चीन-पाक आर्थिक गलियारा
साँचा:ifempty | |
---|---|
ध्येय वाक्य | Motorways expansion, Special Economic Zones, energy production, Mass transit |
प्रकार | eco friendly |
अवस्थिति |
Pakistan: Khyber Pakhtunkhwa, Gilgit-Baltistan, Punjab, Balochistan, Sindh & Azad Kashmir China: Xinjiang |
देश | [[स्क्रिप्ट त्रुटि: "delink" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।]] |
स्थापित | साँचा:start date and age |
शुरू | साँचा:br separated entries |
बजट |
China Development Bank Asian Infrastructure Investment Bank Silk Road Fund Exim Bank of China Industrial and Commercial Bank of China |
वर्तमान स्थिति |
Energy projects operational Special Economic Zones Under construction (2020)[२][३] |
वेबसाइट |
cpec |
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (चीनी: 中国 - 巴基斯坦 经济 走廊 ; उर्दू: چین پاکستان اقتصادی راہداری) एक बहुत बड़ी वाणिज्यिक परियोजना है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान से चीन के उत्तर-पश्चिमी स्वायत्त क्षेत्र शिंजियांग तक ग्वादर बंदरगाह, रेलवे और हाइवे के माध्यम से तेल और गैस की कम समय में वितरण करना है।[४] आर्थिक गलियारा चीन-पाक संबंधों में केंद्रीय महत्व रखता है, गलियारा ग्वादर से काशगर तक लगभग 2442 किलोमीटर लंबा है। यह योजना को सम्पूर्ण होने में काफी समय लगेगा। इस योजना पर 46 बिलियन डॉलर लागत का अनुमान किया गया है।[५][६] यह गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान होते हुए जायेगा। विविध सूचनाओं के अनुसार ग्वादर बंदरगाह को इस तरह से विकसित किया जा रहा है, ताकि वह 19 मिलियन टन कच्चे तेल को चीन तक सीधे भेजने में सक्षम होगा।
इतिहास
यद्यपि इस परियोजना की परिकल्पना 1950 के दशक में ही की गयी थी, लेकिन वर्षों तक पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता रहने के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका। चीन नें साल 1998 में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर निर्माण कार्य शुरू किया जो साल 2002 में पूरा हुआ। चीन की शी जिनपिंग की सरकार ने साल 2014 में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की आधिकारिक रूप से घोषणा की। इसके जरिये चीन ने पाकिस्तान में विभिन्न विकास कार्यों के लिए करीबन 46 बिलियन डॉलर देने की घोषणा की।
आगामी घटनाक्रम
18 दिसम्बर 2017 को चीन और पाकिस्तान नें मिलकर इस आर्थिक गलियारे की लम्बी अवधि की योजना को मंजूरी दे दी।[७] इस योजना के तहत चीन और पाकिस्तान साल 2030 तक आर्थिक साझेदार रहेंगे। इसके साथ ही पाकिस्तान ने इस योजना में चीनी मुद्रा युआन का इस्तेमाल करने की भी मंजूरी दे दी है।
भारत का विरोध
भारत ने गलियारे के निर्माण को अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार अवैध माना है क्योंकि यह पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है।[८] इस मामले में भारत ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी आपत्ति दर्ज कराई थी। भारत ने पाक-अधिकृत काश्मीर को लेकर रूस सरकार के समक्ष भी अपना विरोध जताया है।
चीन को लाभ
माना जा रहा है कि पाकिस्तान और चीन के बीच 46 बिलियन डॉलर की बड़ी लागत से बनने वाला यह गलियारा दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव लाने वाला सिद्ध होगा। इस गलियारे का उद्देश्य चीन के उत्तरी-पश्चिमी झिनजियांग प्रांत के काशगर से पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह के बीच सड़कों के 3000 किमी विस्तृत नेटवर्क और दूसरी ढांचागत परियोजनाओं के माध्यम से संपर्क स्थापित करना है। दस्तावेजों के अनुसार, इसे 2030 तक पूरा होना है, और यह दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा। इस गलियारे के निर्मित हो जाने के बाद चीन ऊर्जा आयात करने के लिए वर्तमान के 12,000 किमी लंबे रास्ते के मुकाबले छाटे रास्ते का इस्तेमाल करेगा। इससे प्रति वर्ष चीन के लाखों डॉलर की बचत होगी। साथ ही, हिन्द महासागर तक इसकी पहुंच भी आसान हो जायेगी। पाकिस्तान को आशा है कि इससे उसका इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित होगा और बदले में उसके जल, सौर, उष्मा और पवन संचालित ऊर्जा संयंत्रों के लिए 34 बिलियन डॉलर की संभावित प्राप्ति होगी, जिससे उसकी गंभीर ऊर्जा संकट में कमी आयेगी या वह पूरी तरह से खत्म हो जायेगी। भविष्य में सीपीइसी का हिस्सा बनने को लेकर ईरान, रूस और सऊदी अरब भी काफी उत्साहित हैं। इस संभावना ने इस बहुप्रचारित आर्थिक गलियारे के रहस्य को और बढ़ा दिया है। वहीं, इस समझौते का कम प्रचारित पक्ष है- इस सौदे के तहत चीन पाकिस्तान को आठ पनडुब्बी की आपूर्ति भी करेगा, जिससे पाकिस्तान की नौसैनिक शक्ति काफी बढ़ जायेगी।
पाकिस्तान में चीन की रुचि केवल आर्थिक लाभ तक ही सीमित नहीं है। पूर्ण रूप से संचालित ग्वादर बंदरगाह से चीन को केवल व्यावसायिक लाभ ही नहीं होगा, बल्कि इससे इसे बड़े पैमाने पर सामरिक और भूराजनीतिक लाभ भी होगा। हालांकि, वर्तमान में ग्वादर को केवल व्यावसायिक हितों के लिए विकसित किया जा रहा है, लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि भविष्य में इसे एक पूर्ण सुसज्जित नौसैनिक अड्डे के तौर पर विकसित किया जाये। ऐसी स्थिति में चीन को इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रणनीतिक लाभ मिल सकता है। जैसा कि सर्वविदित है, पाकिस्तान इन दिनों चरमपंथ, आतंकवाद और भ्रष्टाचार के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है, ऐसे में उसका इरादा इस परियोजना से न केवल आर्थिक लाभ लेना होगा, बल्कि चीन की सरपरस्ती में अपनी वैश्विक छवि को सुधारना भी होगा। हालांकि, पाकिस्तान को सीपीइसी से होने वाले अनुमानित लाभ के साथ इसके संभावित नकारात्मक प्रभावों को भी संतुलित करना होगा।
शंकाएँ
This article has multiple issues. Please help improve it or discuss these issues on the talk page. (Learn how and when to remove these template messages)
|
यद्यपि इस गलियारे से पाकिस्तान को एक वृहत आर्थिक लाभ मिलेगा, परंतु इसकी क्षमता और आर्थिक औचित्य को लेकर कई शंकाएं भी हैं। साथ ही, पाकिस्तान को इन दिनों अनेक आंतरिक और बाहरी राजनैतिक चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है, जो गलियारे के विकास में बाधक बन सकते हैं।
संप्रभुता को खतरा
गलियारे के निर्माण कार्यों की वजह से पाकिस्तान में कार्यरत चीनी श्रमिकों, अधिकारियों और इंजीनियरों की सुरक्षा में यहां हजारों की संख्या में चीनी सुरक्षाकर्मी तैनात हैं (पाकिस्तान द्वारा सुरक्षा दिये जाने के बावजूद) और इतनी बड़ी बात को पाकिस्तान ने नजरअंदाज किया हुआ है, यह आश्चर्यजनक है। पाकिस्तान की धरती पर इतनी बड़ी संख्या में विदेशी सैनिकों का होना, पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के लिए चिंता का विषय होना चाहिए, खासकर चीन की नयी साम्राज्यवादी सोच और इसे साकार करने को लेकर अफगानिस्तान में किये जा रहे प्रयत्नों को देखते हुए। विकास की आड़ में इस परियोजना को लेकर चीन जिस तरह से पाकिस्तान के प्राकृतिक संसाधानों, खासकर बलूचिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है, उससे यहां के कई लोग चिंतित हैं। चीनी कंपनियों ने पाकिस्तान में हजारों एकड़ जमीन पट्टे पर ली है ताकि फसलों को उगाया जा सके। साथ ही चीनी कंपनियों को इसे निर्यात करने के लिए पाकिस्तान को स्थानीय कर भी नहीं चुकाना पडेगा। ऐसे में पाकिस्तान सरकार चीन को कई ऐसे संसाधन दे रही है, जिससे बाद में उसे समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
बलूचिस्तान विद्रोह और आंतरिक विवाद
इस गलियारे के सफल होने की कुंजी बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह के पास है और पाकिस्तान की आकांक्षा इस क्षेत्र का आर्थिक मुखिया बनने की है। हालांकि बलूचिस्तान को अलग राष्ट्र बनाने को लेकर उठती आवाज और इस कारण सेना के रूख को लेकर पैदा हुआ विवाद भी इस गलियारे के लिए कई चुनौतियां पेश कर रहा है। बलूचिस्तान के नागरिक सीपीइसी का विरोध कर रहे हैं। अगर यह गलियारा सफलतापूर्वक बनकर तैयार हो गया तो उम्मीद है कि पाकिस्तान के दूसरे प्रांत के अनेक लोग अपना प्रांत छोड़ कर बलूचिस्तान आकर बस जायेंगे। इसी कारण विभिन्न सीपीइसी परियोजना के लिए काम कर रहे चीनी इंजीनियरों और अधिकारियों पर बलूच विद्रोही समूहों द्वारा अनेक हमले हो चुके हैं। वहीं कई प्रतिबंधित संगठन भी इस परियोजना को लेकर धमकी दे रहे हैं, हालांकि उनका उद्देश्य इस आड़ में पाकिस्तान के साथ अपना हिसाब बराबर करना है। इसके साथ ही खैबर पख्तूनख्वा और सिंध जैसे प्रांत के अनेक राजनीतिक संगठन भी इस गलियारे की वास्तविक रूपरेखा को बदलने को लेकर अपनी जिंता जता चुके हैं। उनका मानना है कि इस गलियारे में जान-बूझ कर बदलाव किया गया है, ताकि पंजाब प्रांत को आर्थिक लाभ पहुंचाया जा सके।
क्या चीनी गलियारा 21वीं सदी की ईस्ट इंडिया कंपनी है?
हाल में जब एक पाकिस्तानी राजनेता ने संसद में चेतावनी दी कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के रूप में एक ईस्ट इंडिया कंपनी आकार ले रही है। यह बात योजना और विकास पर सीनेट की स्थायी समिति के अध्यक्ष सीनेटर ताहिर मशहदी ने कही थी और उनकी मुख्य चिंता इस गलियारे के लिए पाकिस्तान द्वारा चीन से भारी कर्ज को लेकर थी। मशहदी ने चीनी हितों के अनुरूप बिजली की दरें निर्धारित करने की मांग पर ऐतराज जताया था।
इसके अलावा शर्तों और वित्तीय विवरण को लेकर पारदर्शिता का अभाव भी चिंता का सबसे बड़ा कारण है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के गवर्नर ने भी कहा है कि उन्हें नहीं पता है कि 46 बिलियन डॉलर में से कितना कर्ज है, कितनी इक्विटी है और कितना सामान के रूप में आना है। उन्होंने अधिक पारदर्शिता की मांग की है। इसी तरह से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी आर्थिक गलियारे के संभावित नकारात्मक परिणामों को लेकर आगाह किया है।
सम्भावित लाभ
आर्थिक और अवसंरचनात्मक विकास
चूंकि यह गलियारा समूचे पाकिस्तान से होकर गुजरेगा, अतः गलियारे के माध्यम से यहां के सभी प्रांतों के अवसंरचना को बेहतर होने का मौका मिलेगा। इस महत्वाकांक्षी परियोजना की रूपरेखा के अनुसार, इसके निर्मित होने से नयी सड़कों, राजमार्गों, रेलवे, हवाई अड्डों और बंदरगाहों का निर्माण भी होगा और वे विकसित भी होंगे। ऐसी भी आशा है कि इससे खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे प्रांत विकास के मामले में पंजाब को काफी पीछे छोड़ देंगे। इतना ही नहीं, जब यह परियोजना पूर्ण रूप से विकसित हो जायेगी, तो इससे बड़े पैमाने पर रोजगार भी सृजित होगा। उम्मीद तो यह भी है कि चीन के इस प्रस्तावित निवेश से पाकिस्तान का सकल घरेलू उत्पाद 15 प्रतिशत तक बढ़कर 274 बिलियन डॉलर तक पहुंच जायेगा।
ऊर्जा संकट से छुटकारा
पाकिस्तान की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था का यहां के स्थानीय ऊर्जा संकट से सीधा संबंध है। पाकिस्तान अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में बुरी तरह नाकाम रहा है। इस ऊर्जा संकट को देखते हुए सीपीइसी कुल 10,500 मेगावाट की दूसरी ऊर्जा परियोजनाएं भी शुरू करेगी और इन परियोजनाओं का काम तेज गति से होगा, ताकि इन्हें 2018 तक पूरा किया जा सके। एक विशिष्ट योजना के तहत, थार मरुस्थल में 6,600 मेगावाट की 10 परियोजनाओं को विकसित किया जायेगा, जो इस बेहद दूर-दराज के इलाके को पाकिस्तान की ऊर्जा राजधानी में बदल देगा।
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite news
- ↑ साँचा:cite news
- ↑ "सीपीईसी के तहत चीन-पाकिस्तान साल 2030 तक रहेंगे आर्थिक साझेदार स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। दा इंडियन वायर
- ↑ साँचा:cite web