खेतसिंह खंगार
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महाराजा खेत सिंह एक हिंदू क्षत्रिय राजा थे। इनका जन्म गुजरात (सौराष्ट्र) राज्य के जूनागढ़ के राजा एवं इनके पिता जूनागढ़ अधिपति रा कटाव -२ रूढ़देव के परिवार में {विक्रम संवत ११९७ पौष मास शुक्ल पक्ष में एवं ईसवी संवत २७ दिसम्बर ११४०ई• में} हुआ इनकी माता का नाम किशोर कुँवर बाई था। इन्होंने अपना राज्य राजपाठ जिझौतिखण्ड एवं राजधानी गढ़कुंडार में स्थापित किया।
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खेतसिंह (1140-1212 ई.) ई
पुस्तकों द्वारा पता चलता है कि ये प्रथम स्वतंत्र हिन्दू गणराज्य था,
!!अधिपति वो भूप जिसकी कृति ये कुंडार!!
!!राजपूतों में प्रथम सिंह जय महाराजा खेत!!
यह अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सामन्त थे। इनका वर्णन १६वी शताब्दी में चंदरबरदाई राव द्वारा लिखित हिंदी महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में भी मिलता है इन्होंने उनके सेनापति के तौर पर उनके साथ कई युद्ध लड़े जिनमें से एक युद्ध था जेजाकभुक्ति का युद्ध सन ११८१ ई• में लड़ा गया जिसमे...
युद्ध - ( महोबा ) पृथ्वीराज चौहान और खेतसिंह की साझेदारी में लड़ा गया ! इस युद्ध में ऊदल मारे गए और आल्हा रण छोड़ कही चले गये !
महाराजा खेतसिंह ने पृथ्वीराज चौहान की साझेदारी में अनेक युद्ध लड़े !
इस युद्ध में विजय के पश्चात पृथ्वीराज चौहान ने खेतसिंह को इस राज्य का राजा घोषित कर दिया 1181ई• में ही इनका राज्यभिषेक कर दिया और इन्होंने इस राज्य को जिझौतिखण्ड वर्तमान (बुंदेलखंड) नाम दिया और राजधानी गढ़कुंडार में स्थापित की । ११९२ई• में तराईन का पृथ्वीराज चौहान एवं विदेशी आक्रान्ता मोहम्मद ग़ौरी के मध्य लड़ा गया जिसमें दिल्ली मोहम्मद ग़ौरी के अधीन हो गई और खेतसिंह ने जिझौतिखण्ड को स्वतंत्र हिन्दू गणराज्य घोषित कर दिया
इनकी मृत्यु सन १२१२ ई• में हो गई थी। इनके बाद इनके पुत्र राजा नंदपाल, छत्रशाल, ख़ूबसिंह एवं मान सिंह ने जिझौतिखण्ड पर शासन किया। शासन १६५ वर्षो तक जिझौतिखण्ड पर रहा।
संदर्भ
खंगारों का शासनकाल मे बुंदेलखंड का नाम जुझौतिखण्ड था। जब पृथ्वीराज चौहान ने सन ११८२ में सिरसागढ़ पर आक्रमण किया और उस पर विजय प्राप्त की उस समय इस युद्ध के सेनापति महाराजा खेतसिंह खंगार थे। चूंकि ये युद्ध उन्ही के नेतृत्व में हुआ था इसलिये सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने विज्युपरांत ये राज्य महाराजा खेतसिंह खंगार को सौंप दिया और उनका राज्याभिषेक कर उन्हें यहाँ का राजा घोषित कर दिया। महाराजा खेतसिंह खंगार की ४ पीढ़ियों ने यहां शासन किया। यहाँ खंगारों का शासन तकरीबन १६५ वर्षो तक जुझौतिखण्ड वर्तमान बुंदेलखंड खण्ड पर रहा खंगारों के राजाओं ने निम्न क्रम में यहां शासन किया।
सन (११८२ से १३४७ तक )
१• महाराजा खेतसिंह खंगार (११८२ - १२१२)
२• राजा नन्दपाल खंगार (१२१२ - १२४१)
३• राजा छत्रपालसिंह खंगार (१२४१ - १२७९)
४• राजा खूबसिंह खंगार (१२७९ - १३०९)
५• राजा मानसिंह खंगार (१३०९ - १३४&)
जुझौतिखण्ड साम्राज्य के समय का एक दोहा:-
गिर समान गौरव रहे, सिंधु समान स्नेह। वर समान वैभव रहे, ध्रुव समान धेय्य।।
विजय पराजय न लिखें, यम न पावें पंथ। जय जय भूमि जुझौति की, होये जूझ के अंत।।
इसके पश्चात यहां किसी खंगार राजा से शासन नही किया किउंकि १३२५ में दिल्ली की गद्दी पर मोहम्मद बिन तुगलक बैठ गया था, और खंगार वंश के प्रथम राजा महाराजा खेतसिंह खंगार ने इस राज्य को पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद से ही स्वतंत्र हिन्दू गणराज्य घोषित कर दिया था । सन १३४७ में मुहम्मद बिन तुगलग ने जुझौतिखण्ड की राजधानी गढ़कुंडार पर हमला कर दिया जिसमे राजा मानसिंह समेत सभी खंगार राजपूत वीरगति प्राप्त कर गए और मानसिंह की पुत्री रानी केसर दे एवं अन्य दासीयों ने किले के भीतर मौजूद स्नान कुंड को अग्नि कुंड, जौहर कुंड बना कर स्वयं को अग्नि को सौंप दिया किन्ही पुस्तक से ये दोहा प्राप्त होता है:- जल धर रूठा नित रहे , धर जल उण्डी धार क्षत्राणी न्हावे अग्न में , क्षत्रिय न्हावे खंग धार
कुँवर खेता से खेतसिंह
कुँवर खेता ( महाराजा खेतसिंह) इन्हें बचपन से ही कुश्ती लड़ने ओर तलवार चलाने में रुचि था। एक रोज इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के शासक पृथ्वीराज चौहान सौराष्ट्र गुजरात की यात्रा पर निकले। वहां उन्होंने युवावस्था में एक वीर युवा को सिंह से लड़ते हुए देखा । कुँवर खेता की वीरता से आकर्षित पृथ्वीराज चौहान ने उन्हें अपने साथ इंद्रप्रस्थ आने को न्योता ओर कुँवर अपने पिता की आज्ञा लेकर दिल्ली आ गए। वहाँ शेरपुर के जंगल मे कुँवर खेता द्वारा एक सिंह को चीरता देख वे इनकी वीरता से प्रभावित हो गए और उन्होंने कुँवर खेता को सिंह की उपाधि से विभूषित किया। अर्थात इन्हें राजपूतों में प्रथम सिंह भी कहा गया है।
।। था अधिपति वो भूप जिसकी कृति ये कुंडार ।।
।। राजपूतों में प्रथम सिंह जय महाराजा खेत खंगार ।।
महाराजा खेतसिंह जू देव की इसी कथा पर आधारित एक चित्रण जिसमे एक क्षत्रिय योद्धा एक सिंह से लड़ता दिखाई दे रहा है
स्वयंवर
महाराजा खेतसिंह बलवानी एवं पराक्रमी एवं पृथ्वीराज चौहान के करीबी सामन्तो में से के होने के कारण उस समय के चर्चित राजाओं में से एक थे। उस समय तारागढ़ के महाराजा ने अपनी पुत्री का स्वयंवर रखा और उसमें राष्ट्र के सभी राजपूत राजाओं को आमंत्रित किया । उस सभा में महाराजा खेतसिंह भी पहुंचे और वहां रखी एक शिला को अपने खंग से एक बार मे ही २ भागो में बांट दिया अर्थात स्वयंवर जीत गए।