गुब्बी तोट्दप्पा
राव बहादुर धर्मप्रवर्थ गुब्बी तोट्दप्पा | |
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जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जीवन संगी | गौराम्मा |
व्यवसाय | दानी, RBDGTC ट्रस्ट संस्थापक |
पेशा | व्यापारी |
धर्म | हिंदू |
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राव बहादुर "धर्मप्रवर्थ" गुब्बी तोट्दप्पा ( कन्नड़:ರಾವ್ ಬಹದ್ದೂರ್ ಧರ್ಮಪ್ರವರ್ತ ಗುಬ್ಬಿ ತೋಟದಪ್ಪ ), (१८३८ - १९१०) एक भारतीय व्यापारी और परोपकारी थे।[१] उन्होंने देश भर के पर्यटकों के लिए "तोट्दप्पा छत्र" नामक एक मुफ्त आवास स्थान की स्थापना की।[१] उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा "राव बहादुर" और मैसूर के महाराजा कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ द्वारा "धर्मप्रवर्थ" शीर्षक से सम्मानित किया था।[१]
प्रारंभिक वर्ष
तोट्दप्पा का जन्म १८३८ में गुब्बी के लिंगायत परिवार में हुआ था। बाद के वर्षों में उनका परिवार बेंगलुरु चले गये जहां उन्होंने ममुलपेट में अपना व्यापार शुरू किया।
सामाजिक कार्य
अपने बच्चे ना होने के कारण, तोट्दप्पा ने अपनी सारी संपत्ति का उपयोग पर्यटकों और छात्रों के लाभ के लिए करने का निर्णय लिया। उन्होंने राव बहादुर धर्मप्रवर्थ गुब्बी तोट्दप्पा चैरिटी (आर॰ बी॰ डी॰ जी॰ टी॰ सी) नामक ट्रस्ट की स्थापना की। १८९७ में, ट्रस्ट ने बेंगलुरु सिटी रेलवे स्टेशन के पास जमीन का एक टुकड़ा खरीदा और ११ फरवरी १९०३ को कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ ने आधिकारिक तौर पर धर्मचत्र (यात्रा करने वालों के लिए) और मुफ्त छात्रावास (छात्रों के लिए) खोला।[२] अपने आखिरी दिनों के दौरान उन्होंने अपनी सारी संपत्ति आर॰ बी॰ डी॰ जी॰ टी॰ सी ट्रस्ट को दान कर दी और के॰ पी॰ पुट्टाना चेटि को उस ट्रस्ट के पहले अद्यक्ष के रूप में नियुक्त किया। ट्रस्ट आज भी अपना काम जारी रखता है। यह छात्रावास सुविधा पूरे कर्नाटक में विस्तारित की गई थी। वर्ष २००५ में, छात्रावास का पुनर्निर्माण किया गया। अपने शताब्दी के लिए, ट्रस्ट ने केम्पेगौड़ बस स्टेशन पर बेल्ल होटल को आय के एक स्रोत के रूप में बनाया। आवास सुविधा एक मामूली दर पर आवास प्रदान करती है और सभी के लिए खुली होती है, चाहे व्यक्ति का धर्म कुछ भी हो।[२] छात्रावास का उपयोग वीरशैव समुदाय से संबंधित छात्रों के लिए विशेष है। अब तक छात्रावास में सरकारी अनुदान प्राप्त नहीं हुआ है। हर वर्ष लिंगायत धर्म के विद्यार्थियों को योग्यता के लिए ट्रस्ट पुरस्कार देता है।[३]
सम्मान
- १९०५ में, उन्हें उनकी सामाजिक सेवाओं के लिए मैसूर के महाराजा कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ द्वारा "धर्मप्रवर्थ" की उपाधि प्रदान की गयी।
- १९१० में, भारत के सम्राट जॉर्ज पंचम ने उन्हें "राव बहादुर" की उपाधि दी।
निधन
२१ फरवरी १९१० को तोट्दप्पा की ७२ वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई।
प्रभाव
- डॉ श्री श्री श्री शिवकुमार स्वामीजी १९२७ - १९३० के वर्षों के दौरान तोट्दप्पा छात्रावास के छात्र थे।
- कर्नाटक के चौथे मुख्यमंत्री, एस निजलिंगप्पा, १९२१ - १९२४ के वर्षों में तोट्दप्पा छात्रावास के छात्र थे।
- बंगलौर सिटी रेलवे स्टेशन के सामने का सड़क उनके सम्मान में "गुब्बी तोट्दप्पा रोड" नामित किया गया था।
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ साँचा:cite web
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