ग्वालियर प्रशस्ति

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मिहिरकुल की ग्वालियर प्रशस्ति
Mihirakula inscription.jpg
Gwalior inscription announcing completion of a Surya temple
सामग्री लाल बलुआ पत्थर की पट्टिका
लेखन संस्कृत
Created ६ठी शताब्दी
काल/संस्कृति गुप्त काल
स्थान ग्वालियर दुर्ग
वर्तमान स्थान कोलकाता संग्रहालय

मिहिरकुल की ग्वालियर प्रशस्ति एक शिलालेख है जिस पर संस्कृत में मातृछेत द्वारा सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है। अलेक्जैण्डर कनिंघम ने १८६१ में इसे देखा था और इसके बारे में उसी वर्ष प्रकाशित किया। उसके बाद इस शिलालेख के अनेकों अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। यह क्षतिग्रत अवस्था में विद्यमान है। इसकी लिपि प्राचीन उत्तरी गुप्त लिपि है और श्लोक के रूप में लिखा गया है।[१]

इस शिलालेख में हूण राजा मिहिरकुल के शासनकाल में, ६ठी शताब्दी के प्रथम भाग में सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है। [२]

  • यह प्रशस्ति ग्वालियर नगर से १ किलोमीटर पश्चिम में स्थित 'सागर' नामक स्थान से प्राप्त हुई है।
  • यह प्रतिहार वंश के शासकों की राजनीतिक उपलब्धियों और उनकी वंशावलियों को ज्ञात करने का मुख्य साधन है।
  • यह प्रशस्ति तिथि विहीन है।
  • यह प्रशस्ति विशुद्ध संस्कृत में लिखी गई है। इस प्रशस्ति के लेख की लिपि उत्तरी ब्राह्मी लिपि है।
  • इस प्रशस्ति का लेखक भट्ट धनिक का पुत्र बालादित्य है।
  • यह लेख एक प्रस्तर पर उत्कीर्ण है जो प्रशस्ति के रूप में है। इस लेख में 17 श्लोक हैं।
  • इस लेख का उद्देश्य प्रतिहार राजवंश शासक वर्ग द्वारा विष्णु के मंदिर का निर्माण कराए जाने की जानकारी देना और साथ ही अपनी प्रशस्ति लिखवाना ताकि स्वयं को चिरस्थाई बना सकें।
  • इस अभिलेख का राजनीतिक महत्व यह है कि इस अभिलेख की चौथी पंक्ति से प्रतिहार वंश की वंशावली के बारे में सूचना प्रारंभ होती है।
  • इस लेख में राजाओं के नाम के साथ उनकी उपलब्धियों का वर्णन किया गया है।

लेख

१. [*][*ज](य)ति जलदवालध्वान्तम् उत्सारयन् स्वैःकिरणनिवहजालैर् व्योम विद्योतयद्भिःउ[*दय-गिरितटाग्रं] मण्डय{+न्} यस्तुरंगैःचकितगमनखेदभ्रान्तचंचत्सटान्तैः। उदयगिरि

२. [⏑--](ग्र)स्तचक्रो र्त्तिहर्त्ताभुवनभवनदीपः शर्व्वरीनाशहेतुःतपितकनकवर्ण्णैर् अंशुभिf पंकजानामभिनवरमणीयं यो (वि)धत्ते स वो व्याट्।श्रीतोरमाण इति यः प्रथितो

३. [*?भू-च](?क्र)पः प्रभूतगुणःसत्यप्रदानशौर्याद् येन मही न्यायत(शा)स्तातस्योदितकुलकीर्त्तेः पुत्रो तुलविक्रमः पतिः पृथ्व्याःमिहिरकुलेति ख्यातो भंगो यः पशुपति(म् अ)[आर्रयार्रय्

४. [*तस्मिन् रा]जनि शासति पृथ्वीं पृथुविमललोचने र्त्तिहरेअभिवर्द्धमानराज्ये पंचदशाब्दे नृपवृषस्य।शशिरश्मिहासविकसितकुमुदोत्पलगन्धशीतलामोदेकार्त्तिकमासे प्राप्त गगन

५. [*?पतौ] निर्मले भाति।द्विजगणमुख्यैर् अभिसंस्तुते च पुण्याहनादघोषेणतिथिनक्षत्रमुहूर्त्ते संप्राप्ते सुप्रशस्तद्(इ)ने।मातृतुलस्य तु पौत्रः पुत्रश् च तथैव मातृदासस्यनाम्ना च मातृचेतः पर्व्व-

६. [*त][-⏑][*?पु](र)वास्(त्)अव्(य्)अःनानाधातुविचित्रे गोपाह्वयनाम्नि भूधरे रम्येकारितवान् शैलमयं भानोः प्रासादवरमुख्यं।पुण्याभिवृद्धिहेतोर् म्मातापित्रोस् तथात्मनश् चैववसता च गिरिवरे स्मि राज्ञः

७. [...](?पा)देनये कारयन्ति भानोश् चन्द्रांशुसमप्रभं गृहप्रवरंतेषां वासः स्वर्ग्गे यावत्कल्पक्षयो भवति॥भक्त्या रवेर् व्विरचितं सद्धर्म्मख्यापनं सुकीर्त्तिमयंनाम्ना च केशवेति प्रथितेन च{-।}

८. [...](?दि)त्येन॥यावच्छर्व्वजटाकलापगहने विद्योतते चन्द्रमादिव्यस्त्रीचरणैर् व्विभूषिततटो यावच् च मेरुर् नगःयावच् चोरसि नीलनीरदनिभे विष्णुर् व्विभर्त्य् उज्वलांश्रीं{-स्} तावद् गिरिमूर्ध्नि तिष्ठति

९. [*?शिला-प्रा]सादमुख्यो रमे॥

अनुवाद

जॉन फ्लीत ने 1888 ई में उपरोक्त लेख का अंग्रेजी अनुवाद किया जो निम्नलिखित है-

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इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; cii3n37 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. The dates of Mihirakula are not know but he can be assigned to c. AD 535; Richard Salomon, "New Inscriptional Evidence for the History of the Aulikaras of Mandasor," Indo-Iranian Journal 32 (1989): 1-39.

बाहरी कड़ियाँ