गोस्वामी समाज
साँचा:merge गोस्वामी समाज एक भारतीय संस्कृति से जुड़ा समाज है इसे दशनाम गोस्वामी ब्राह्मण समाज के नाम से भी जाना जाता है इन्हे उपजातिया होती है जिनमे गिरि ,पूरी, भारती अरण्य ,वन ,पर्वत ,सागर ,आश्रम,तीर्थ व सरस्वती मिल है भारतीय उपजाति "गोस्वामी" के समूह से बना यह समाज सम्पूर्ण भारत में फैला है। सर्वाधिक गोस्वामी समाज के लोग राजस्थान,बिहार,गुजरात,हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में रहते है । नेपाल मे वहा की कुल जनसंख्या के 1% से भी अधिक गोस्वामी है। इस समाज के लोग भगवा रंग के कपडे पहनते है । यह एक दूसरे को ओम नमो नारायण कहकर संबोधित करते हैं पूर्व काल से ही गोस्वामी ब्राह्मण समाज के लोग भगवान शिव की पूजा करते आ रहे हैं अधिकतर अधिकतर शिव मंदिरों में पुजारी के रूप में गोस्वामी ही पूजा करते थे पूर्व अब गोस्वामी समाज के लोग खेती व प्रशासनिक सेवा,विश्वविधालय प्रोफेसर इत्यादि सेवा में भी कार्यरत है । ये शिव के उपासक होते है ।गोस्वामी समाज भक्ति परंपरा से जुड़ा संप्रदाय हैं इन्होंने भक्ति का अनूठा योगदान दिया है ।माना जाता है कि इन लोगों को मरने के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं।
नागा बाबा
साधु जो अब समाज को त्यागकर साधना में लीन रहना चाहते हैं उनको दीक्षित किया जाता है। आचार्य आदि शंकराचार्य द्वारा संन्यासियों की पहले से चली आ रही परंपरा को जब संगठित किया गया और उसे नाम दिया- दसनामी साधु संघ।
दीक्षा के समय प्रत्येक दसनामी जैसा कि उसके नाम से ही स्पष्ट है, निम्न नामों भारती , पुरी, गिरि, वन, अरण्य,पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम या सरस्वती में से किसी एक नाम से अभिभूषित किया जाता है या वह पहले से ही उसी समाज से संबंधित रहता है। किसी एक नाम और परंपरा का साधु बनकर वह सात में से किसी एक अखाड़े का सदस्य बनता है।
दसनामी साधुओं में मंडलेश्वर और नागा पद होते हैं। उनमें भी शास्त्रधारी और अस्त्रधारी महंत होते हैं। शास्त्रधारी शास्त्रों आदि का अध्ययन कर अपना आध्यात्मिक विकास करते हैं तथा अस्त्रधारी अस्त्रादि में कुशलता प्राप्त करते हैं।
नागा उपाधियां : चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को 1.नागा, उज्जैन में 2.खूनी नागा, हरिद्वार में 3.बर्फानी नागा तथा नासिक में उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है।
नागाओं के अखाड़ा पद : नागा में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है।
13 अखाड़े : तेरह अखाड़ों में से जूना अखाड़ा इनका खास अखाड़ा है। इसके अलवा अग्नि अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा एवं अटल अखाड़ा आदि सभी शैव से संबंधित है। वैष्णवों में बैरागी, उदासीन, रामादंन और निर्मल अखाड़ा प्रमुख है।
उत्पति एवं इतिहास
आदि गुरु शंकराचार्य ने धर्म की हानी रोकने के लिए इस समाज की स्थापना की थी
गोस्वामी समाज को ऋषियों की संतान भी कहा जाता है 10 नाम गोस्वामी समाज के 10 उच्च जातियों के चार अलग-अलग ऋषि है
- 1.भारती 2.पुरी और 3.सरस्वती । इनके ऋषि हैं शांडिल्य।
- 4. पर्वत 5.गिरि और 6.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रुगु शांडिल्य।
- 7.वन और 8.अरण्य के ऋषि हैं कश्यप।
- 9.तीर्थ और 10. आश्रम के ऋषि अवगत हैं।
उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध में अंग्रेजों के शासनकाल में शैव गोसाइयों ने शस्त्र धारण कर लिए थे। ये लोग मराठों की फौज में भी भर्ती हुए थे।