गुलाब खंडेलवाल
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गुलाब खण्डेलवाल एक भारतीय कवि हैं।
जीवन परिचय
महाकवि गुलाब खंडेलवाल (Gulab Khandelwal) का जन्म अपने ननिहाल राजस्थान के शेखावाटी प्रदेश के नवलगढ़ नगर में २१ फ़रवरी सन् १९२४ ई. को हुआ था। और उनका देहान्त ०२ जुलाई २०१७ को अमरीका में हुआ। उनके पिता का नाम शीतलप्रसाद तथा माता का नाम वसन्ती देवी था। उनके पिता के अग्रज रायसाहब सुरजूलालजी ने उन्हें गोद ले लिया था। उनके पूर्वज राजस्थान के मंडावा से बिहार के गया में आकर बस गये थे। कालान्तर में गुलाबजी प्रतापगढ़, उ.प्र. में कुछ वर्ष बिताने के पश्चात अमेरिका के ओहियो प्रदेश में निवास करने लगे। वे प्रतिवर्ष भारत आते रहते थे।
श्री गुलाब खंडेलवाल की प्रारम्भिक शिक्षा गया (बिहार) में हुई तथा उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से १९४३ में बी. ए. किया। काशी विद्या, काव्य और कला का गढ़ रहा है। अपने काशीवास के दौरान गुलाबजी बेढब बनारसी के सम्पर्क में आये तथा उस समय के साहित्य महारथियों के निकट आने लगे। वे वय में कम होने पर भी उस समय के साहित्यकारों की एकमात्र संस्था प्रसाद-परिषद के सदस्य बना लिये गये जिससे उनमें कविता के संस्कार पल्लवित हुए।
साहित्य गोष्ठियों में वे बेढब बनारसी, मैथिलीशरण गुप्त, निराला, बाबू श्यामसुन्दर दास, पं॰ रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, पं॰ श्रीनारायण चतुर्वेदी, राय कृष्णदास, पं॰ सीताराम चतुर्वेदी, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, पं॰ अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' आदि से मिलने का अवसर पाने लगे। वे इन गोष्ठियों में कविता सुनाते तो गुरुजन-मंडली उन्हें शुभाशीष से सींचती.
अपनी कविताओं से लोकमानस को अपनी ओर आकर्षित करते हुये उनकी साहित्यिक मित्रमंडली तथा शुभचिन्तकों का दायरा बढने लगा। सर्वश्री हरिवंश राय बच्चन, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, डॉ॰ रामकुमार वर्मा, आचार्य सीताराम चतुर्वेदी, न्यायमूर्ति महेश नारायण शुक्ल, प्राचार्य विश्वनाथ सिंह, माननीय गंगाशरण सिंह, शंकरदयाल सिंह, कामता सिंह 'काम' आदि इनके दायरे में आते गये।
मित्र मंडली में कश्मीर के पूर्व युवराज डॉ॰कर्ण सिंह, डॉ॰ शम्भुनाथ सिंह, आचार्य विश्वनाथ सिंह, डॉ॰ हंसराज त्रिपाठी, डॉ॰ कुमार विमल, प्रो॰ जगदीश पाण्डेय, प्रो॰ देवेन्द्र शर्मा, श्री विश्वम्भर ’मानव’, श्री त्रिलोचन शास्त्री, केदारनाथ मिश्र ’प्रभात’, भवानी प्रसाद मिश्र, नथमल केड़िया, शेषेन्द्र शर्मा एवं इन्दिरा धनराज गिरि, डॉ॰ राजेश्वरसहाय त्रिपाठी, पं॰ श्रीधर शास्त्री, विद्यानिवास मिश्र, अर्जुन चौबे काश्यप आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है। कवि गुलाब अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के अध्यक्ष पद पर भी रह चुके थे[१]|
पूर्ववर्ती व्यक्तित्व का प्रभाव
१. तुलसीदास
२. शेक्सपीयर
३. कबीर
समकालीन व्यक्तित्व का प्रभाव
१. काव्यगुरू नारायणानन्द सरस्वती
२. कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ ठाकुर
३. महात्मा गांधी
४. निराला
महाकवि गुलाब खंडेलवाल की कुछ पुस्तकें महाविद्यालयों के शिक्षण-पाठ्यक्रमों में भी रह चुकी हैं जो इस प्रकार हैं -
१. ’आलोक-वृत्त’- खंडकाव्य- १९७६ से उत्तर प्रदेश में इंटरमीडिएट बोर्ड में पाठ्यक्रम में स्वीकृत है।
२. ’उषा’- महाकाव्य - मगध विश्वविद्यालय के बी.ए. के पाठ्यक्रम में १९६८ से कई वर्षों तक रहा।
३. ’कच-देवयानी’-खंडकाव्य- मगध विश्वविद्यालय के बी. ए. कोर्स में था।
४. ’आलोक-वृत्त’-खंडकाव्य- १९७६ से मगध विश्वविद्यालय के बी. ए. के कोर्स में था।
देश तथा विदेश में सम्मान
भारत-
१. १९७९ में उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें सम्मानित किया तथा
२. १९८९ में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ने तत्कालीन अध्यक्ष डॉ॰ रामकुमार वर्मा के कर-कमलों द्वारा साहित्य-वाचस्पति की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया।
३. १९९७ में गुलाबजी की दो पुस्तकों ’भक्ति-गंगा’ तथा ’तिलक करें रघुबीर’ का उद्घाटन माननीय राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा के कर-कमलों द्वारा हुआ।
४. २००१ (के आसपास) में इटावा में श्री मुरारी बापू, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर विष्णुकान्त शास्त्री, पूर्व अटर्नी जनरल श्री शान्तिभूषण तथा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव -चारों ने मिलकर गुलाबजी को सम्मानित किया जिसपर मुरारी बापू ने कहा, "आज धर्म, शासन, राजनीति और कानून ने एक साथ आपको सम्मानित किया है।"
अमेरिका-
१. १९८५ में काव्य-सम्बन्धी उपलब्धियों के लिये बाल्टीमोर नगर की मानद नागरिकता (Honorary Citizenship) प्रदान की गयी।
२. ६ दिसम्बर १९८६ में राजधानी वाशिंगटन डी. सी. में विशिष्ट कवि के रूप में सम्मानित किया गया। उक्त दिवस को मेरीलैन्ड के गवर्नर ने सम्पूर्ण मेरीलैन्ड राज्य में तथा बाल्टीमोर के मेयर ने बाल्टीमोर नगर में हिन्दी दिवस घोषित किया।
३. २६ जनवरी २००६ में अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी. सी. में अमेरिका और भारत के सम्मिलित तत्त्वावधान में आयोजित गणतन्त्र-दिवस समारोह में मेरीलैंड के गवर्नर द्वारा कवि-सम्राट की उपाधि से अलंकृत किया गया।
शोध
महाकवि गुलाब खंडेलवाल के काव्य पर हुये शोध -
सर्वप्रथम एम. ए. का शोध-निबन्ध मगध विश्वविद्यालय से मुकुल खंडेलवाल ने प्रस्तुत किया था। उसके बाद श्री हंसराज त्रिपाठी के निर्देशन में दो शोध-निबन्ध अवध विश्वविद्यालय से हुये.
गुलाब खंडेलवाल के काव्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में हुये शोध पर निम्नलिखित विद्यार्थियों को पी. एच. डी. की उपाधि प्रदान की गई
१. सागर विश्वविद्यालय, मध्य-प्रदेश से यशवन्त सिंह को १९६६ में ‘हिन्दी के वादमुक्त कवि’
२. मगध विश्वविद्यालय, बिहार से रवीन्द्र राय को १९८५ में ‘कवि गुलाब खंडेलवाल व्यक्तित्व और कृतित्व’
३. मेरठ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश से विष्णुप्रकाश मिश्र को १९९२ में ‘गुलाब खंडेलवाल : जीवन और साहित्य’
४. रुहेलखंड विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश से पूर्ति अवस्थी को १९९४ में ‘कवि गुलाब खंडेलवाल के साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन’
५. महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश से स्नेहकुमारी कनौजिया को २००६ में ‘गुलाब खंडेलवाल के काव्य का शास्त्रीय अध्ययन’
६. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, हरियाणा से डॉ॰ रमापति सिंह के निर्देशन में हुये एक शोध को २००८ में
७. अवध विश्वविद्यालय से श्रीमती अंकिता मिश्रा को २०११ में ‘कवि गुलाब की काव्य दृष्टि
८. डॉ. यज्ञप्रसाद तिवारी के निर्देशन में मोनिका विश्नोई, नागपुर विश्वविद्यालय ‘महाकवि गुलाब खंडेलवाल की काव्य भाषा और शिल्प विधान’
उपर्युक्त शोध उनके समग्र साहित्य पर हुये हैं। गुलाबजीका काव्य-संसार बहुत विशाल है। अब आवश्यकता है कि उनके ग़ज़ल-साहित्य, गीति-काव्य, प्रबन्ध-काव्य, प्रसंगगर्भत्व, छन्दविधान, भाषा-प्रयोग, नाट्य-साहित्य, नूतन प्रयोग आदि पर अलग-अलग शोध किये जायें तभी उनके साथ न्याय हो सकता है।
पुरस्कार
गुलाबजी के काव्य पर मिले विभिन्न पुरस्कार -
छः पुस्तकें हिन्दी संस्थान (उत्तर-प्रदेश सरकार) द्वारा पुरस्कृत हुईं -
१. उषा (महाकाव्य)- उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत- १९६७ में
२. रूप की धूप - उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत- १९७१ में
३. सौ गुलाब खिले - उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत- १९७५ में
४. कुछ और गुलाब - उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत- १९८० में
५. अहल्या (खंडकाव्य) - उत्तर प्रदेश द्वारा विशिष्ट पुरस्कार- १९८० में
६. अहल्या (खंडकाव्य) - श्री हनुमान मन्दिर ट्रस्ट, कलकत्ता, अखिल भारतीय रामभक्ति पुरस्कार - १९८४ में
७. आधुनिक कवि,१९ - बिहार सरकार द्वारा, साहित्य सम्बन्धी अखिल भारतीय ग्रन्थ पुरस्कार १९८९ में
८. हर सुबह एक ताज़ा गुलाब - उत्तर प्रदेश द्वारा निराला पुरस्कार - १९८९ में
गुलाबजी अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के अध्यक्ष पद पर लगातार छः बार निर्विरोध चुने गये थे । वे महामना मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित भारती परिषद के भी अध्यक्ष रह चुके थे।
मौलिक कार्य तथा योगदान
गुलाबजी आजीवन अपनी मौलिक उद्भावनाओं से भारती के भंडार को समृद्ध करते रहे। उन्होंने अपना लक्ष्य यही निर्धारित किया-
"गंध बनकर हवा में बिखर जायँ हम
ओस बनकर पँखुरियों से झर जायँ हम
तू न देखे हमें बाग में भी तो क्या
तेरा आँगन तो खुशबू से भर जायँ हम
साहित्य के क्षेत्र में गुलाबजी के अवदान को नकारा नहीं जा सकता. उनका यह अवदान दो प्रकार का है। न सिर्फ़ उन्होंने उत्कृष्ट साहित्य की रचना ही की है बल्कि आनेवाली पीढ़ियों के लिये पगडंडियाँ भी बनाकर छोड़ी हैं। वे काव्य की अनेक विधाओं के प्रथम प्रणेता रहे हैं जिनका संक्षेप में उल्लेख इस प्रकार है -
दोहा
दोहा बहुत पुराना छन्द है किन्तु आधुनिक हिन्दी में बिहारी जैसे श्रृंगार के तथा डिंगल कवि सूर्यमल्ल जैसे वीररस के दोहे सर्वप्रथम गुलाबजी ने ही प्रस्तुत किये. उच्च कोटि की भावप्रवणता तथा भाषा का कसाव तथा प्रवाह कवि के सामर्थ्य के द्योतक हैं।
सॉनेट
गुलाबजी ने अंग्रेज़ी के सॉनेट रूप का हिन्दी में प्रथम बार १९४१ में प्रयोग किया। अनजान लोगों ने त्रिलोचन शास्त्री को सॉनेट के प्रवर्तक का नाम दे दिया. किसी ने शास्त्रीजी की पुस्तक खोल कर देखने का कष्ट भी नहीं किया कि वह गुलाबजी की पुस्तक के कितने समय बाद छपी थी तथा जिन्हें सॉनेट कहा जा रहा है वे सॉनेट की कसौटी पर खरे उतरते भी हैं या नहीं. सॉनेट केवल छन्द नही, अभिव्यक्ति की एक विधा है। केवल चौदह पंक्तियों की कविता सॉनेट नहीं हो जाती, पंक्तियों में विशेष प्रकार से तुकान्त का निर्वाह तथा अन्तिम दो पंक्तियों में भाव का समाहार भी होना चाहिये. त्रिलोचन शास्त्री की कविता में इन दोनों प्रमुख लक्षणों का अभाव होने से वे सॉनेट थे ही नहीं. गुलाबजी ने सॉनेट को इतना साध लिया था कि गाँधीजी के देहावसान के समाचार से मर्माहत होकर दो रातों में ४६ सॉनेटों की रचना कर डाली जो अविकल रूप से ’गाँधी-भारती’ के नाम से छपे. यद्यपि उनका सॉनेट को दिया गया हिन्दी नाम ’स्वानुभूति’ प्रचलित नहीं हो पाया पर सॉनेट सदा उनके लिये अभिव्यक्ति का स्वाभाविक प्रकार रहा। आजकल वे अंग्रेज़ी में कविता, ओड तथा सॉनेट लिख रहे हैं।
ग़ज़ल
गुलाबजी ने हिन्दी ग़ज़लों का सर्वप्रथम १९७१ में प्रवर्तन किया। यों तो इसे हिन्दी में ढालने का प्रयास काफ़ी समय से किया जा रहा था। किन्तु उर्दू की बहरों (छंदों) को हिन्दी भाषा में उतार लेने भर से हिन्दी ग़ज़ल नहीं बन जाती, हिन्दी की प्रतीक योजना, बिम्ब-विधान, आधारभूत दर्शन को भी इसमें गूँथना आवश्यक था। गुलाबजी ने इस संतुलन को साधा तथा हिन्दी भाषा के साथ उर्दू की आत्मा को भी ग़ज़ल में उतारा. जिस प्रकार छायावादी कवियों ने हिन्दी-साहित्य को, नई पदावली, अभिव्यक्ति के नये आयाम, भावों की सूक्ष्मता दी, उसी प्रकार गुलाबजी ने भी अपनी ग़ज़लों के प्रयोग से हिन्दी में नई संभावनाओं का विस्तार किया। आज ग़ज़ल हिन्दी की एक प्रचलित विधा है तथा इसका काफ़ी श्रेय भारती के इस मूक साधक को जाता है। गुलाबजी द्वारा लिखी ग़ज़लों की चार में से तीन पुस्तकें उत्तर प्रदेश सरकार से पुरस्कृत हुईं. इस प्रकार गुलाबजी ने न केवल हिन्दी में ग़ज़ल लिख कर साहित्य को समृद्ध किया बल्कि अगले ग़ज़लकारों का मार्ग भी प्रशस्त किया।
गीति-काव्य
सभी छायावादी कवियों ने सुन्दर गीत लिखे पर तत्समबहुल शब्द-विन्यास तथा वायवीयता, अस्पष्टता तथा एकान्विती का अभाव आदि छायावादी दोषों से आच्छन्न इन गीतों के तार न तो लोक-मानस से जुड़ सके न गायन से. ये साहित्यिक गीत केवल कविता की एक शैली के रूप में ही ग्राह्य हो पाये. गायन के लिये अब भी मध्ययुगीन गीतों का सहारा लेना पड़ता था। इससे उत्प्रेरित होकर गुलाबजी ने गेय गीतों की परंपरा को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। इनके भक्ति-गीतों के संग्रह ’भक्ति-गंगा’ तथा ’तिलक करें रघुबीर’ का उद्घाटन १९९७ में माननीय राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा के कर-कमलों द्वारा हुआ था। इन गीतों की भाषा सरल, भाव सघन तथा दर्शन गहन है। इनमें गेयता के साथ ही विशिष्ट तथा सामान्य - दोनों जनों को लुभाने की क्षमता है। संगीत में बद्ध होकर बहुत से गीतों ने गुलाबजी के प्रयोग की सार्थकता को प्रमाणित किया है। ’गीत-बृन्दावन’, सीता-बनवास’, तथा ’गीत-रत्नावली’- इन तीन पुस्तकों में गुलाबजी ने कथा के तारतम्य को गेय गीतों में इस प्रकार बाँधा है कि उन्हें मंच पर गीति-नाट्य अथवा नृत्य-नाट्य के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। इस प्रकार ये तीनों पुस्तकें प्रबंध भी हैं, मुक्तक भी; दृश्य हैं तथा श्रव्य भी, पाठ्य हैं तथा गेय भी. इनके कई गीत गाये तथा सराहे गये है तथा कई का मंच पर नृत्य के साथ प्रस्तुतिकरण भी हुआ है। इन गीतों में कृष्ण, राधा, सीता तथा रत्नावली के चरित्रों को भी नये रूप में दर्शाया गया है।
गीति-नाट्य
’बलि-निर्वास’ (दानवीर बलि) मिश्र काव्य (चम्पू-काव्य) अथवा गीति-नाट्य का विरल उदाहरण है। इसने परवर्ती साहित्य को काफ़ी प्रभावित किया है। ’दिनकर’ की ’उर्वशी’ से काफ़ी पूर्व की इस रचना का अप्सरा प्रसंग द्रष्टव्य है।
इनके अतिरिक्त मसनवी, ओड, गड़ेरिये के गीत, प्रतीक-काव्य आदि विधाओं का सफल प्रयोग किया।
अब प्रश्न है वे साहित्य की किस धारा, किस प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं तो लगभग ७० वर्षों से कविता की उपासना करनेवाले कवि से यह तो आशा नहीं की जा सकती कि वह केवल एक प्रकार की ही कविता करेगा. गुलाबजी के भी हमें विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। वे प्रबन्धकार हैं तो ग़ज़लकार और गीतकार भी; छन्दबद्ध काव्य में सिद्धहस्त हैं तो छन्दमुक्त काव्य तथा हाइकू में भी उतना ही अधिकार रखते हैं।
खेमों में बँटी हुई दुनिया में स्वतन्त्रचेता गुलाबजी कभी प्रवाह के साथ नहीं चले, कभी किसी गुट या वाद का सहारा नहीं लिया। उन्होंने सदैव नूतन प्रयोग किये हैं तथा सदा प्रगति के पथ पर अग्रसर रहने से वे सच्चे अर्थों में प्रगतिवादी हैं।
पूर्ति मिश्र के अनुसार, "१९४० से आजतक कदाचित् ही कोई ऐसा, हिन्दी साहित्य का पाठक, सम्पादक या समीक्षक होगा जिसने अद्भुत् साहित्य-स्रष्टा श्री गुलाब खंडेलवाल की चर्चा या प्रशंसा न की हो."
आचार्य विश्वनाथ सिंह के शब्दों में -
"महाकवि गुलाब खंडेलवाल, साहित्य की अजस्र मंदाकिनी प्रवाहित करनेवाले प्रथम कोटि के साहित्यकारों की पंक्ति में अग्रणी हैं। पिछले छः-सात दशकों से प्रयाग, दिल्ली, बंबई, कोलकाता, मद्रास, भारत, अमेरिका और कनाडा आदि देशों के साहित्यिक-सांस्कृतिक जीवन को गुलाबजी अपनी सारस्वत-साधना से गौरव-मंडित कर रहे हैं। अपनी निःसर्ग-सहज प्रतिभा के नवोन्मेष से उन्होंने काव्य की विविध विधाओं में नवीन क्षितिजों का उद्घाटन किया है। उनकी प्रत्येक पुस्तक काव्य में किसी न किसी नवीन विधा की स्थापना करती है। प्रकृति और प्रेम की स्वच्छन्द भावव्यंजना के गीत हों या देशभक्ति से अनुप्राणित सशक्त और प्रवाह्पूर्ण दोहे और सॉनेट, जीवन की मार्मिक अनुभूतियों से निःसृत ग़ज़लें, रुबाइयाँ और मुक्तक हों अथवा गम्भीर जीवन-दर्शन की विवृति करनेवाले खंडकाव्य, महाकाव्य और काव्यनाटक - सर्वत्र गुलाबजी की प्रतिभा काव्य के नये आयामों का अनुसंधान करती चलती है। ग़ज़ल जैसी उर्दू की मँजी हुई विधा में उन्होंने हिन्दी के स्वीकृत सौन्दर्यबोध का अभिनिवेश करके संयम और सुरुचि की वृत्तरेखा के भीतर मार्मिक अनुभूतियों की उपलब्धि की है। उनका ’सौ गुलाब खिले’ हिन्दी की अपनी कही जाने योग्य स्तरीय ग़ज़लों का पहला संकलन है। इसके बाद उन्होंने ’पंखुरियाँ गुलाब की’, ’कुछ और गुलाब’, ’हर सुबह एक ताजा गुलाब’ जैसी अन्य कृतियों में ३६५ ग़ज़लें लिखकर इस प्रयोग को पूर्णता तक पहुँचा दिया है। किशोर जीवन के रोमांटिक सौंदर्यबोध से यात्रा आरम्भ करके जहाँ उनकी साधना शाश्वत जीवन-मूल्यों के आलोकवृत्त में केन्द्रित हुई है, वहीं उनकी कला ने छायावाद की स्वीकृत अभिव्यंजना प्रणाली को मौलिक बिम्ब-विधान और विविध छन्द-प्रयोगों से नया सामर्थ्य प्रदान किया है। प्रतिभा के सत्त्व और अभिव्यंजना की समृद्धि के विचार से छायावाद के कवि-चतुष्टय के बाद, गुलाबजी हिन्दी के सबसे महत्त्वपूर्ण कवि हैं।
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अपने साहित्यिक कृतित्व से गुलाबजी ने बिहार, उत्तर-प्रदेश, बंगाल, राजस्थान और सुदूर केरल में ही नहीं विदेशों में भी ख्याति अर्जित की है। सुधी विद्वत्समाज से लेकर साधारण साहित्य-प्रेमियों तक उनके गीत और ग़ज़लें आकाशवाणी से प्रसारित और सुगम संगीतकारों द्वारा प्रचारित होकर जनता का कंठहार हो रही हैं; गुलाबजी की ग़ज़लों में काव्य के व्यंजन के साथ जो संगीत का स्वर है तथा उनके गीतों में जो सहजता है वह आजकल की पठ्य-अपठ्य हिन्दी कविता को काव्य की श्रव्यता प्रदान करने का सफल साधन है। उत्तरप्रदेश-सरकार ने उनकी छः रचनाओं - उषा, रूप की धूप, सौ गुलाब खिले, कुछ और गुलाब, हर सुबह एक ताज़ा गुलाब और अहल्या को पुरस्कृत करके कवि के साथ-साथ साहित्य-साधना को भी सम्मानित किया है।
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पिछले दो दशकों में उन्होंने न केवल छन्दमुक्त रचना के विविध प्रयोग ही किये हैं, तुलसी, सूर, मीरा की भक्तिगीतों की धारा में प्रायः एक सहस्र गीतों का सृजन करके साहित्य से संगीत को पुनः जोड़ने का महान कार्य भी संपादित किया है। इसके अतिरिक्त गुलाबजी ने ’गीत-वृन्दावन’, ’सीता-वनवास’ तथा ’गीत-रत्नावली’ जैसे गीति-काव्यों की रचना करके राधा, सीता और रत्नावली के जीवन की त्रासदी को भी नये परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। इधर की ही लिखी हुई उर्दू मसनवी की शैली में उनकी नवीन रचना, ’प्रीत न करियो कोय’, हिन्दी के काव्य-साहित्य में एक नया आयाम जोड़ती है। जहाँ इस रचना द्वारा वे उर्दू के प्रमुख मसनवी-लेखक, मीर हसन और दयाशंकर ’नसीम’ की श्रेणी में आ गये हैं वहीं अपने भक्तिगीतों की सुदीर्घ श्रृंखला द्वारा उन्होंने कबीर, सूर, तुलसी और मीरा की परंपरा में अपना स्थान सुरक्षित करा लिया है।"
स्मृतियाँ : सम्मतियाँ
महादेवी वर्मा ने एक बार अफ़सोस जताते हुये कहा, "आपके साथ हिन्दीवालों ने न्याय नहीं किया!" उनके काव्य-पाठ को सुनकर वे बोलीं, "मेरे आँखों के सम्मुख एक-एक कर चित्र आते जा रहे थे।" स्पष्टतः उनका संकेत गुलाबजी के काव्य की बिम्बात्मकता की ओर था।
कविता
- "बहुत-सी रचनायेँ, जो कविता की कोटि में आसानी से अपने दल खोल चुकी हैं, खुशबू से उन्मद, स्निग्ध कर देती हैं।"
-महाकवि निराला
- "भाव और भाषा का इतना सुन्दर सामन्जस्य कदाचित ही हिन्दी के किसी कवि ने इस अवस्था में ऐसा किया हो."
-श्री बेढब बनारसी
- "लगता है, विधाता ने मेरे हृदय का ही एक टुकड़ा तुम्हारे हृदय में रख दिया है। मैंने ’कविता’ को उन संग्रहों में रख दिया है जिन्हें मैं फिर-फिर देखना चाहता हूँ। "
चाँदनी
- "कवि के हाथों में शब्द नाचते हुए आते हैं।"
-बेढब बनारसी
- "आभामय जगत का ऐसा मुग्धकारी वर्णन दूसरे स्थान पर कठिनाई से मिलेगा."
-श्री विश्वम्भर ’मानव’
बलि-निर्वास
- "आप जन्मजात कवि हैं। ’बलि-निर्वास’ की प्रथम पंक्ति ही ’यदि स्वर्ग कहीं है तो वह मेरे ही उर में है’ आपकी अद्भुत प्रतिभा का परिचय देती है। तथा ’पद-विन्यासमात्रेण’ की उक्ति को चरितार्थ करती है।"
- "आपका ’बलि-निर्वास’ खूब है। मैंने और पंतजी ने उसे अत्यन्त चाव से पढ़ा है। हम दोनों आपके परम प्रशंसक हैं।"
कच-देवयानी
- "आप खरे धनी हैं, तभी तो आपने वाणी को इतने अलंकार दिये हैं कि उसे राजरानी बना देते हैं।"
उषा
- "वृहत्काय या महाकाय कथाबंध में वस्तु (कथा)-गत स्वच्छन्दता दिखाने का साहस हिन्दी के परम स्वतन्त्र प्रातिभ (जयशंकर प्रसाद) को भी नहीं हो सका. इस क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्रता से प्रविष्ट होने का साहसपूर्ण पदन्यास एक प्रकार से प्रतीक्षित था। यही कार्य आधुनिक हिन्दी-काव्यधारा में हमारे सुपरिचित प्रातिभ श्री गुलाब खंडेलवाल ने प्रस्तुत कृति ’उषा’ में किया है।"
-आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
- "मुक्तपंख कल्पना तथा गहन गंभीर अनुभूतियों का ऐसा अद्भुत परिपाक कम देखने को मिलता है। . . जीवन का ज्ञानपरुष गूढ़ सत्य इस काव्य में रस-तरल होकर हृदय को स्पर्श करने की क्षमता रखता है। गुलाब की सौंदर्य-दृष्टि तथा काव्य-भावना आधुनिक है। उन्होंने काव्य की पंक्ति-पंक्ति में इतने अधिक एवं उच्च कोटि के उपादान भर दिये हैं कि उनसे सहज ही ऐसे चार और महाकाव्यों का प्रणयन हो सकता है। . . यदि मैं इस काव्य के कवित्व-वैभव के उदाहरण प्रस्तुत करूँ तो मुझे आधे से अधिक इसके छन्दों को उद्धृत करना पड़ेगा. क्या प्रकृति-वर्णन, क्या मानव-भावनाओं की सूक्ष्म धूप-छाँह का चित्रण, सभी में कवि ने अपनी कला-क्षमता तथा शिल्पबोध से नया चमत्कार पैदा कर दिया है। मौलिक उपमाओं, उत्प्रेक्षाओं तथा लाक्षणिक बिम्ब-विधान के कारण इस काव्य में छायावाद के सर्वोत्तम उपकरणों का प्रचुर मात्रा में उपयोग हुआ है और उनमें कवि की मौलिक काव्यदृष्टि के कारण नये आयाम उदित हुये हैं।"
-महाकवि सुमित्रानंदन पंत
- "सौंदर्य, प्रकृति-प्रेम, राष्ट्रीय भावना, युद्ध, जीवन के उत्थान-पतन तथा मानवीय मनोविकारों के जैसे वर्णन इन्होंने किये हैं, वे इनकी काव्य-प्रतिभा के परिचायक रहेंगे. भाव, भाषा, छंद और अलंकरण की यह श्रेष्ठता प्रारम्भ से लेकर अंत तक बनी हुई है। हृदय की सच्ची प्रेरणा, जीवन की गहरी अनुभूति, काव्य के प्रति अटूट लगन और श्रेष्ठ मानव-मूल्यों में आस्था होने से ही ऐसे ग्रन्थों की रचना संभव होती है। प्रेम, त्याग और आदर्श के मूल्यों में विश्वास प्रकट करना, नये गीतकार को प्रयोगवादी कवियों से पृथक् कर भारतीय संस्कृति के वाहक कवियों की पंक्ति में ला खड़ा करता है।"
-श्री विश्वम्भर ’मानव’
- "नयी कविता के कोलाहलपूर्ण वातावरण में महाकाव्य की परम्परा के प्रति आस्थावान कवि को हम बधाई देते हैं। कवित्व का परिपाक बड़ा ही रमणीय और मनोहारी है। इस महाकाव्य से परम्परा-प्रेमियों को भी आनन्द प्राप्त होगा और नवीनता के आग्रहियों को भी."
-प्रो॰ देवेन्द्रनाथ शर्मा
रूप की धूप
- "’रूप की धूप’ मुझे बहुत पसन्द आयी। इसमें उर्दू के समान, प्रायः उसीके छन्दों में सहज ही प्रभाव डालनेवाली बेधक उक्तियाँ हैं, जो बहुत ही आकर्षक और प्रभावशाली रूप में अभिव्यक्त है।"
- "सचमुच गुलाब नहीं, आप तो खिले गुलाब हैं। आपकी विशेषता है - निरन्तरता, कि आप बिना मुरझाये खिलते रहे हैं। इस महक को मेरा प्यार-दुलार पहुँचे।"
-कन्हैयालाल मिश्र ’प्रभाकर’
- "जब गम्भीर साहित्य की चर्चा चलती है तो गुलाबजी के गीत सुना-सुनाकर मैं लोगों को चकित कर देता हूँ. मैं गुलाबजी को अपनी पीढ़ी का सर्वश्रेष्ठ कवि मानता हूँ’"
-पद्मभूषण डॉ॰ रामकुमार वर्मा
- "समग्र रूप से ’रूप की धूप’ अत्यन्त सुहावनी है। जिस सौभाग्यशालिनी पर यह पड़ जायेगी वह धन्य हो जायेगा."
-आचार्य सीताराम चतुर्वेदी
सौ गुलाब खिले
- "आपकी गुलाबबाड़ी की बहुत सैर करता हूँ. . . आपने हिन्दी में ग़ज़लों का बहुत ही सफल प्रयोग किया है और वह भी उर्दू से अलग रहकर. बहुत से शेर ग़ज़लों से हटकर मुहावरे बन गये हैं"
- "आपका आत्मविश्वास अद्भुत है। आप अपनी शैली के सम्राट हैं।"
-केदारनाथ मिश्र ’प्रभात’
- "क्षेत्र के विशेषज्ञ देखें कि हिन्दी को यहाँ क्या मिला है और सहृदय शब्द-शब्द में स्पन्दित हृदय की ध्वनि सुनें और अर्थ की बहुधा तरंगों का निरीक्षण करें"
-त्रिलोचन शास्त्री
- "गुलाब की बहुमुखी प्रतिभा का नव रूप, नव विकास. जन-रंजन भी और सज्जनप्रिय भी."
आलोकवृत्त
- "गुलाबजी छायावाद युग के कृति हैं अतः उनकी रचना में तथ्य भाव-समुद्र की तरंगों की तरह आते हैं। कहीं-कहीं ’कामायनी’ की पंक्तियों का स्मरण हो आना भी स्वाभाविक है।"
पँखुरियाँ गुलाब की
- "गुलाबजी ने ग़ज़ल की आत्मा को पहचाना है और न केवल उर्दू ग़ज़लों का-सा सहज शब्द-विन्यास, बाँकपन और तेवर उनकी ग़ज़लों में मिलता है, बल्कि ग़ज़लों के अनुरूप वर्ण्य-विषय देने में तथा संप्रेषणीयता और भाव-प्रवाह उत्पन्न करने में भी वे खरे उतरे हैं। गुलाबजी ने उर्दू ग़ज़लों के मोहक रूप को सांगोपांग हिन्दी में उतारकर हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की है।"
-श्री गंगाशरण सिंह (अध्यक्ष अ. भा. हिन्दी संस्था संघ)
- "हिन्दी ग़ज़ल की इस विधा के अनुरूप वाणी, स्वर-सौरभ और एक स्तर के मूल्योत्कर्ष से विभूषित करनेवाले अग्रणी तो आप हैं ही और पंक्ति भी आपकी ही बनायी है इसलिये प्रथम; कोई स्पर्धा निकट आती नहीं दीखती, इसलिये स्थान भी श्रद्धया सुरक्षित."
-जगदीश पांडेय (पू. अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, जैन कॉलेज, आरा)
- "इसकी प्रत्येक पंक्ति पठनीय ही नहीं स्मरणीय भी है।"
-शंकरदयाल सिंह (संसदसदस्य)
- "ये ग़ज़लें बहुआयामी हैं। इनमें कवि की आत्माभिव्यक्ति ही नहीं, आत्मसमर्पण भी है। लौकिक और आध्यात्मिक प्रेम की सार्थक अभिव्यक्ति इन ग़ज़लों की विशेषता है।"
अहल्या
- "कवि के शब्द-चयन, उसके भाषा के अधिकार, सुन्दर वर्णमैत्री और अभिव्यक्ति की सामर्थ्य ने मुझे अत्यन्त प्रभावित किया है। प्रांजल और संस्कृतनिष्ठ होते हुये भी कहीं भी मुझे क्लिष्टता नहीं दीख पड़ी. भाषा पर कवि का असाधारण अधिकार है। इस काव्य का प्रकाशन एक ’घटना’ है और मुझे विश्वास है कि यह काव्य कालांतर में हिन्दी का एक गौरव-काव्य माना जायेगा."
-पद्मभूषण पं॰ श्रीनारायण चतुर्वेदी
- "जिस विषय पर पुराणों से लेकर आधुनिक काल तक अनेक महान कलाकारों ने लिखा है, उसपर कुछ नया या नये ढंग से लिखना आसान नहीं है। लेकिन इस दुष्कर कार्य का संपादन गुलाबजी ने बहुत सफलता के साथ किया है।"
-श्री गंगाशरण सिंह (अध्यक्ष अ. भा. हिन्दी संस्था संघ)
विविध
- "गुलाबजी की कल्पना की अनूठी उड़ान, भाषा की नैसर्गिक छटा तथा भावनाओं की सुकुमारता अनायास ही श्री जयशंकर प्रसाद की उत्कृष्ट शैली का स्मरण दिलाती है। तथापि उनकी काव्यधारा वर्तमान जीवन तथा समाज की यथार्थ परिस्थितियों से पृथक् न होकर उनसे तादात्म्य स्थापित करने में समर्थ है।"
- "गुलाबजी नैसर्गिक कवि हैं। इसलिये उन्होंने जीवन और प्रकृति के सूक्ष्म तंतुओं को समझा है, उन्हें काव्य में उतारा है।"
- "आपकी प्रतिभा ने अनेकरूपात्मक विकास कर लिया है। आप हिन्दी के परम समर्थ कवि हो गये हैं, इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है।"
- "’शब्दों से परे’ में गोचर से अगोचर की ओर एक प्रच्छन्न प्रस्थान है। कहीं-कहीं कवि का अंतर्मन महाशून्य के द्वार पर दस्तकें देता हुआ दीखता है।"
-डॉ॰ कुमार विमल
- "’विनयपत्रिका’ के तुलसी की तरह ’सब कुछ कृष्णार्पणम्’ का कवि भी अपने प्रभु से साक्षात् वार्तालाप करता-सा प्रतीत होता है।"
-पं. विष्णुकान्त शास्त्री (पू. अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कलकत्ता वि.विद्यालय, राज्यपाल, हिमाचल प्रदेश)
- "गुलाबजी की कृति ’हम तो गाकर मुक्त हुए’ ने समसामयिक हिन्दी-साहित्य को शाश्वत भाव-विभूति प्रदान की है।"
-डॉ कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह (पू. अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मगध वि. विद्यालय)
- "हिन्दी कविता में ग़ज़ल के प्रयोग की चेष्टा अनेक बार की गई है परन्तु गुलाबजी को ’कुछ और गुलाब’ नामक काव्य-संग्रह में इस दिशा में अभूतपूर्व सफलता मिली है।"
-श्री महेश नारायण शुक्ल (पू. मुख्य न्यायमूर्ति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय)
- "अव्यक्त का व्यक्तीकरण और कवि का उसके साथ भाव-विनिमय, यही ’व्यक्ति बनकर आ’ का मूल स्वर है। भाव और शिल्प का विरल संतुलन ही इस काव्य की उपलब्धि है।"
-आचार्य विश्वनाथ सिंह
- "’बूँदें जो मोती बन गयीं’ ऐसी बूँदों का संकलन है जो मोती बन गयी हैं, इन कविताओं में संवेदना का नवोन्मेष बिंब-विधान की मौलिकता का आश्रय लेकर नूतन काव्य-शिल्प में व्यक्त हुआ है।"
-आचार्य विश्वनाथ सिंह
- "आश्चर्य है, गुलाबजी का कवि हमेशा कितना तरुण है। वह सतत नये-नये रूपों में, नयी भंगिमा लिये, अपनी नयी अदा लेकर उपस्थित होता है। रचना का वैविध्य, कवि का निजी वैशिष्ट्य है। यह इस प्रतिभा-पुत्र, सहृदय का हमारे साहित्य को एक अनवद्य वर है।"
-पं. अक्षयचन्द्र शर्मा
- "श्री खंडेलवाल की प्रायः आधी शती की काव्य-साधना में काव्य की जो विविधता और कहीं-कहीं जो ऊँचाई देखने में आती है, वह आश्चर्यजनक है।"
-पद्मभूषण पं॰ श्रीनारायण चतुर्वेदी
- "ग़ज़ल की रवानी, गीतों की संपन्न अनुभूति एवं नाट्य-कृतियों के-से संवाद स्वाभाविक भाषा एवं सहज संवेद्य शैली में ’चन्दन की कलम शहद में डुबो-डुबोकर’ में आये हैं। सफल कृति के लिये सफल सर्जक के प्रति हार्दिक श्रद्धा एवं आह्लाद के भाव-सुमन अर्पित करता हूँ। "
-डॉ॰ हंसराज त्रिपाठी (तिलक डिग्री कॉलेज, प्रतापगढ़, उ. प्र.)
- "गुलाबजी की कृति ’कितने जीवन, कितनी बार’ हिन्दी के आधुनिक गीत-साहित्य को संगीत से जोड़ने का सफल प्रयास है। अपनी प्रौढ़ता, सरलता एवं गहन भावानुभूति के कारण यह रचना हिन्दी-साहित्य की श्रेष्ठतम कृतियों में गिनी जायगी."
-डॉ॰ शम्भुशरण सिन्हा (कॉमर्स कॉलेज, पटना)
- "यदि गुलाबजी ने और कुछ भी न लिखकर केवल ’गीत-वृन्दावन’ और ’सीता-वनवास’ की रचना की होती तो भी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में उनकी गणना होती."
-इंदुकांत शुक्ल (यू॰एस॰ए॰)
- Gulab Khandelwal's poems reminds us of passages from Tagore, specially where he addresses the Divine Father with moving sincerety and deep feeling.
-Dr. कर्ण सिंह (Ex Sadre Riyasat of Jammu & Kashmir, Ex- Cabinet Minister in Indian Government)
गुलाब काव्य की सांगीतिक प्रस्तुति
प्रसिद्ध ठुमरी गायिका डॉ अनीता सेन ने गुलाब जी की कुछ रचनाओं को अपना स्वर दिया है।
इसके अतिरिक्त कोलकाता, भारत में उनके गीतों को बहुत से कलाकारों ने अपनी आवाज़ से सजाया है।
रचनायें
महाकवि गुलाब खंडेलवाल की पुस्तकें
क्रम-संख्या | पुस्तक का नाम | रचना काल | विधा | भूमिका लेखक |
---|---|---|---|---|
1 | कविता | 1939-41 | गीत एवं कवितायें | महाकवि 'निराला' |
2 | अनबिंधे मोती | 1939-83 | गीत एवं कवितायें | स्वयं |
3 | चाँदनी | 1940-44 | गीत | श्री कृष्ण देव प्रसाद गौड़ 'बेढब बनारसी' |
4 | ऊसर का फूल | 1940-50 | गीत एवं कवितायें | कवि श्री इम्तियाज़ुद्दीन खां |
5 | नूपुर बँधे चरण | 1940-51 | गीत एवं कवितायें | श्री नथमल केड़िया |
6 | सीपी-रचित रेत | 1941-46 | सॉनेट | स्वयं |
7 | प्रेम-कालिन्दी | 1941-77 | गीत | स्वयं |
8 | शब्दों से परे | 1941-82 | गीत एवं कवितायें | डॉ राजेश्वर सहाय त्रिपाठी |
9 | आधुनिक कवि - १९, गुलाब खंडेलवाल | 1941-84 | प्रतिनिधि रचनायें | डॉ प्रेम नारायण शुक्ल |
10 | प्रेम-वीणा | 1941-96 | गीत एवं कवितायें | स्वयं |
11 | अन्तःसलिला | 1941-96 | गीत, मुक्तक एवं कवितायें | स्वयं |
12 | देश विराना है | 1941-97 | गीत एवं कवितायें | स्वयं |
13 | बलि-निर्वास | 1943 | चम्पू काव्य (काव्य-नाटक) | श्री एन वी कृष्णवारियर |
14 | भावों का राजकुमार | 1943-97 | गीत एवं कवितायें | स्वयं |
15 | कच-देवयानी | 1944-45 | खंड-काव्य | स्वयं |
16 | उषा | 1945-47 | महाकाव्य | महाकवि सुमित्रानंदन पन्त तथा आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र |
17 | चन्दन की कलम शहद में डुबो-डुबोकर | 1947-83 | कविता एवं नज़्म | डॉ हंसराज त्रिपाठी |
18 | गाँधी भारती | 1948 | सॉनेट | स्वयं |
19 | कालजयी | 1948-2006 | गीत, मुक्तक एवं कवितायें | प्राचार्य विश्वनाथ सिंह |
20 | अहल्या | 1948-50 | खंड-काव्य | पद्मभूषण पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी तथा माननीय श्री गंगा शरण सिंह |
21 | भूल | 1949 | नाटक | स्वयं |
22 | आयु बनी प्रस्तावना | 1949-71 | गीत | स्वयं |
23 | मेरी उर्दू ग़ज़लें | 1950-55 | ग़ज़ल | स्वयं |
24 | रूप की धूप | 1960-70 | रुबाइयां, मुक्तक और दोहे | पंडित सीताराम चतुर्वेदी |
25 | राजराजेश्वर अशोक | 1961 | नाटक | पंडित सीताराम चतुर्वेदी |
26 | बिखरे फूल | 1961-96 | गीत | स्वयं |
27 | मेरे भारत, मेरे स्वदेश | 1962 | देशभक्ति के गीत एवं दोहे | स्वयं |
28 | कुमकुम के छींटे | 1965-70 | छंदमुक्त कवितायें | स्वयं |
29 | आलोकवृत्त | 1968-73 | खंड-काव्य | श्रीमती महादेवी वर्मा |
30 | सौ गुलाब खिले | 1970-73 | ग़ज़ल | श्री त्रिलोचन शास्त्री |
31 | पँखुरियाँ गुलाबकी | 1973-74 | ग़ज़ल | स्वयं |
32 | कुछ और गुलाब | 1977-80 | ग़ज़ल | माननीय श्री महेश नारायण शुक्ल |
33 | हर सुबह एक ताज़ा गुलाब | 1978-81 | ग़ज़ल | प्राचार्य विश्वनाथ सिंह |
34 | नये प्रभात की अँगड़ाइयाँ | 1980-83 | छंदमुक्त कवितायें | पंडित अक्षय चन्द शर्मा |
35 | व्यक्ति बनकर आ | 1981-82 | छंदमुक्त कवितायें | प्राचार्य विश्वनाथ सिंह |
36 | बूँदें - जो मोती बन गयीं | 1981-82 | मुक्तक | स्वयं |
37 | Gulab Khandelwal - Selected Poems | 1983 | कविता | डॉ कर्ण सिंह |
38 | कस्तूरी कुंडल बसे | 1983- 84 | मुक्तक | स्वयं |
39 | रेत पर चमकती मणियाँ | 1983-84 | छंदमुक्त कवितायें | स्वयं |
40 | एक चन्द्रबिम्ब ठहरा हुआ | 1983-84 | छंदमुक्त कवितायें | स्वयं |
41 | सब कुछ कृष्णार्पणम् | 1983-85 | भक्ति-गीत | पंडित विष्णुकांत शास्त्री |
42 | भक्ति-गंगा | 1983-97 | भक्ति-गीत | श्री लक्ष्मीनारायण शर्मा |
43 | हम तो गा कर मुक्त हुये | 1986-87 | गीत | डॉ कुँवर चन्द्र प्रकाश सिंह |
44 | कितने जीवन, कितनी बार | 1988 | गीत | स्वयं |
45 | नाव सिन्धु में छोड़ी | 1991 | गीत | पद्मश्री क्षेमचन्द्र 'सुमन' |
46 | गीत-वृन्दावन | 1991 | गीति नाट्य | डॉ शम्भूशरण सिन्हा |
47 | सीता-वनवास | 1991-92 | गीति नाट्य | स्वयं |
48 | तिलक करें रघुबीर | 1991-92 | भक्ति-गीत | श्री छोटेनारायण शर्मा |
49 | करुणा-त्रिवेणी (गीत-वृन्दावन, सीता-वनवास, गीत रत्नावली) | 1991-99 | गीति नाट्य | डॉ शम्भूशरण सिन्हा श्री वासुदेव पोद्दार तथा स्वयं |
50 | प्रीत न करियो कोय | 1994 | मसनवी | श्री गुलज़ार देहलवी तथा श्री इम्तियाज़ुद्दीन खां |
51 | नहीं विराम लिया है | 1998-99 | गीत | स्वयं |
52 | तुझे पाया अपने को खोकर | 1999-2000 | गीत | स्वयं |
53 | दिया जग को तुझसे जो पाया (इसमें ’देहली का पत्थर’ तथा ’पत्र-पुष्प’ भी सम्मिलित है) | 2000-03 | गीत | श्री मुरारीलाल त्यागी तथा डॉ मनोहर लाल शर्मा |
54 | मेरे गीत तुम्हारा स्वर हो | 2005-06 | गीत | स्वयं |
55 | ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया | 2007-08 | गीत | स्वयं |
56 | कागज की नाव | 2008 | गीत एवं कवितायें | स्वयं |
57 | ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं | 2008 | आत्मकथा | स्वयं |
58 | The Evening Rose (द इवनिंग रोज़) | 2008-09 | कविता | स्वयं |
59 | गुलिवर की चौथी यात्रा | 2010-11 | गीत | स्वयं |
60 | गुलाब ग्रन्थावली (परिवर्धित संस्करण) खंड एक, भाग एक | 1941-2000 | गीत एवं कवितायें | पद्मभूषण पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी तथा प्राचार्य विश्वनाथ सिंह |
61 | गुलाब ग्रन्थावली (परिवर्धित संस्करण) खंड एक, भाग दो | 1983-2000 | गीत | पद्मभूषण पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी |
62 | गुलाब ग्रन्थावली (परिवर्धित संस्करण) खंड दो | 1983-2000 | छंदमुक्त कवितायें एवं गीति नाट्य | पद्मभूषण पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी तथा प्राचार्य विश्वनाथ सिंह |
63 | गुलाब ग्रन्थावली (परिवर्धित संस्करण) खंड तीन | 1941-2000 | सॉनेट, दोहे, गीत एवं ग़ज़लें | पद्मभूषण पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी |
64 | गुलाब ग्रन्थावली (परिवर्धित संस्करण) खंड चार | 1941-2000 | काव्य नाटक, खंडकाव्य, महाकाव्य एवं मसनवी | पद्मभूषण पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी |
65 | गुलाब ग्रन्थावली (परिवर्धित संस्करण) खंड पांच | 1939-2010 | गीत, कवितायें, अंग्रेजी कवितायें एवं उर्दू ग़ज़लें | डॉ सत्यनारायण व्यास |
66 | गुलाब ग्रन्थावली (परिवर्धित संस्करण) खंड छ: | 1949-2011 | गीत, नाटक, अंग्रेजी कवितायें, कवि परिचय, अनुक्रमणिका एवं शुद्धि पत्र | श्रीमती प्रतिभा खंडेलवाल |
67 | हंसा तो मोती चुगे | |||
68 | हर मोती में सागर लहरे | गीत | ||
69 | गीत रत्नावली | गीत | ||
70 | रविंद्रनाथ हिंदी के दर्पण में | गीत | ||
71 | महाकवि गुलाब खंडेलवाल चुनी हुई रचनाएँ भाग-1 | |||
72 | महाकवि गुलाब खंडेलवाल चुनी हुई रचनाएँ भाग-2 | |||
73 | गुलाब खंडेलवाल साहित्यकारों की दृष्टि में | गद्य | ||
74 | निरालाजी की स्मृतियाँ | गद्य | ||
75 | बच्चन जी की यादें | गद्य | ||
76 | मसूरी का प्रसंग | गद्य |