जिझौतिया ब्राह्मण

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जिझौतिया ब्राह्मण मूलतः जिझौति खंड(वर्तमान में बुन्देलखण्ड) क्षेत्र के ब्राह्मण है। वास्तव में ये उत्तर वैदिक काल से यजुर्वेद के पारंगत शाखा के वैदिक ब्राह्मण हैं इनका क्षेत्र बड़ा विस्तृत और महत्वपूर्ण रहा है उत्तर में यमुना,दक्षिण में नर्मदा,पूर्व में तमस नदी और पश्चिम में चम्बल वास्तव में जिझौति प्रांत यजुर्होति का ही अपभ्रंश है जो बाद में जेजुर्होति,जेजाहूति,जिझौति, जेजाकभुक्ति क्षेत्र के नाम से ख्यात हुआ है।जिझौतिया ब्राह्मण विशुद्ध वैदिक ब्राह्मण है जो शुद्ध निरामिषी हैं ।संस्कृत में पारंगत और नागर शैली और देवनागरी लिपि के अविष्कारक रहे हैं।बौद्ध धर्म से वैदिक धर्म की रक्षा में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। शुंग,वाकाटकों,नागवंश,सातवाहन और कण्व वंश से इनका सम्बंध रहा है वर्तमान सनातन संस्कृति का जो स्वरूप है उसमें जिझौतिया ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण योगदान है । ये बड़ी ही वीर और जुझारू जाति रही है जिसे कालान्तर में खंगारों ने बड़ा सम्मान दिया । ब्राह्मण वंश वाकाटकों का मूल पन्ना मध्यप्रदेश का किल-किल प्रदेश ही माना गया है।जब ह्वेनसांग चीनी यात्री 631वीं शती भारत आया तो उसने अपने यात्रावृतांत में मध्यभारत के जेजाहूति प्रांत में ब्राह्मण राज्य का उल्लेख किया है।उसने वहाँ के रहने वालों को निरामिषी व्यंजनों का प्रिय,श्वेत वस्त्रों का अधिकतम प्रयोग,शुद्ध संस्कृत बोलने वालों और दुनिया की विकसित नागरशैली में विकसित नगरों का वर्णन किया है। सन 1182 में वीर खंगार राजा खेतसिंह ने भी अपने राज्य का " जिझौति खण्ड" नाम ही रखा था और प्रत्येक नागरिकों को जूझने,युद्धकौशल की और वीरता का समावेशी समाज बनाने का सफल प्रयास किया था । जो 165 वर्षो तक चला 30 वर्षों तक गुप्त रूप से शासन किया छापामार युद्ध लड़ लड़कर जिझौतिया ब्राह्मणों में वर्तमान में 75 आस्पद चलते हैं । 18 वीं सदी में अंग्रेजों के डाक्यूमेंट्स पर इस क्षेत्र का नाम बुंदेलखंड आया जिसे भारतीय सिनेमा पुस्तकों साहित्य में भी स्थान से प्रचार प्रसार मिला इस क्षेत्र में बोलचाल में ब्राह्मण आज भी महाराज की उपाधि से विभूषित होते हैं ।वर्तमान में हिन्दू संस्कृति,शौर्य के साथ इस क्षेत्र में सुरक्षित है संरक्षित हैं।जिझौतिया ब्राह्मण इस क्षेत्र का मूल ब्राह्मण माना गया है।यह ब्राह्मण अपने आपको जिझौतिया ब्राह्मण कहकर क्षेत्रीय पहचान और ऐतिहासिक महत्व से जोड़ते हैं। नचना-कुठार पन्ना क्षेत्र के नागवंशी राजा भारशिव ने दस अश्वमेध यज्ञ कर वाराणसी का दशास्वमेध घाट बनवाया था। छठी शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस क्षेत्र को विश्व के अतिविकसित क्षेत्रों मे से एक माना था उसके लेख के अनुसार यहाँ नागर शैली में विकसित शहर, शुद्ध संस्कृत भाषा बोलने बाले,निरामिषी व्यंजनों का प्रयोग करने वाले और श्वेत वस्त्र धारण करने वाले लोगों की विकसित सभ्यता थी।

जिझौतिया ब्राह्मणों के इतिहास की रूपरेखा पंडित गोरेलाल तिवारी १९५२ खण्ड २

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