घड़ा
घड़ा कलश एक ऐसा पात्र जिसमें किसी वस्तु को एकत्र किया जा सके, घड़ा विशेषत: मिट्टी, व धातु के बनाये जाते हैं इतिहास में घड़े के प्रदुर्भाव का सभ्यता से सीधा संबध हैं। मानव सभ्यता के उदगम के साथ साथ कृषि जैसी तकनीक के अविष्कार के साथ ही वस्तुओं को इकट्ठा करने की आवश्यकता होने लगी और वस्तुओं के सरंक्षण व एकत्र करने की आवश्यकताओं ने घड़े जैसे पात्र का अविष्कार करवाया।
घड़ा
एक पात्र (बर्तन) जो वस्तुओं को संचित व सरंक्षित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता हैं। घड़ा मुख्यत:, जल, अनाज, व अन्य वस्तुओं जो श्रम के फ़लस्वरूप मानव को प्राप्त होती रही, उन्हे सरंक्षित करने का एक पात्र हैं। घड़ा सामाजिक जीवन का प्रतीक व सभ्यताओं में सामुदायिकता, व अन्न जल के सरंक्षण की कला का प्रतीक भी हैं। घड़ा जो भरने व रखने की वस्तु के रूप में प्रयोग होता है, का सन्दर्भ संचित कर्मों अर्थात भाग्य के रूप में भी लिया जाने लगा और पाप, पुण्य जैसे मानवीय कर्मों की मात्रा का मापन करने के लिए भी घड़े का प्रयोग होने लगा, जैसे पाप का घड़ा भर जाना। मानव सभ्यता व संस्कृति में मानव के सामुदायिक तौर पर स्थापित होना, वस्तुओं का विनिमय, सरंक्षण, आदि घड़े के आविष्कार से संबधित होता है। मिट्टी का छोटा घड़ा या सुराही को पानी से भरकर घर की उत्तर दिशा में रखने से पैसों की तंगी नहीं होती।
घड़े के प्रकार
- कलश
- मटका, मटुकी
- डेग
- बटुआ
घड़े का धार्मिक महत्व
मानव समाज में विशेषत: भारतीय सम्स्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक सारे संस्कारों में मिट्टी के घड़े का प्रयोग किया जाता हैं।
चन्द्रमा और मंगल धनयोग का उदहारण :- मिट्टी का घड़ा या सुराही को पानी से भरकर घर की उत्तर दिशा में रखने से पैसों की तंगी नहीं होती। उत्तर दिशा कुबेर की दिशा है धन आने की दिशा है बुध की दिशा है बुद्धि ठीक रहेगी तो सब ठीक ही रहेगा
मानव विज्ञान एंव पुरातत्व
घड़े के आकार प्रकार व निर्मित वस्तु से मनुष्य की सभ्यताओं व पर्यावास के बारे में अध्ययन करना सरल हुआ।