गोपाल दास

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गोपाल दास (१७२१-१७६९ ) १८ वीं सदी के एक प्रमुख कन्नड़ भाषा के कवि और संत थे जो हरिदास परंपरा से संबंधित थे। विजय दास और जगन्नाथ दास जैसे अन्य समकालीन हरिदासियो के साथ, गोपाल दास ने दक्षिण भारत में माधवाचार्य के द्वैत दर्शन का प्रसार दशरा पडगालु नमक कीर्तनों ("भगवान के गीत") के माध्यम से किया, जिनका कलम-नाम (अकिता नाम या मुद्रा) गोपाल विट्टल है।

जन्म के समय गोपाल दास का नाम "भगन्ना" था। उनका जन्म भारत के कर्नाटक राज्य के रायचूर जिले के एक गाँव मोसरकल्लू में हुआ था। माधव व्यवस्था में दीक्षा के बाद, वह विजय दास के शिष्य बन गए और उन्हें एक प्रसिद्ध संगीतकार होने का भी श्रेय मिला। उन्हें एक ज्योतिषी के रूप में भी जाना जाता है। बाद में गोपाल दास ने हिंदू देवता विष्णु की स्तुति में मधुर गीतों की रचना करने के लिए सुप्रसिद्ध महिला संत हेलवानकट गिरियम्मा को प्रेरित किया।[१][२]

किंवदंती है कि एक बार 18 वीं शताब्दी के एक प्रमुख हरिदासी विजय दास ने जगन्नाथ दास को अपने भक्तों के साथ एक धार्मिक समारोह में शामिल होने और भोजन करने के लिए आमंत्रित किया था। जगन्नाथ दास, जो संस्कृत में अपनी विद्वता के लिए जाने जाते थे, ने कन्नड़ हरिदास के साथ घुलना-मिलना बेकार समझा और पेट में तेज दर्द होने का बहाना किया। एक अन्य श्रोत से दावा किया जाता है कि जगन्नाथ दासा ने तपेदिक की बीमारी का बहाना करके खुद को आने में असमर्थ बताया। जल्द ही जगन्नाथ दास वास्तव में तीव्र पेट दर्द से पीड़ित होने लगे। एक उपयुक्त उपाय खोजने में असमर्थ, वह विजय दास के पास गये, जिन्होने गोपाल दास से संपर्क करने की सलाह दी। जगन्नाथ दास की समस्या का समाधान गोपाल दास ने किया था। हरिदास के प्रति अपनी गलती और गलत रवैये को महसूस करते हुए, जगन्नाथ दास माधव व्यवस्था में शामिल हो गए और इसके सबसे बड़े समर्थकों में से एक बन गए।[२]

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ग्रन्थ सूची

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  1. Shivaprakash in Ayyappapanicker (1997), p.201
  2. G. Varadaraja Rao (G.V.R) in Sahtya Akademi (1988), p.1764