चुंडावत
चुंडावत एक राजपूत वंश हैं और 1700 ई० के दौरान मेवाड़ क्षेत्र में शक्तिशाली प्रमुख थे।[१] वे 15 वीं शताब्दी के मेवाड़ी राजकुमार चुंडा सिसोदिया के वंशज हैं, जो राणा लाखा के सबसे बड़े पुत्र थे। अपने छोटे भाई मोकल सिंह के सिंहासन पर अपना अधिकार समर्पण करने के बाद, चुंडा ने अपने वंशजों के लिए राज्य के मामलों के साथ-साथ शाही परिषद पर एक अतिशयोक्तिपूर्ण पद पर राणा को सलाह देने का अधिकार प्राप्त किया।[२]
चुंडावतों की उपशाखाएँ
चूण्डावतों की मुख्यतः 12 शाखाएं हैं किन्तु अब तक कहीं इतिहास में किसी इतिहासकार के इस और ध्यान न देने और कुछ ठिकानो की संखिया कम होने की वजह से लोग अक्सर चूण्डावतों की केवल (कृष्णावत,मेघावत जग्गावत,सांगावत) 4 शाखाएं होने का दावा लोग करते हैं, जो की पूर्ण असत्य है l यही कारण है की बाकि अन्य शाखा वाले चूण्डावत अनजाने में अपने नजदीकी बड़े ठिकाने जो इन 4 शाखाओं में से एक हैं, उनकी शाखा को अपनी शाखा बता कर अपने वास्तविक पूर्वजों का अपमान कर बैठते हैं, लेकिन अब हमने यहाँ पर इतिहास को पूरा खोल कर सबकी सुविधा के लिए सबकुछ उजागर करने की कोशिश करी है ।
सर्वप्रथम वंश होता है (सिसोदिया), तत्पश्चात कुल (चूण्डावत), उसके बाद खांप (कृष्णावत, मेघालय, जग्गावत, सांगावत आदि आदि), उसके बाद आता है नख (यह अक्सर विस्तृत और बहुत बड़े फ़ैल चुकी खांप में ही देखा जाता है अन्यथा नहीं) इससे आप अनुमान लगा सकते हैं की हमारे पूर्वज कितने बुद्धिमान होते थे विवाह सम्बन्ध आदि सन्दर्भ में l बाकि यह सिर्फ हमारा ही अभिमान है जिसने उनकी स्थापित व्यवस्था को गलत अर्थ में उपयोग में लाये और समाज में विघटन हो गया l नीचे हमने इसी का एक चित्र भी दिया है देखें -
अब जानिए की यह व्यवस्था क्यूँ स्थापित हुई l सभी चूण्डावत वस्तुतः सिसोदिया हैं, और उससे उपर उठ कर सोचो तो हम सब सिसोदिया नहीं वरण एक महान ''हिन्दू'' साम्राज्य का एक मजबूत स्तम्भ हैं जिसे लोग वीर ''राजपूत'' वर्ण कहते हैं। तो फिर हूँ ''चूण्डावत'' क्यूँ हैं ? हम सिसोदिया क्यूँ हैं ? सभी राजपूत क्यूँ नहीं लिख सकते ? इसका भी कारण वैज्ञानिक है की समस्त हिन्दु समाज और उसके एक अंग राजपूतों में हमेशा से ही दूर के परिवार में रिश्ता करने की व्यवस्था रही है जो की परंपरा की आड़ में हमारे मानसिक और शारीरिक विकास के लिए अतियंत आवश्यक रही है, इसका नाम मेवाड़ी में ''साख पल्टियो'' कहते हैं l अर्थात यदि किसी राठौर वर की शादी किसी चौहान वधु से हो रही हो और यदि दोनों के ननिहाल पक्ष या फूल नहिहल (माता का ननिहाल) एक हो जैसे की चूण्डावत हो तो विवाह करना परम्परानुकुल असंभव है क्यूंकि उससे न तो महान संतान उत्पन्न होगी और साथ ही वह नजदीकी रिश्तेदार होने के नाते राजपूत निति के अनुसार दूर के भाई-बहन ही कहलाते हैं l किन्तु यदि उनके ननिहाल में भिन्न शाखा होगी (साख पल्टियो) तो वह विवाह हो सकता है, जैसे की राठोड वर जग्गावत चूण्डावातों का भाणेज हो और वधु सांगावत चूण्डावातों की भाणेज हो l
अब सभी को यह भी मान लेना चाहिए की यदि शाखाओं को उचित तरीके से नहीं जाना और समझा जायेगा तो अच्छे रिश्ते होने से बच सकते हैं और अनुचित रिश्ते गलती से हो भी सकते हैं l जैसे की यदि राठोड वर कृष्णावत (ठि.साटोला) चूण्डावतों का भाणेज है और चौहान वधु भी चूण्डावतों (भरचड़ी) की ही भाणेज है जो की गलती से स्वयं को भी कृष्णावत चूण्डावत ही समझ रहे थे, तो यह जानने के पश्चात् दोनों परिवार ''साख पल्टी'' नहीं होने की वजह से यह रिश्ता यही छोड़ देंगे l किन्तु यदि उनको यह पता हो की ठि.भरचड़ी के चूण्डावत तो वास्तव में ''आसावत'' चूण्डावत है जो की चूण्डा जी के सबसे छोटे पुत्र आसाजी के वंशज हैं और कृष्णदास जी से 4 पीढ़ी पहले ही हुए थे और रावत कृष्णदास चूण्डावत के काका शाख में आते हैं और उनमे कृष्णदास जी का अंश नहीं है l इस भारी चूक या कहो अज्ञानता की वजह से एक अच्छा रिश्ता होते होते छूट सकता है l जिन्हें ज्ञान है वे ही इस गलती से बच सकते हैं l किन्तु कुछ चूण्डावत तो गर्व के लिए अपने नजदीकी बड़े ठिकाने बेगूं, अमेट, देवगढ या फिर सलूम्बर को अपना शाख भाई मान लेते हैं l
शाखाओं का सदुपयोग कुल में वृद्धि करा सकता है जैसा की हमने उपर बताया, किन्तु साथ ही यदि शाखाओं को अभिमान और फूट के लिए प्रयोग किया जाये तो इससे भी कुल में बिखराव आ जाता है l सभी चूण्डावत सिसोदिया केवल चूण्डावत है बाकि जो उपशाखा या नख होते हैं वे केवल विवाह में सहूलियत के लिए परंपरागत अपनाये गए हैं । इसके अतिरिक्त कोई लाभ/अर्थ नहीं है l
आजकल अक्सर कई चूण्डावत अपने मूल शाखा जो की चूण्डावत ही है, इसको लगाने की बजाये सीधे सीधे उपशाखा लगाने लगे हैं जो की पूर्ण रूप से अनुचित हैं l इनमे अक्सर यह प्रभाव कृष्णावत ओर मांजावत चूण्डावतों में है और कुछ कुछ आजकल जग्गावत और सांगावत चूण्डावत भी लगाने लगे हैं l यहाँ हम कोई विवाद या बहस खड़ा करने की बजाये बता देवें की रावत चूण्डा जी के परम पाटवी वंशज आज भी केवल चूण्डावत ही लगते हैं जो की स्वयं भी कृष्णावत - खंगारोत - रतनसिंहोत -कंधालोत आदि कई शाखाएँ तो वैसे ही समायी हैं l उपशाखा लगाने से फूट ही बढते है और केवल अभिमान दर्शाता है और कुछ नहीं l एक बार गलत रास्ता अपनाने के बाद पुनः पीछे मुड़ना उचित न जान कर अक्सर कई ठिकानो के सरदार यह सफाई देते हैं की वे तो कई पीढ़ियों से ऐसा कर रहें है इसमें क्या गलत है l किन्तु फिर भी निर्णय आपके हाथ में ही है हम केवल मार्ग ही दर्शा सकते हैं l इसी प्रकार अन्य सभी राजपूतों के कुल के नाम तक भी जैसे सिसोदिया-राठोड-चौहान-झाला-भाटी ये सब विवाह की सहुलियत के लिए हैं, वास्तविकता तो यही है की हम सब केवल राजपूत हैं l इसी बात को ध्यान रखते हुए चूण्डावतों को भी यह ध्यान रखना चाहिए की हम सब सिसोदिया राजपूत हैं।
चूण्डावातों की शाखाएँ
1) कृष्णावत - ठि.सलूम्बर
2) मेघावत - ठि.बेगूॅं
3) सांगावत - ठि.देवगड़
4) जग्गावत - ठि.आमेट
5) रतनसिंहोत (रत्नावत) - ठि.साकरिया खेडी, ठि.देवाली, ठि.पिपलोदा, ठि.हरेर, ठि.भोजपुर
6) कांधलोत - ठि.गोगाथल और ठि.पाखंड
7) खेंगारोत - ठि.लाखराज, ठि.पालनखेड़ी, ठि. खेड़ा (सलूम्बर के पास), ठि. सियालकुंड
8) कुंतलोत - ठि.भरक, ठि.परावल
9) तेजसिंहोत (तेजावत) - ठि.सूर्यगड़, ठि.लिम्बोद, ठि.बेगूँ, ठि.कनेरा, ठि.बस्सी
10) मांजावत - ठि.कटार और सलूम्बर के पास के कुछ ठिकाने
11) आसावत - ठि.भरचड़ी
12) रणधीरोत - ठि.काटून्द
13) कुंभावत - ठि.KSP [आमेट] [रणजीत सिंह चूंडावत]