गोस्वामी ब्राह्मण
गोस्वामी ब्राह्मण
गोस्वामी समाज उच्च ब्राह्मणों का समाज है आदि गुरु शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म मे धर्मांतरण कर रहे सनातनी लोगो को बचाने के लिये तथा कुछ पथ भ्रष्टी ब्राम्हणो से सनातनी लोगों को बचाने के लिए विद्वान ब्राह्मणों को साथ लेकर स्मार्त मत तथा अद्वैत वेदांत का प्रचार किया और बौद्ध को भारत से उखाड़ फेका,
जो ब्राह्मण भगवान आदि शंकराचार्य जी के द्वारा सन्यास लेकर परंपरा मे आए उनसे गुरु शिष्य सन्यास परंपरा चली तथा जो ब्राह्मण ग्रहस्थ रहते हुए मत का प्रचार कर रहे थे उनसे गोस्वामी ब्राह्मण या दशनामी ब्राह्मण परंपरा चली यही गृहस्थ ब्राह्मण गोस्वामी ब्राह्मण समाज के नाम से जानी जाती है
कुल दस भागों में इन्हे विभाजित किया गया अर्थात इसमें दश तरह की उपजातिया होती है जिनमे गिरि, पुरी, भारती, पर्वत,सरस्वती,सागर, वन, अरण्य, आश्रम एवं तीर्थ शामिल है इस शीर्षक का मतलब गौ अर्थात पांचो इन्द्रयाँ, स्वामी अर्थात नियंत्रण रखने वाला। इस प्रकार गोस्वामी का अर्थ पांचो इन्द्रयों को वस में रखने वाला होता हैं। यह समाज सम्पूर्ण भारत में फैला है सर्वाधिक गोस्वामी ब्राह्मण समाज के लोग राजस्थान,मध्यप्रदेश,गुजरात,उत्तराखंड,उड़ीसा,पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश एवम बिहार में रहते है ये शिव के उपासक होते है। दिन रात शिव की पुजा करते हैं अतः ये स्मार्त ब्राह्मण माने जाते है।
गोस्वामी ब्राह्मण प्रायः गेरुआ (भगवा रंग)वस्त्र पहनते और गले में 54 या 108 रुद्राक्षों की माला पहनते हैं तथा ललाट पर चंदन या राख से तीन क्षैतिज रेखाएं बना लेते, तीन रेखाएं शिव के त्रिशूल का प्रतीक होती है, दो रेखाओं के साथ एक बिन्दी ऊपर या नीचे बनाते, जो शिवलिंग का प्रतीक होती है। ज्यादातर लोग शिखा एवं जनेऊ भी धारण करते हैं, दशनाम गोस्वामी ब्राह्मण 'ॐ नमो नारायण' या 'नम: शिवाय' से शिव की आराधना करते हैं। गोस्वामी ब्राह्मणों के स्वयं के मठ मंदिर आश्रम होते हैं जिनमे जाकर इक्षुक व्यक्ति इनसे रुद्राभिषेक यज्ञ हवन शिव पूजन कराता है और दीक्षा ले सकता है इसके अलाबा इनका प्रमुख्य कार्य कर्मकांड कथा पूजन भागवत पुराण शिव कथा देवी कथा आदि करना है इन्हें गुरूजी, महाराज जी आदि नामों से पुकारा जाता है ।
इनके अलाबा तैलंग ब्राह्मण वैष्णव संप्रदाय भी गोस्वामी सरनेम का प्रयोग करता है.