चीन-तिब्बत युद्ध
चीन-तिब्बत युद्ध (चीनी: 康藏邊界糾紛) एक युद्ध था जो 1930 में शुरू हुआ जब 13वें दलाई लामा के तहत तिब्बती सेना ने किंघई में ज़िकांग और युशु पर आक्रमण किया था। यह युद्ध मठों को लेकर विवाद पर हुआ। मा गुट के सरदार मा बुफांग ने गुप्त रूप से सिचुआन के सरदार लियू वेनहुई और चीन गणराज्य के नेता चियांग काई-शेक को एक टेलीग्राम भेजा, जिसमें तिब्बती सेना पर संयुक्त हमले का सुझाव दिया गया था। उनकी सेनाओं ने तेजी से विजय प्राप्त की और तिब्बती सेना को पराजित किया।[१][२]
इतिहास
संघर्ष की जड़ें तिब्बती सरकार के क्षेत्र और चीन गणराज्य के क्षेत्र के बीच विवादित सीमा को लेकर थीं। तिब्बती सरकार ने सिधांतिक रूप से पड़ोसी चीनी प्रांतों (किंघई, सिचुआन) में तिब्बतियों के निवास वाले क्षेत्रों का दावा किया था, जो वास्तव में चीनी सिपहसालारों द्वारा शासित थे। 13वें दलाई लामा और 9वें पंचेन लामा के बीच तनावपूर्ण संबंधों के चलते पंचेन लामा का चीनी नियंत्रित क्षेत्र में निर्वासन हुआ जिससे इनके बीच तनाव और बढ़ गया। इसके अतिरिक्त स्थानीय तिब्बती गणमान्यों के बीच भी धार्मिक तनाव की स्थिति थी।[३]
तात्कालिक कारण यह था कि सिचुआन नियंत्रण के तहत एक तिब्बती क्षेत्र बेरी के सरदार ने न्यारोंग मठ के लामा की संपत्तियों को जब्त कर लिया, जिन्होंने पास के तर्गे मठ (चीनी: 大金寺) से समर्थन मांगा। बेरी के सरदार को कथित तौर पर 9वें पंचेन लामा के समर्थकों ने उकसाया था। जून 1930 में जब न्यारोंग लामा और तर्गे मठ के भिक्षुओं ने न्यारोंग मठ पर नियंत्रण हासिल कर लिया, तो बेरी के सरदार ने स्थानीय चीनी सरदार लियू वेनहुई, सिचुआन के गवर्नर से मदद का अनुरोध किया। लियू की सेना ने तुरंत क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया। बदले में तर्गे भिक्षुओं ने तिब्बती सरकार से सहायता का अनुरोध किया, जिसकी सेना ने बेरी में प्रवेश किया और लियू वेन्हुई की सेना को खदेड़ दिया।