चंदबरदाई

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चित्र:Chandbardai.jpg
चंदबरदाई का चित्र (हिन्दी साहित्यकार चित्रावली के सौजन्य से)

चंदबरदाई (जन्म: संवत 1205 तदनुसार 1314 ई०[१] लाहौर वर्तमान पाकिस्तान में - मृत्यु: संवत 1249 तदनुसार ० गज़नी) हिन्दी साहित्य के आदिकालीन कवि तथा पृथ्वीराज चौहान के मित्र थे। उन्होने पृथ्वीराज रासो नामक प्रसिद्ध हिन्दी ग्रन्थ की रचना की।

जीवनी

चंदबरदाई का जन्म लाहौर में हुआ था। बाद में वह अजमेर-दिल्ली के सुविख्यात हिंदू नरेश पृथ्वीराज का सम्माननीय सखा, राजकवि और सहयोगी हो गए थे। इससे उसका अधिकांश जीवन महाराजा पृथ्वीराज चौहान के साथ दिल्ली में बीता था। वह राजधानी और युद्ध क्षेत्र सब जगह पृथ्वीराज के साथ रहे थे। उसकी विद्यमानता का काल 13वीं सदी है। चंदवरदाई का प्रसिद्ध ग्रंथ "पृथ्वीराजरासो" है। इसकी भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है, जो राजस्थान में ब्रजभाषा का पर्याय है। इसलिए चंदवरदाई को ब्रजभाषा हिन्दी का प्रथम महाकवि माना जाता है। 'रासो' की रचना महाराज पृथ्वीराज के युद्ध-वर्णन के लिए हुई है। इसमें उनके वीरतापूर्ण युद्धों और प्रेम-प्रसंगों का कथन है। अत: इसमें वीर और शृंगार दो ही रस है। चंदबरदाई ने इस ग्रंथ की रचना प्रत्यक्षदर्शी की भाँति की है लेकिन शिलालेख प्रमाण से ये स्पष्ट होता है कि इस रचना को पूर्ण करने वाला कोई अज्ञात कवि है जो चंद और पृथ्वीराज के अन्तिम क्षण का वर्णन कर इस रचना को पूर्ण करता है।

हिन्दी के पहले कवि

चंदबरदाई को हिंदी का पहला कवि और उनकी रचना पृथ्वीराज रासो को हिंदी की पहली रचना होने का सम्मान प्राप्त है। पृथ्वीराज रासो हिंदी का सबसे बड़ा काव्य-ग्रंथ है। इसमें 10,000 से अधिक छंद हैं और तत्कालीन प्रचलित 6 भाषाओं का प्रयोग किया गया है। इस ग्रंथ में उत्तर भारतीय क्षत्रिय समाज व उनकी परंपराओं के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है, इस कारण ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका बहुत महत्व है।

वे भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय के मित्र तथा राजकवि थे। पृथ्वीराज ने 1165 से 1192 तक अजमेरदिल्ली पर राज किया। यही चंदबरदाई का रचनाकाल भी था।

गोरी के वध में सहायता

इनका जीवन पृथ्वीराज के जीवन के साथ ऐसा मिला हुआ था कि अलग नहीं किया जा सकता। युद्ध में, आखेट में, सभा में, यात्रा में, सदा महाराज के साथ रहते थे और जहाँ जो बातें होती थीं, सब में सम्मिलित रहते थे। पृथ्वीराज चौहान ने चंदबरदाई को केई बार लाख पसाव, करोड़ पसाव, अरब पसाव, देकर सम्मानित किया था, यहाँ तक कि मुहम्मद गोरी के द्वारा जब पृथ्वीराज चौहान को परास्त करके एवं उन्हे बंदी बना करके गजनी ले जाया गया तो ये भी स्वयं को वश में नहीं कर सके एवं गजनी चले गये। ऐसा माना जाता है कि कैद में बंद पृथ्वीराज को जब अन्धा कर दिया गया तो उन्हें इस अवस्था में देख कर इनका हृदय द्रवित हो गया एवं इन्होंने गोरी के वध की योजना बनायी। उक्त योजना के अंतर्गत इन्होंने पहले तो गोरी का हृदय जीता एवं फिर गोरी को यह बताया कि पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चला सकता है। इससे प्रभावित होकर मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज की इस कला को देखने की इच्छा प्रकट की। प्रदर्शन के दिन चंदबरदाई गोरी के साथ ही मंच पर बैठे। अंधे पृथ्वीराज को मैदान में लाया गया एवं उनसे अपनी कला का प्रदर्शन करने को कहा गया। पृथ्वीराज के द्वारा जैसे ही एक घण्टे के ऊपर बाण चलाया गया गोरी के मुँह से अकस्मात ही "वाह! वाह!!" शब्द निकल पड़ा बस फिर क्या था चंदबरदायी ने तत्काल एक दोहे में पृथ्वीराज को यह बता दिया कि गोरी कहाँ पर एवं कितनी ऊँचाई पर बैठा हुआ है। वह दोहा इस प्रकार था:

चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमान ।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान ॥

इस प्रकार चंद बरदाई की सहायता से से पृथ्वीराज के द्वारा गोरी का वध कर दिया गया। इनके द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो हिंदी भाषा का पहला प्रामाणिक काव्य माना जाता है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. ‘हिन्दी साहित्यकार चित्रावली’, प्रकाशक एवं मुद्रक : हिन्दी बुक सेण्टर, नई दिल्ली