जान जेशुआ केटलेर

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साँचा:merge जान जेशुआ केटलेर (1659-1718) डच भाषी केटलेर व्यापार के लिए सूरत शहर में आए। व्यापार के लिए इन्हें सूरत से दिल्ली, आगरा और लाहौर आना पड़ता था। भारत आने के बाद इन्होंने हिन्दी सीखी तथा अपने देश के लोगों के लिए डच भाषा में हिन्दुस्तानी भाषा का व्याकरण लिखा। इस डच मूल की नकल इसाक फान दर हूफ (Isaac Van der Hoeve) नामक हॉलैण्डवासी ने सन् 1698 ईसवी में की। इसका अनुवाद दावीद मिल ने लैटिन भाषा में किया। हॉलैण्ड के लाइडन नगर से लैटिन भाषा में सन् 1743 ईस्वी में यह पुस्तक प्रकाशित हुई। इस प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति कोलकता की नेशनल लाईब्रेरी में उपलब्ध है।

इस व्याकरण का विवरण सर्वप्रथम डॉ॰ ग्रियर्सन ने प्रस्तुत किया ः-

‘‘अब हम पहले हिन्दुस्तानी व्याकरण पर आते हैं। जान जेशुआ केटलेर (यह कोटलर, केसलर तथा केटलर भी लिखा जाता है) धर्म से लूथरन थे। इन्होंने शाह आलम बहादुर शाह तथा जहाँदरशाह से डच प्रतिनिधि के रूप में मान्यता प्राप्त की थी। (1)

डॉ॰ ग्रियर्सन ने अनुमान के आधार पर इसका रचनाकाल सन् 1715 माना है किन्तु वास्तव में इसका रचनाकाल सन् 1698 के पूर्व का है।

डॉ॰ सुनीति कुमार चाटुर्ज्या ने अपने निबंध संग्रह ‘ऋतम्भरा' में इस कृति के

सम्बन्ध में परिचय एवं विवरण प्रस्तुत किया। डॉ॰ चाटुर्ज्या के लेख का शीर्षक है - ‘हिन्दुस्तानी का सबसे प्राचीन व्याकरण'। डॉ॰ चाटुर्ज्या का इसके रचनाकाल के सम्बन्ध में अभिमत है -

‘‘हालैंड के लाइडन नगर में कर्न इंस्टीट्यूट् नामक एक नवीन सभा है। यह भारत तथा बृहत्तर भारत की संस्कृति की आलोचना के लिए स्थापित की गई है। उसके मुख्य अधिष्ठाता स्वनामधन्य पंडित डाक्टर फांगल ने स्वयं एक पत्र लिखकर केटलेर के व्याकरण के विषय में बहुत कुछ तथ्य बताये हैं। उनसे पता चलता है कि केटलेर ने हिन्दुस्तानी और फारसी दोनों भाषाओं के व्याकरण डच भाषा में लिखे थे। डच मूल की एक नकल इसाक फान दर हूफ (Isaac Van der Hoeve) नामक हालैंडवासी ने सन् 1698 ई0 में लखनऊ में की थी। यह पुस्तक हालैण्ड के हाग (Hague) नगर के पुराने राजकीय पत्रों के संग्रहालय में सुरक्षित है। (2)

प्रस्तुत लेखक ने जुलाई 1985 में नीदरलैण्ड्स की यात्रा के दौरान पुस्तक की प्रति का अवलोकन किया। प्रति का मुख पृष्ठ निम्न है ः-

"instructe off onderwij singe der hindostane en persianse talen nevens hare declinatie en conjugative etc. door joan josua katelaar, Ellingensem en Gekopiert door Isaacq Van Der Hoeve Van Utreght tot Gechenawe A. 1698.

हिन्दी के कुछ विद्धानों में यह भ्रान्त धारणा है कि केटलेर ने इस व्याकरण की रचना सूरत के आसपास व्यापारी वर्ग में प्रचलित हिन्दी के आधार पर की थी। इस भ्रान्त धारणा का निराकरण हिन्दी में सर्वप्रथम डॉ॰ उदयनारायण तिवारी एवं श्री मैथ्यु वेच्चुर ने किया। इस कृति के सम्बन्ध में डॉ॰ उदयनारायण तिवारी के विचार प्रस्तुत करना समीचीन होगा ः-

‘‘............... केटलेर कृत ‘‘हिन्दुस्तानी भाषा की रचना आगरे में हुई थी। अतएव इस पर ब्रजभाषा एवं पश्चिमी हिन्दी का प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है।........ केटलेर का व्याकरण अति संक्षिप्त है। यह लगभग 30 पृष्ठों का है किन्तु इसमें हिन्दी सीखने वालों के लिए प्रायः सभी आवश्यक बातों का समावेश है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि इसमें अति प्रयुक्त क्रियाओं की रूपरेखा, ‘कालरचना-सारिनी' सहित, दी गई है। पुस्तक के अन्त में प्रार्थनाओं का हिन्दुस्तानी अनुवाद भी दिया गया है। इनमें ‘‘दस नियम', ‘‘प्रेरितों का विश्वास और ‘‘हे पिता के अनुवाद उपलब्ध हैं। जैसा मैंने ऊपर कहा है, इन गद्यांशों में आगरे की हिन्दी या खड़ी बोली का आरम्भिक रूप देखा जा सकता है और उस पर ब्रज-भाषा का प्रभाव भी दिखाई पड़ता है। (3)

श्री मैथ्यु वेच्चूर ने कोलकता की नेशनल लाइब्रेरी में इस कृति के लैटिन अनुवाद को आधार बनाकर इसका हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है। (4)

इसकी भाषा में कहीं-कहीं अशुद्ध रूप मिलते हैं जैसे ‘‘मैं के स्थान पर ‘‘मे, ‘‘तुम्हारा के स्थान पर ‘‘तोम्मारा तथा ‘‘तुम के स्थान पर ‘‘तोम। ‘ने' परसर्ग का प्रयोग नहीं हुआ है। ‘‘इसने के स्थान पर ‘‘इन्ने, ‘‘मुझको के स्थान पर ‘‘मुकों (मोकों), ‘‘नहीं के स्थान पर ‘‘नई का प्रयोग हुआ है जो आगरे में बोली जाने वाली स्थानीय हिन्दी के प्रभाव का द्योतक है। अनूदित प्रार्थनाओं में से एक उदाहरण प्रस्तुत है, ‘‘मे है साहेब तोम्मारा अल्ला, वह जो तोम एजिप्ति गुलामी से निकाल ले गया, तोम और अल्लाहे मेरा बराबर मत लीजियो। (मैं प्रभु तुम्हारा ईश्वर हूँ, जो तुम्हे मिस्र देश की दासता से निकालकर ले आया, मेरे सिवाय तुम और किसी ईश्वर को न मानना)