गोपाल कृष्ण गोखले
गोपाल गोखले | |
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Born | 09 May 1866 कोटलुक, रत्नागिरि जिला, बाम्बे प्रेसिडेन्सी |
Died | 19 February 1915साँचा:age) | (उम्र
Alma mater | एल्फिन्स्टोन कॉलेज |
Occupation | प्राध्यापक, रजनेता |
Employer | साँचा:main other |
Organization | साँचा:main other |
Agent | साँचा:main other |
Notable work | साँचा:main other |
Political party | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
Movement | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
Opponent(s) | साँचा:main other |
Criminal charge(s) | साँचा:main other |
Spouse(s) | सावित्री बाई (1880-1887) ऋषिबामा (1887-1899)साँचा:main other |
Partner(s) | साँचा:main other |
Children | 2 |
Parent(s) | स्क्रिप्ट त्रुटि: "list" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main other |
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गोपाल कृष्ण गोखले (9 मई 1866 - फरवरी 19, 1915) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। महादेव गोविन्द रानडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का 'ग्लेडस्टोन' कहा जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी थे। चरित्र निर्माण की आवश्यकता से पूर्णतः सहमत होकर उन्होंने 1905 में सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। स्व-सरकार व्यक्ति की औसत चारित्रिक दृढ़ता और व्यक्तियों की क्षमता पर निर्भर करती है। महात्मा गांधी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
परिचय
गोपालकृष्ण गोखले का जन्म रत्नागिरी कोटलुक ग्राम में एक सामान्य परिवार में कृष्णराव के घर 9 मई 1866 को हुआ। पिता के असामयिक निधन ने गोपालकृष्ण को बचपन से ही सहिष्णु और कर्मठ बना दिया था। देश की पराधीनता गोपालकृष्ण को कचोटती रहती। राष्ट्रभक्ति की अजस्र धारा का प्रवाह उनके अंतर्मन में सदैव बहता रहता। इसी कारण वे सच्ची लगन, निष्ठा और कर्तव्यपरायणता की त्रिधारा के वशीभूत होकर कार्य करते और देश की पराधीनता से मुक्ति के प्रयत्न में लगे रहते। न्यू इंग्लिश स्कूल पुणे में अध्यापन करते हुए गोखले जी बालगंगाधर तिलक के संपर्क में आए।
1886 में वह फर्ग्यूसन कालेज में अंग्रेज़ी के प्राध्यापक के रूप में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी में सम्मिलित हुए। वह श्री एम.जी. रानाडे के प्रभाव में आए। सार्वजनिक सभा पूना के सचिव बने। 1890 में कांग्रेस में उपस्थित हुए। 1896 में वेल्बी कमीशन के समज्ञा गवाही देने के लिए वह इंग्लैण्ड गए। वह 1899 में बम्बई विधान सभा के लिए और 1902 में इम्पीरियल विधान परिषद के निर्वाचित किए गए। वह अफ्रीका गए और वहां गांधी जी से मिले। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की भारतीय समस्या में विशेष दिलचस्पी ली। अपने चरित्र की सरलता, बौद्धिक क्षमता और देश के प्रति दीर्घकालीन स्वार्थहीन सेवा के लिए उन्हें सदा सदा स्मरण किया जाएगा। वह भारत लोक सेवा समाज के संस्थापक और अध्यक्ष थे। उदारवादी विचारधारा के वह अग्रणी प्रवक्ता थे। 1915 में उनका स्वर्गवास हो गया।
अफ्रीका से लौटने पर महात्मा गांधी भी सक्रिय राजनीति में आ गए और गोपालकृष्ण गोखले के निर्देशन में 'सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी' की स्थापना की, जिसमें सम्मिलित होकर लोग देश-सेवा कर सकें। परन्तु इस सोसाइटी की सदस्यता के लिए गोखले जी एक-एक सदस्य की कड़ी परीक्षा लेकर सदस्यता प्रदान करते थे। इसी सदस्यता से संबंधित एक घटना है - मुंबई म्युनिस्पैलिटी में एक इंजीनियर थे अमृत लाल वी. ठक्कर। वे चाहते थे कि गोखले जी की सोसाइटी में सम्मिलित होकर राष्ट्र-सेवा से उऋण हो सकें। उन्होंने स्वयं गोखले जी से न मिलकर देव जी से प्रार्थना-पत्र सोसाइटी में सम्मिलित होने के लिए लिखवाया। अमृतलाल जी चाहते थे कि गोखले जी सोसाइटी में सम्मिलित करने की स्वीकृति दें तो मुंबई म्युनिस्पैलिटी से इस्तीफा दे दिया जाए, पर गोखले जी ने दो घोड़ों पर सवार होना स्वीकार न कर स्पष्ट कहा कि यदि सोसाइटी की सदस्यता चाहिए तो पहले मुंबई म्युनिस्पैलिटी से इस्तीफा दें। गोखले की स्पष्ट और दृढ़ भावना के आगे इंजीनियर अमृतलाल वी. ठक्कर को त्याग-पत्र देने के उपरांत ही सोसाइटी की सदस्यता प्रदान की गई। यही इंजीनियर महोदय गोखले जी की दृढ़ नीति-निर्धारण के कारण राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत सेवा-क्षेत्र में भारत विश्रुत 'ठक्कर बापा' के नाम से जाने जाते हैं।
गोखले जी 1905 में आजादी के पक्ष में अंग्रेजों के समक्ष लाला लाजपतराय के साथ इंग्लैंड गए और अत्यन्त प्रभावी ढंग से देश की स्वतंत्रता की वहां बात रखी। 19 फ़रवरी 1915 को गोपालकृष्ण गोखले इस संसार से सदा-सदा के लिए विदा हो गए।