छत्तीसगढ़ राज्य के पर्यटन स्थल

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छत्तीसगढ़ के जलप्रपात

छत्तीसगढ़ में उत्तरी और दक्षिणी में पर्वत पठार उपस्थिति के कारण जल प्रपात का निर्माण होता है।

1. बलरामपुर जिला

  • कोठली जलप्रपात : कन्हार नदी पर
  • पवई जलप्रपात : पवई नदी पर

2. सरगुजा जिला

  • रक्सगण्डा जलप्रपात : रेड नदी पर
  • सरभंजा जलप्रपात : मांड नदी पर (मैनपाट क्षेत्र में )

3. कोरिया जिला

  • अमृतधारा जलप्रपात : हसदेव नदी पर
  • अकुरी नाला जलप्रपात : इसे कोरिया का एयरकंडीशनर कहा जाता है
  • गावर घाट : हसदेव नदी पर

4. कोरबा जिला

  • केंदई जलप्रपात : केंदई नदी पर

5. रायगढ़ जिला

  • राम झरना

6. जशपुर जिला

  • रानीदाह जलप्रपात
  • राजपुरी जलप्रपात
  • दमेरा जलप्रपात
  • खुड़िया रानी जलप्रपात

7. महासमुंद जिला

  • सातदेव धारा : बलमदेई नदी पर

8. गरियाबंद जिला

  • गोदना जलप्रपात : उदयन्ति नदी के तट पर

9. कांकेर

  • मलाज कुडूम जलप्रपात : दूध नदी पर

10. नारायणपुर

  • चर्रे मर्रे जलप्रपात :  अंतागढ़ आमाबेड़ा वन मार्ग पर
  • खुरसेल जलप्रपात : खुरसेल घाटी पर

11. बस्तर

  • चित्रकूट जलप्रपात : इंद्रावती नदी पर
  • तीरथगढ़ जलप्रपात
  • कांगेरधारा जलप्रपात : कांगेर नदी पर
  • चित्रधारा जलप्रपात
  • महादेव घुमर जलप्रपात
  • तामड़ा घुमर जलप्रपात

12. दंतेवाड़ा

  • सूरतगढ़ जलप्रपात : डंकिनी नदी पर
  • मेदनी घुमर जलप्रपात : हठी दरहा प्रपात भी कहा जाता है

13. सुकमा

  • गुप्तेश्वर जलप्रपात : शबरी नदी पर
  • मल्गेर  जलप्रपात : मल्गेर नदी पर

14. बीजापुर

  • सातधारा  जलप्रपात : इंद्रावती नदी पर

चित्रकोट जलप्रपात :

जगदलपुर से 40 कि.मी. और रायपुर से 273 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह जलप्रपात छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा, सबसे चौड़ा और सबसे ज्यादा जल की मात्रा प्रवाहित करने वाला जलप्रपात है। यहां इंद्रावती नदी का जल प्रवाह लगभग 90 फुट ऊंचाई से नीचे गिरता है। सधन वृक्षों एवं विध्य पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित इस जल प्रपात से गिरने वाली विशाल जलराशि पर्यटकों का मन मोह लेती हैं |

भारतीय नियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध चित्रकोट वैसे तो प्रत्येक मौसम में दर्शनीय है, परंतु बरसात के मौसम में इसे देखना रोमांचकारी अनुभव होता है। बारिश में ऊंचाई से विशाल जलराशि की गर्जना रोमांच और सिहरन पैदा कर देता है। चित्रकोट जलप्रपात के आसपास घने वन है, जो कि उसकी प्राकृतिक सौंदर्यता को और बढ़ा देती है।

500 मीटर से ज्यादा चौड़ा : जलप्रपात की चौड़ाई 500 मी. से भी ज्यादा है, घोड़े के नाल के आकार का यह जलप्रपात बारिश के दिनों में बेहद खूबसूरत नजर आता है। चांदनी रात में यहां का सौंदर्य देखते ही बनता है। बारिश में नदी का मटमैला पानी रात में लालिमा लिए नजर आता है। 7 स्थानों से गिरता है इंद्रावती का पानी : कभी सामान्य दिनों में 7 से ज्यादा स्थानों से पानी गिरते हुए विहंगम जलप्रपात का दृश्य बनाता था। अक्टूबर नवंबर में इसका दूधिया स्वरूप मन मोह लेता है। सूर्य की रौशनी में इस जलप्रपात से उड़ती महीन बूंदों में इंद्रधनुष भी नजर आता है। इसी समय यहां काफी भीड़ जुटती है। साल भर में यहां दो लाख से ज्यादा सैलानी पहुंचते हैं।

तीरथगढ़ जलप्रपात

तीरथगढ़ के झरने छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले में कांगेर घाटी पर स्थित हैं। ये झरने जगदलपुर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में 35 कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं।

  • "कांगेर घाटी के जादूगर" के नाम से मशहूर तीरथगढ़ झरने भारत के सबसे ऊँचे झरनों में से हैं।
  • छत्तीसगढ़ के सबसे ऊंचे जलप्रपात में इसे गिना जाता है। यहां 300 फुट ऊपर से पानी नीचे गिरता है।
  • कांगेर और उसकी सहायक नदियां 'मनुगा' और 'बहार' मिलकर इस सुंदर जलप्रपात का निर्माण करती हैं।
  • विशाल जलराशि के साथ इतनी ऊंचाई से भीषण गर्जना के साथ गिरती सफ़ेद रंग की जलधारा यहां आए पर्यटकों को एक अनोखा अनुभव प्रदान करती है।
  • तीरथगढ़ जलप्रपात को देखने का सबसे अच्छा समय वर्षा के मौसम के साथ-साथ अक्टूबर से अप्रैल तक का है।

कांगेर धारा जलप्रपात

कांगेर धारा जलप्रपात छत्तीसगढ़ के जगदलपुर ज़िले में 'कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान' में स्थित है। इस जलप्रपात की ऊंचाई 20 फुट है।

  • कांगेर घाटी से होकर गुजरने वाली कांगेर नदी पर स्थित इस जलप्रपात का पानी स्वच्छ रहता है।
  • कांगेर नदी के 'भैसादरहा' नामक स्थान पर मगरमच्छ प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं।
  • यह जलप्रपात 'कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान', जगदलपुर से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • कांगेर धारा जलप्रपात तक पहुँचने के लिए उद्यान के द्वार पर स्थित 'ज़िला वन कार्यालय' की अनुमति और टिकट लेना होता है।
  • कांगेर घाटी की गोद में होने के नाते इस जलप्रपात की धारा वास्तव में लहराती हुई चट्टानों के बीच कांगेर नदी से निकलती है।
  • भूवैज्ञानिक मानते हैं कि यह इलाका तलछटी भूभाग था, जिसमें आगे चलकर जलती हुई चट्टाने आ गईं, जिसकी वजह से इलाका टेढ़ी-मेढ़ी आकृति का हो गया।

तामड़ा घूमर जलप्रपात

तामड़ा घूमर जलप्रपात बस्तर जिले में स्थित है। तामड़ा घूमर जलप्रपात जगदलपुर से 45 किमी दूर स्थित है और चित्राकोट जलप्रपात के पास स्थित लोहंडीगुडा ब्लॉक में स्थित है। तामड़ा घूमर जलप्रपात का मुख्य स्रोत शुद्ध बारिश का पानी है। तामड़ा घूमर जलप्रपात एक घोड़े का जूता आकार बनाता है जिसमें लगभग 100 मीटर की ऊंचाई वाली एक सुंदर परिदृश्य है जिसमें हरे भरे हरे और आंखों के आकर्षक स्थान हैं।

  • जगदलपुर-चित्रकोट मार्ग पर चित्रकोट पहुंचने से महज 3 किमी पहले बायी तरफ मारडूम-बारसूर के लिए जाने वाली सड़क पकड़नी होगी। फिर करीब 4 किमी आगे बढ़ते ही दाहिने तरफ जापानी स्टाइल वाले पैगोड़े नजर आएंगे, बस वहीं ठहरकर नजारे का लुत्फ उठाएं। और हां, थोड़ी सी सावधानी रखने की जरूरत है, वरना खाई काफी गहरी है।
  • तामड़ा घूमर दरअसल स्थानीय बोली हल्बी का शब्द है। तामड़ा यानि टटोलने की क्रिया और घूमर का अर्थ जलप्रपात।  झरना गहरी घाटियों, वन भूमि और पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जिससे दर्शक दर्शकों के लिए एक अतिरिक्त लाभ बनाते हैं। एक गैर छुआ क्षेत्र में होने के नाते, झरना का पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका ट्रेक या एक सुंदर ड्राइव लेना है।

अमृतधारा जलप्रपात

अमृतधारा जल प्रपात छत्तीसगढ़ राज्य के कोरिया ज़िले में स्थित है। सम्पूर्ण भारत में कोरिया को प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। इस ज़िले को प्रकृति ने अपनी अमूल्य निधियों से सजाया और सँवारा है। यहाँ चारों ओर प्रकृति के मनोरम दृश्य बिखरे पड़े हैं। इन्हीं में से एक 'अमृतधारा जल प्रपात' है, जो कि हसदो नदी पर स्थित है।

प्रपात की सुन्दरता

कोरिया ज़िला अपने पूरे घने जंगलों, पहाड़ों, नदियों और झरनों से भरा पड़ा है। अमृतधारा प्रपात कोरिया में सबसे प्रसिद्ध प्रपातों मे से एक है। छत्तीसगढ़ में कोरिया भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान एक रियासत थी। अमृतधारा जल प्रपात एक प्राकृतिक झरना है, जहाँ से हसदो नदी का जल गिरता है। यह झरना मनेन्द्रगढ़-बैकुन्ठपुर सड़क पर स्थित है। भारत के छत्तीसगढ़ में अमृतधारा प्रपात कोरिया ज़िले में है, जिसका जल 90 फीट की ऊंचाई से गिरता है। वह बिंदु जहाँ पानी गिरता है, वहाँ एक बड़ा ही प्यारा-सा बादल के जैसा माहौल चारों ओर बन जाता है, जिससे प्रपात की सुन्दरता में चार चाँद लग जाते हैं।

शिव मंदिर

अमृतधारा जल प्रपात एक बहुत ही शुभ शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस जगह के आस-पास एक बहुत प्रसिद्ध मेला हर साल आयोजित किया जाता है। मेले का आयोजन रामानुज प्रताप सिंह जूदेव, जो कोरिया राज्य के राजा थे, ने वर्ष 1936 में किया गया था। महाशिवरात्रि के उत्सव के दौरान इस जगह मे मेले का आयोजन होता है, जिस दौरान यहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उपस्थित होती है।

रकसगण्डा जल प्रपात

ओडगी विकासखंड में बिहारपुर के निकट बलंगी नामक स्थान के समीप स्थित रेंहड नदी पर्वत श्रृखला की उंचाई से गिरकर रकसगण्डा जल प्रपात का निर्माण करती है जिससे वहां एक संकरे कुंड का निर्माण होता हैं यह कुंड अत्यंत गहरा है।

इस कुंड से एक सुरंग निकलकर लगभग 100 मीटर तक गई है। यह सुरंग जहां समाप्त होता है, वहां एक विशाल जलकुंड बन गया है।

रकसगण्डा जल प्रपात अपनी विलक्षणता एवं प्राकृतिक सौंन्दर्य के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। रियासत काल में अंग्रेज यहां मछलियों क शिकार करने जाया करते थे।

मलाजकुण्डम जलप्रपात

मलाजकुंडम दूध नदी का जलप्रपात है। इस जलप्रपात का दृश्य नीचे से मनोहारी लगता है। पूरी जलराशि अलग-अलग चरणो मे नीचे तक आती है। चारों ओर हरियाली इसके सौंदर्य को और निखारती है। बडी जलराशि की धार जब नीचे आती है तो सैकडों फुहारें अपने साथ लाती है। जलराशि कहां से आ रही है यह जानने की उत्कंठा चट्टानो पर उपर चढने को मजबुर कर देती है। उपर चढने पर नीचे छोटी सी घाटी का अलग रूप देखने को मिलता है। उपर जाने पर दूध नदी का उद्गम स्थल मिलता है। यही से धारा निकलती है और पहाडी से नीचे आकर नदी का रूप धारण करती है।

  • जलप्रपात नीचे आकर एक स्थान पर इकट्ठा होकर कुंड का रूप बनाता है। इसीलिये इसका नाम मलाजकुंडम पडा।
  • बस्तर का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले कांकेर जिला मे स्थित है मलाजकुंडम जलप्रपात। कांकेर, रायपुर से राष्ट्रीय राजमार्ग 43 पर 140 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। वहां से बस्तर की ओर आगे बढने पर 16कि.मी. राजमार्ग से दाई ओर जाने पर मलाजकुंडम जलप्रपातहै।
  • मुख्य सडक से अंदर जाने पर कुछ ही दूरी पर जंगल प्रारंभ हो जाता है। यही रास्ते मे जल धारा मिलती है। कांकेर से 16 किलोमीटर दूर दूध नदी सुन्दर जलप्रपात का निर्माण करती है। यहां नदी तीन चरण में प्रपात का निर्माण करती है। इन झरनों की क्रमश: ऊंचाई 30, 45, एवं 27 फिट है।

जतमई घटारानी, रायपुर, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 80 किलोमीटर दूर जतमई पहाड़ी पर माता जतमई मंदिर स्थित है, जिसे ‘जतमई घटारानी मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। माता जतमई को समर्पित इस अद्भुत मन्दिर की बहुत अधिक मान्यता है। अत्यंत आश्चर्यजनक बात यह कि जतमई पहाड़ी 200 मीटर क्षेत्र में फैली हुई है और 70 मीटर ऊँची है, और इसी पहाड़ी पर जतमई घटारानी का मंदिर ऊँचे जलप्रपात के किनारों पर स्थित है।

यहाँ शिखर पर विशालकाय पत्थर एक-दूसरे के ऊपर इस प्रकार सटे हुए हैं, जैसे किसी शिल्पकार के द्वारा जमाये गये हों। घटारानी प्रपात तक पहुँचना आसान नहीं है, अतः पर्यटकों के लिए वहाँ तक पहुँचने के पर्याप्त साधन जुटाए गए हैं। मन्दिर अत्यंत सावधानी और ख़ूबसूरती से जलप्रपात के समीप प्रकृति की गोद में, पटेवा के समीप ग्रेनाइट के बहुत-से छोटे शिखरों और एक बहुत ही विशाल शिखर में खुदा हुआ है।

घटारानी के समीप ही एकमुखी तिरछा शिवलिंग स्थापित है, जिसे ‘टानेश्वरनाथ महादेव’ कहा जाता है और जिसके दर्शन करने के लिए यहाँ भक्तगण लालायित रहते हैं। इस शिवलिंग के बारे में एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है – कहा जाता है कि फिंगेश्वर के मालगुजार इसे अपने साथ ले जाना चाहते थे, लेकिन वे जितनी खुदाई करते शिवलिंग और गहरा होता चला जाता, आखिरकार थक-हारकर उन्होंने वह शिवलिंग वहीं छोड़ दिया। तभी से यह शिवलिंग टेढ़ा है।