गोकरुणानिधि
गोकरुणानिधि | |
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पुस्तक रचयिता | |
लेखक | स्वामी दयानंद सरस्वती |
मूल शीर्षक | गोकरुणानिधि |
चित्र रचनाकार | अज्ञात |
आवरण कलाकार | अज्ञात |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
श्रृंखला | शृंखला नहीं |
विषय | गाय आदि पशुओं की रक्षा से सब प्राणियों के सुख के लिए |
प्रकार | धार्मिक, सामाजिक |
प्रकाशक | वैदिक यन्त्रालय, इलाहाबाद व अन्य |
प्रकाशन तिथि | १८८१[१] |
अंग्रेजी में प्रकाशित हुई |
१८८१ |
मीडिया प्रकार | मुद्रित पुस्तक |
पृष्ठ | १७ |
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ | अज्ञात |
ओ॰सी॰एल॰सी॰ क्र॰ | अज्ञात |
पूर्ववर्ती | शृंखला नहीं |
उत्तरवर्ती | शृंखला नहीं |
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गोकरुणानिधि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा रचित एक लघु पुस्तिका है।
सामग्री व प्रारूप
इस पुस्तक में स्वामी दयानंद सरस्वती ने गाय आदि पशुओं की रक्षा और कृषि को प्रोत्साहन देने संबंधी कुछ प्रस्ताव रखे हैं व एक 'गोकृष्यादिरक्षिणी सभा' (गो कृषि आदि रक्षिणी सभा) की घोषणा की है।
पुस्तक को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।
- समीक्षा प्रकरणम्साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] गो आदि प्राणियों पर दया क्यों करनी चाहिए और इससे मनुष्य को क्या लाभ है, इसकी समीक्षा प्रथम भाग में है। एक हिंसक व रक्षक के बीच संवाद भी इस भाग में उपलब्ध है।
- नियम प्रकरणम् दूसरे विभाग में गो व कृषि आदि की रक्षा समिति के नियम उल्लिखित हैं।
- उपनियम प्रकरणम् तीसरे विभाग में समिति के नियम व उपसभा के कार्यकलाप आदि हैं, तथा विशेष स्थितियों में सभा को क्या करना चाहिए, यह वर्णित है।
पुस्तक की भाषा संस्कृतनिष्ठ हिन्दी है। इस पुस्तक के समीक्षा प्रकरण में भारत के उस समय के शासकों को प्रति सुशासन करने का आह्वान है। उदाहरण के लिए, राजाओं, सरदारों व धनाढ्य व्यक्तियों से गो रक्षा के लिए शतांश से अधिक आय का योगदान करने को कहा गया है।
एक परिच्छेद में महारानी विक्टोरिया (उस समय की भारत की शासिका) का भी उल्लेख है[२], कि उन्होंने प्राणियों पर दया करने का विज्ञापन किया है, इस संदर्भ में लेखक का कहना है कि प्राणी की हत्या करना सबसे अधिक निर्दयता है।
पुस्तक में पशुओं के साथ दुर्व्यवहार को देख के करुणा के भाव और सभी संप्रदाय के लोगों को समरूप से इस कार्य में शामिल होने का अनुरोध है।
वनों और पशुओं को न मारकर उन्हें बचा के रखना, ये आज के पर्यावरणवादियों के विचारों से काफ़ी मिलती जुलती विचार धारा है जो इस पुस्तक में उजागर होती है। माना जाता है कि यह विश्व की पहली ऐसी पुस्तक जिसमें पशुओं को न मारने के अनेक तर्कों सहित पशुओं जैसे गाय, बकरी से प्राप्त दूध की सटीक जानकारी दी गई है। पुस्तक के अनुसार एक गाय अपने जीवन में २५७४० (पच्चीस हजार सात सौ चालीस) मनुष्यों को तृप्त कर सकती है तथा गाय को कुछ मनुष्यों द्वारा मांस के रूप में खाना अत्यंत अस्वाभाविक व निंदनीय है।
लेखक का यह मंतव्य है कि गोमांस छिलके के समान है और दुग्ध सार के समान। अतः मांसाहार से बच के दुग्धपान करना चाहिए और पशुओं की रक्षा करनी चाहिए।[३]
भारत में गोरक्षा आन्दोलन के प्रारंभिक समय में इस पुस्तक का कई लोगों पर गहरा प्रभाव[४] माना जाता है।
सन्दर्भ
- ↑ (अंग्रेज़ी) सिख स्पेक्ट्रम
- ↑ गोकरुणानिधि स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। पृ. १०
- ↑ (अंग्रेज़ी) दूध - मांसाहार या नहीं स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ (अंग्रेज़ी) गोरक्षासाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link], पृष्ठ २ (पीडीएफ़)