चंद्रकान्ता
चंद्रकांता (१९३८) हिन्दी की जानी मानी लेखिका है। उनके लेखन का प्रारंभ १९६६ से हुआ जब उनकी पहली कहानी 'खून के रेशे' कल्पना में प्रकाशित हुई। आठ साल बाद उनका पहला कहानी संग्रह 'सलाखों के पीछे' प्रकाशित हुआ। इसके छे साल बाद उनका पहला उपन्यास 'अर्थान्तर' प्रकाशित हुआ। वे दो सौ से अधिक कहानियों की रचना कर चुकी हैं। उनकी कहानियों के १३ संग्रह, ७ उपन्यास और १ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें 'पोशनूल की वापसी', 'ऐलान गली ज़िन्दा है', 'यहाँ वितस्ता बहती है' तथा 'अपने अपने कोणार्क' काफी चर्चित रहे। कश्मीर की केसरी आबोहवा में पली बढ़ी चंद्रकांता की कहानियों में वहां की सभ्यता और संस्कृति का अंदाज सहज समाया हुआ है। वे वहाँ के लोक और लोक संस्कृति की गहरी पहचान रखती हैं और उनकी लेखनी इसे मर्मभेदी सफलता के साथ व्यक्त करती है।
आज के दौर की सुप्रसिद्ध कथा लेखिका चंद्रकांता का २००१ में प्रकाशित उपन्यास 'कथा सतीसर', कश्मीर के वृहत्तर इतिहास के बेबाक चित्रण के लिये जाना जाता है। इसके लिए चंद्रकांता को २००५ में बिड़ला फाउंडेशन के व्यास सम्मान से विभूषित किया गया है। उनकी रचनाओं के विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं।[१]