गदाधर भट्ट

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गदाधर भट्ट गौड़ीय संप्रदाय के प्रमुख भक्त कवियों में गिने जाते हैं।[१]

जीवन परिचय

ये दक्षिणी ब्राह्मण थे[१][२] और तेलंग देश (आंध्र प्रदेश) के हनुमानपुर से उत्तर आए थे। इनके जन्म का समय ठीक से पता नहीं, पर यह बात प्रसिद्ध है कि ये श्री चैतन्य महाप्रभु को भागवत सुनाया करते थे। इनका समर्थन भक्तमाल की इन पंक्तियों से भी होता है:

भागवत सुधा बरखै बदन, काहू को नाहिंन दुखद।
गुणनिकर गदाधर भट्ट अति सबहिन को लागै सुखद ॥

इनका समय महाप्रभु चैतन्य के समय (वि ० सं ० १५४२ से वि ० सं ० १५९० ) के आसपास अनुमानित किया जा सकता है। चैतन्य महाप्रभु और षट्गोस्वामियों के संपर्क के कारण आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनका कविता कल वि ० सं ० १५ ८० से १६०० के कुछ बाद तक अनुमानित किया है[१] जीव गोस्वामी ने इनका एक पद 'श्याम रंग रँगी' सुनकर इन्हें वृंदावन बुलाया और सं. 1900 के लगभग यह वृंदावन पहुंचे। इन्होंने महाप्रभु चैतन्य का शिष्यत्व ग्रहण किया और उन्हीं के समान श्रीमद्भागवत की सरस कथा सबको सुनाने लगे। इन्होंने मदनमोहन का प्रतिष्ठापन कर सेवा आरंभ की। यह मंदिर वर्तमान है और इनके वंशज अब तक सेवा करते हैं।

साधुओं से गदाधर भट्ट के द्वारा रचित निम्न 'पूर्वानुराग' के पद को सुनकर जीव गोस्वामी मुग्ध हो गए :

सखी हौं स्याम रंग रंगी।
देखि बिकाय गई वह मूरति ,सूरत माहिं पगी।।
संग हुतो अपनी सपनो सो ,सोइ रही रस खोई।
जागेहु आगे दृष्टि परे सखि , नेकु न न्यारो होई।।
एक जु मेरी अंखियन में निसि द्यौस रह्यौ करि भौन।
गाइ चरावन जात सुन्यो सखि ,सोधौं कन्हैया कौन।।
कासौं कहौं कौन पतियावै , कौन करे बकवाद।
कैसे कही जात गदाधर , गूंगे को गुरु स्वाद।।[१][२]

इनके जीवन और स्वभाव के सम्बन्ध में नाभादास जी के एक छप्पय तथा उस पर की गई प्रियादास की टीका से कुछ प्रकाश पड़ता है। नाभादास का छप्पय :

सज्जन सुह्रद , सुशील,बचन आरज प्रतिपालय।
निर्मत्सर ,निहकाम ,कृपा करुणा को आलय।।
अनन्य भजन दृढ़ करनि धरयो बपु भक्तन काजै।
परम धरम को सेतु , विदित वृन्दावन गाजै।।
भागौत सुधा बरषे बदन काहू को नाहिन दुखद।
गुन निकर'गदाधर भट्ट'अति सबहिन कों लागै सुखद।।[१]

रचनाएँ

भट्ट जी की अभी तक रचनाओं में केवल स्फुट पद ही प्राप्त हैं। इनके स्फुट पद गदाधर की वाणी नामक पुस्तक में संकलित हैं[१] इसके प्रकाशक बाबा कृष्ण दास हैं और हरिमोहन प्रिंटिंग प्रेस से मुद्रित है। इन स्फुट पदों का विषय विविध है। इनमें भक्त का दैन्य, वात्सल्य, बधाई (राधा और कृष्ण की ), यमुना-स्मृति और राधा-कृष्ण की विविध लीलाओं का वर्णन है।

माधुर्य भक्ति का वर्णन

भट्ट जी के उपास्य नित्य वृन्दावन में वास करने वाले राधा-कृष्ण है। उनका रूप , स्वभाव ,शील ,माधुर्य आदि इस प्रकार का है कि चिन्तन लिए मन लुब्ध हो जाता है। उनके अनुसार कृष्ण व्रजराज कुल- तिलक ,राधारमण ,गोपीजनों को आनन्द देने वाले ,दुष्ट दानवों का दमन करने वाले ,भक्तों की सदा रक्षा करने वाले ,लावण्य -मूर्ति तथा ब्रह्म ,रूद्र आदि देवताओं द्वारा वन्दित हैं।:

जय महाराज ब्रजराज कुल तिलक ,
गोविन्द गोपीजनानन्द राधारमन।
बल दलन गर्व पर्वत विदारन।
ब्रज भक्त रच्छा दच्छ गिरिराज धरधीर।

कृष्ण -प्रेयसी राधा सकल गुणों की साधिका ,तरुणी-मणि और नित्य नवीन किशोरी है। वे कृष्ण के रूप के लिए लालायित और कृष्ण-मुख-चन्द्र की चकोरी हैं। कृष्ण स्वयं उनकी रूप-माधुरी का पान करते हैं। गौरवर्णीय राधा का मन श्याम रंग में रंगा हुआ है और ६४ कलाओं में प्रवीण होते हुए भी भोली हैं।

जयति श्री राधिके सकल सुख साधिके,
तरुनि मनि नित्य नवतन किशोरी।
कृष्ण तनु लीन मन रूप की चटकी,
कृष्ण मुख हिम किरण की चकोरी।।
कृष्ण दृग भृंग विश्राम हित पद्मिनी,
कृष्ण दृग मृगज बन्धन सुडोरी।
कृष्ण अनुराग मकरंद की मधुकरी,
कृष्ण गुनगान रससिन्धु बोरी।।
एक अद्भुत अलौकिक रीति मैं लखी,
मनसि स्यामल रंग अंग गोरी।
और आश्चर्य कहूँ मैं न देख्यो सुन्यो,
चतुर चौसठिकला तडवी भोरी।।

सन्दर्भ

  1. http://hindisahityainfo.blogspot.in/2017/05/blog-post_30.htmlसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
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