिहा करने का भी प्रावधान किया गया है।

चौथा चरण 1949 का जेनेवा कन्वेंशन

  • इसमें युद्ध वाले क्षेत्र के साथ-साथ वहां के नागरिकों का संरक्षण का भी प्रावधान किया गया।
  • इसमें युद्ध के आसपास के क्षेत्रों में भी नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण का प्रावधान किया गया है ताकि किसी भी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन ना किया जा सके।
  • चौथा जेनेवा कन्वेंशन के नियम व कानून 21 अक्टूबर 1950 से लागू किए गए।

वर्तमान में जेनेवा कन्वेंशन को मानने वाले देशों की सदस्य संख्या 194 है।

जेनेवा संधि से जुड़े तथ्य

  • जेनेवा समझौते में दिए गए अनुच्छेद 3 के मुताबिक युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदी का अच्छे तरीके से उपचार होना चाहिए.
  • युद्धबंदियों (POW) के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए साथ ही सैनिकों को कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होगी।
  • इसमें साफ तौर पर ये बताया गया है कि युद्धबंदियों (POW) के क्या अधिकार हैं,साथ ही समझौते में युद्ध क्षेत्र में घायलों की उचित देखरेख और आम लोगों की सुरक्षा की बात कही गई है।
  • इस संधि के तहत घायल सैनिक की उचित देखरेख की जाती है।
  • इस संधि के तहत उन्हें खाना पीना और जरूरत की सभी चीजें दी जाती है।
  • इस संधि के मुताबिक किसी भी युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव नहीं किया जा सकता।
  • किसी देश का सैनिक जैसे ही पकड़ा जाता है उस पर ये संधि लागू होती है (फिर चाहे वह स्‍त्री हो या पुरुष)।
  • संधि के मुताबिक युद्धबंदी को डराया-धमकाया नहीं जा सकता।
  • युद्धबंदी की जाति,धर्म, जन्‍म आदि बातों के बारे में नहीं पूछा जाता।

सन्दर्भ