खेकड़ा

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
खेकड़ा
Khekra
—  शहर  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश साँचा:flag
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला बागपत
जनसंख्या १,००,००० (साँचा:as of)
  साँचा:collapsible list
आधिकारिक जालस्थल: www.nppkhekra.com

साँचा:coord खेकड़ा (Khekra) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बागपत ज़िले में स्थित एक शहर व तहसील है।[१][२] खेकड़ा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बागपत जिले का एक शहर हैं, यहाँ उप-जिला मुख्यालय तहसील और नगर पालिका परिषद है। यह दिल्ली सीमा से मात्र 10 किलोमीटर और महाराणा प्रताप अंतरराज्यीय बस अड्डा कश्मीरी गेट दिल्ली से 28 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित हैं। यह नगर राष्ट्रपति भवन व भारत की संसद से 35 किलोमीटर दूर है। खेकड़ा नाम का उच्चारण खेखडा भी हैं।और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का एक हिस्सा है। श्रीमती संगीता धामा 12.12.2017 से नगर पालिका परिषद खेकड़ा की माननीय अध्यक्षा हैं। खेकड़ा शहर नैशनल ईस्टर्न पेरिफेरल हाईवे व दिल्ली -- यमुनोत्री--- राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या -409-B की क्रॉसिंग पर स्थित हैं। यह नगर बागपत जनपद के दक्षिण में (South) से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।

खेकड़ा का इतिहास

खेकड़ा का इतिहास सदियों पुराना है। वंशचरितावली में खेकड़ा के एक वीर यशवीर धामा का उल्लेख है। इस कस्बे में धामा[३][४] [५] गोत्रीय बहुसंख्यक हैं और यही लोग इस कस्बे के संस्थापक हैं। भारतीय इतिहास में दाहिम्माओं की भूमिका बड़ी गौरवशाली रही है। महर्षि पौलस्त्य और दधिमाता की संतान[६]धर्मपाल के वंशधर दाहिम्म के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। राजस्थान के जोधपुर जिले के गोठ और मांगलोद के बीच आज भी दाहिम्माओं की आदि माता दधिमाता का पावन मंदिर है। महाभारत के युद्ध में धामाओं के पूर्वज वीर धामा का योगदान अतुलनीय रहा है।

वीर धामा महान योद्धा था।[७] कालांतर में इसी वंश के वीर पुरुष कैमास[८] को पृथ्वीराज का सेनापति होने का गौरव प्राप्त हुआ। पृथ्वीराज ने किसी कारणवश कैमास[९]को मृत्यु दंड दे दिया था, तब उसके परिवार वाले पहले बयाना और फिर दक्षिण दिशा में चले गए थे। लेकिन जब पृथ्वीराज चैहान और मोहम्मद गौरी का अंतिम युद्ध हुआ, तो कैमास के परिजनों ने इन्द्रप्रस्थ का रुख किया और स्त्री व बालकों को छोड़कर परिवार के समस्त पुरुष पृथ्वीराज की सेना में भरती हो गए। पृथ्वीराज को बंदी बनाए जाने के बाद इन्हें भी बंदी बना लिया गया और एक टुकड़ी के साथ गुलाम बनाने के लिए 1192 ईस्वी में अफगान ले जाया जा रहा था, तब सिकंदरपुर नामक खेड़े में दाहिमाओं ने विद्रोह करके मुस्लिम आक्रान्ताओं को मार गिराया। सिकंदरपुर की आबादी भी मुस्लिम थी, वह खेड़ा भी तहस-नहस कर दिया गया और फिर दाहिमा वहाँ से यमुना के किनारे भयंकर वनों में चले गए। वे जंगल उन दिनों बेहटा के नाम से प्रसिद्ध थे। उनमें शेर आदि भी रहते थे। बेहटा के जंगल में दाहिमाओं का मुख्य कर्म कृषि, फलोत्पादन एवं गोपालन था। एक बार दाहिमाओं का मुखिया अपनी गऊओं को चराता हुआ रास्ता भटक गया और बहुत दूर निकल गया। उसके पास बहुत ही उत्तम नस्ल की गऊएँ थी। एक खेड़े के कुछ लोगों ने दाहिमाओं के मुखिया को मारकर सैनी वाले कुएँ में डाल दिया और उसकी गऊओं को अपने कब्जे में कर दिया। उस ग्वाले के साथ एक कुत्ता भी आया था। उस कुत्ते ने अपने स्वामी को बचाने के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन सफल न हो सका। अंत में कुत्ता किसी तरह बेहटा के जंगलों में पहुँचा और वहाँ एक समझदार व्यक्ति की धोती पकड़कर खींचने लगा। कई लोगों ने इस घटना को देखा और मुखिया के घर न लौटने की चर्चा तो हो ही रही थी, इसलिए वह समझ गया कि यह कुत्ता मुखिया के बारे में अवश्य ही कुछ जानता है। लोग इकट्ठा हुए और उस कुत्ते के साथ चल दिए। सैनी खेड़े में सैनी वाले कुएँ पर कुत्ता उन्हें ले आया, तो उन्हें अपना मुखिया कुएँ में मरा हुआ मिला। दाहिमा तब तो बेहटा वापस चले गए, लेकिन फिर पूरी तैयारी के साथ आए, वहाँ आसपास सात खेड़े थे। सातों खेड़ों की सारी आबादी को मार गिराया, लेकिन एक ब्राह्मण परिवार छोड़ा था। रूद्ध, ददवाड़िया और मुंड़ाला तीन सगे भाई थे, उन्होंने यहीं रहने का निर्णय लिया तो, सूम, धाती आदि वीरों ने भी यहीं डेरा डाल लिया और सात खेड़ों को नष्ट करने के स्थान पर एक नए नगर खेकड़ा को बसाया।

स्वतंत्रता आंदोलन और खेकड़ा

सदियों पहले ही पंचायत ने यहाँ अखाड़ा बनाया, ताकि उसमें किसान के बच्चे मल्लयुद्ध और अस्त्र-शस्त्र में पारंगत हों और आवश्यकता पड़ने पर सेना में वे युवक भर्ती होकर देश को स्वाधीन कराएँ, कालांतर में वीर बंदा वैरागी की सेना और सदियो बाद बाबा शाहमल की सेना[१०] के सैनिक इस अखाडे के युवक भी थे। गदर के समय बाबा शाहमल की शाहदत के बाद खेकड़ा के चौधरी सूरज मल दाहिम्म[११] ने यहाँ की पट्टी रूद्ध के मुखिया साहिब सिंह के साथ मिलकर बागियों का नेतृत्व कर फिरंगियों के दाँत खट्टे कर दिए थे। बागियों ने अग्रेज अफसरों की पत्नियों को बंधक बनाकर खेतों में काम कराया था। हालाँकि साहिब सिंह आंग्ल औरतों को बंधक बनाने के खिलाफ थे, इसलिए उन्होंने इस कार्य में उनका साथ नहीं दिया, लेकिन कई गौरों को मौत के घाट अवश्य उतारा था। नारी की प्रतिष्ठा के प्रश्न पर साहिब सिंह धामा ने क्रान्ति के लिए अपना अलग ही रास्ता चुना था। लेकिन सूरजमल अंग्रेजों का नामोंनिशान मिटाना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने अंग्रेज औरतों को बंधक बनाया। खेकड़ा के बीबीसर तालाब पर उन्होंने बंधक बनाई गयी ब्रिटिश अफसरों की पत्नियों से खेतों पर काम कराया और इसका विरोध करने पर एक दर्जन से अधिक अंग्रेज सैनिकों को मार डाला। अंग्रेजी अफसरों ने योजनाबद्ध ढंग से हमला कर सूरजमल समेत इनके कुनबे के सुरता, हरसा, राजे और भरता समेत 13 लोगों और उनकी औरतों को गिरफ्तार कर लिया। इनकी जमीन, मकान कुर्क कर सभी को बागी घोषित करते हुए फाँसी की सजा सुनाई। इनकी औरतों, बेटियों और बेटों को नग्न कर पेड़ों पर फलों की तरह उलटा लटका दिया और जिन्होंने दम तोड़ दिया, उनकी लाशों को हाथी के पैरों से बंधवाकर सारे नगर में घुमवाया। चौधरी सूरजमल खेकड़ा की पट्टी चक्रसैनपुर के रहने वाले किसान थे। उनका सोलह परिवार का बड़ा कुनबा था, जिसके वह मुखिया थे। इसी गाँव के महारम पहलवान उन दिनों देशभर में कुश्ती के कारण बड़े ही प्रसिद्ध थे। इन क्रान्तिकारियों को फाँसी देने से पूर्व महारम पहलवान को अंग्रेजों के गायब दो बच्चे मिल गए। दरअसल इन बच्चों को साहिब सिंह एवं घीसासंत ने मारने नहीं दिया था, क्योंकि उनकी आयु बहुत छोटी थी। इन्हीं बच्चों को महारम, नानूसंत, सुखलाल व सेवादास ने वापस लौटाने के एवज में सभी की फाँसी की सजा माफ करने की माँग की। अंग्रेज अफसरों ने अन्य सभी की फाँसी तो माफ कर दी, लेकिन सूरजमल की मौत की सजा माफ करने को इंकार कर दिया। पट्टी चक्रसैनपुर एवं रूद्ध की काफी भूमि अंग्रेजों ने अनाधिकार चेष्टा करके मुंडालों को बच्चे लौटाने की एवज में प्रदान कर दी। साहब सिंह को छोड़ दिया गया, क्योंकि उसने मासूम बच्चों को मौत के घाट नहीं उतारा था। जब सुभाष चंद्र बोस ने बागपत के बिचपुड़ी गांव के नहर पुल पर लोगों को देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने की अपील की[१२] , तो खेकड़ा की नीरा आर्य उनसे बहुत प्रभावित हुई। कालांतर में जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया तो खेकड़ा में जन्मी एक अनाथ कन्या नीरा आर्य ने आजाद हिंद फौज में भर्ती होकर एक बेटी का फर्ज निभाया था। नीरा आर्य को सेठ छज्जूमल ने गोद लिया हुआ था। नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झांसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था।[१३] इन्हें नीरा ​नागिनी के नाम से भी जाना जाता है। इनके भाई बसंतकुमार भी आजाद हिन्द फौज में थे। नीरा नागिन और इनके भाई बसंतकुमार के जीवन पर कई लोक गायकों ने काव्य संग्रह एवं भजन भी लिखे हैं।[१४]नीरा नागिनी के नाम से इनके जीवन पर एक महाकाव्य भी है। इनके जीवन पर फिल्म का निर्माण भी होने की खबर है।[१५] यह एक महान देशभक्त, साहसी एवं स्वाभिवानी महिला थीं। इन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अफसर अपने पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी[१६] अवसर पाकर श्रीकांत जयरंजन दास ने नेताजी को मारने के लिए गोलियां दागी तो वे गोलियां नेताजी के ड्राइवर[१७][१८][१९] को जा लगी[२०], लेकिन इस दौरान नीरा आर्य ने श्रीकांत जयरंजन दास के पेट में संगीन घोंपकर उसे परलोक पहुंचा दिया था। श्रीकांत जयरंजन दास नीरा आर्य के पति थे, इसलिए पति को मारने के कारण ही नेताजी ने उन्हें नागिनी कहा था। वैसे तो पवित्र मोहन रॉय आजाद हिंद फौज के गुप्तचर विभाग के अध्यक्ष[२१] थे, जिसके अंतर्गत महिलाएं एवं पुरुष दोनों ही गुप्तचर विभाग आते थे। लेकिन नीरा आर्य को आजाद हिंद फौज की प्रथम जासूस होने का गौरव प्राप्त है। नीरा को यह जिम्मेदारी इन्हें स्वयं नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दी थी। अपनी साथी मानवती आर्या[२२][२३], सरस्वती राजामणि[२४][२५] और दुर्गा मल्ल गोरखा[२६] एवं युवक डेनियल काले[२७][२८] संग इन्होंने नेताजी के लिए अंग्रेजों की जासूसी भी की। आजाद हिन्द फौज के सेनानियों पर जब दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया,[२९] लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा हुई थी,[३०] जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई। आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।[३१] खेकड़ा के पास के ढिकौली गांव के तो दर्जनों युवा आजाद हिंद फौज् में भर्ती हुए।[३२] 1942 की अगस्त क्रांति में भी खेकड़ा का योगदान रहा। पट्टी गिरधरपुर के लाल सिंह आर्य इस क्रांति के अग्रणी नेता थे। महात्मा गांधी ने खेकड़ा में [३३] जिस स्थान पर लोगों को संबोधित किया था, उसे आज गांधी प्याउ के नाम से पुकारा जाता है। महात्मा गांधी जी लाल सिंह आर्य और चौधरी मेहूं डूंगर के अनुरोध पर खेकड़ा आए थे। खेकड़ा में कई प्रसिद्ध व्यक्तियों का जन्म हुआ है। पंडित डालचंद खेकड़ा के थे, जिन्होंने कई स्कूलों की स्थापना की। सुप्रसिद्ध साहित्यकार व हिंदी लेखक तेजपाल सिंह धामा खेकड़ा के ही हैं। खेकड़ा में जन्मे डॉक्टर रणजीत सिंह अपने समय के प्रख्यात नेता रहे हैं। खेकड़ा एवं आसपास के क्षेत्रों में प्रसिद्ध टयूबवेल मैकेनिक जयभगवान मिस्त्री जो एक नाई परिवार में पैदा हुए और जिनके पिता श्री खचेडू जी भारतीय सैनिक थे यहीं रहते थे उनके सुपोत्र प्रसिद्ध अधिवक्ता पंकज राज ठाकुर जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में वकालत कर रहे है यहीं खेकड़ा में रहते है।

आबादी

खेकड़ा बागपत जिले में सबसे पुराना टाउन एरिया कमेटी है और 1884 में कानपुर शहर के साथ स्थापित किया गया था। 2011 की भारत की जनगणना में, खेकड़ा की आबादी लगभग 40,000 थी। पुरुषों की आबादी का 54% और महिलाओं का 46% है। खेकड़ा की औसत साक्षरता दर 62% थी, जो राष्ट्रीय औसत 59.5% से अधिक थी: पुरुष साक्षरता 70% थी और महिला साक्षरता 52% थी। खेकड़ा में, 16% आबादी 6 साल से कम उम्र की थी।

उद्योग धंधे

खेकड़ा को व्यापारिक नगरी कहा जाता है। बागपत जनपद में खेकड़ा सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक टाउनशिप है। व्यावसायिक दृष्टिकोण से इस नगर का बहुत महत्व है। शहर की Weavetex Oversreas एक विश्व प्रसिद्ध कपड़ा कम्पनी है जिसे लोग कल्ली की फैक्ट्री भी कहते है जो कि मुख्य मार्ग पर औद्योगिक क्षेत्र में है। यह कम्पनी भारत के लिए प्रति वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा अर्जित करने का केंद्र है। यह कम्पनी बागपत जनपद की सबसे बड़ी औद्योगिक इकाई हैं। खेकड़ा में वर्तमान में लगभग 50 से भी ज्यादा कपड़ा इकाई हैं। जो कि बागपत जनपद की सबसे बड़ी जीवन रेखा हैं। शहर में एक प्रसिद्ध अनाज मंडी व नवीन सब्जी मंडी स्थित हैं। जो कि डूंडाहेड़ा पर कृषि उत्पादन मंडी के समीप हैं। जिला कृषि विज्ञान केंद्र, तहसील परिसर के पास है। कृषि विज्ञान केंद्र का एक अपना रेडियो स्टेशन भी हैं। जो समय समय पर किसानों की फसल सम्बन्धित नवीनतम जानकारी व उत्पादन बढाने की विधि की जानकारी देता हैं। 1994 के बाद इस 1999 तक शहर की आबादी घटी है क्योंकि 1994 के बाद पश्चिमी देशो से कच्चे माल की सप्लाई महंगी होने से वजह से लगभग 100 इकाई बन्द हों गयीं जिसकी वजह से कामगारो को रोजी रोटी के लिये शहर से दिल्ली व अन्य स्थानों पर कूच करना पड़ा। इस शहर की मुख्य व्यावसायिक गतिविधियों में स्टेनलेस स्टील के बर्तन बनाना, हाथकरघा उद्योग, हस्तशिल्प बिजली करघे और कृषि और खेती के उपकरण शामिल हैं। खेकड़ा की हथकरघा और पावर लूम इकाइयों का लगभग सभी पश्चिमी देशों व यूरोप में निर्यात हो रहा है और हर साल लगभग 1000 करोड़ के विदेशी मुद्रा प्राप्त कर रहा है। इसका कपड़ा उद्योग गलीचा, रसोई के तौलिए, पर्दे, टेबल कवर, बेडशीट, चटाई, रजाई और नैपकिन जैसी घरेलू वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है। लौह उद्योग भारत में बिक्री के लिए कटर जैसी कृषि वस्तुओं का निर्माण करते हैं, लाला रामंचद्र जैन सुरमे व काजल की फार्मेसी प्रसिद्ध है। बालू हलवाई की कलाकंद और बिशन हलवाई की रबड़ी तथा सलेक के समौसे का स्वाद और डीजल की चाट पकोडे और खोमचे का सामान बहुत प्रसिद्ध है।

परिवहन सुविधा

खेकड़ा नगर उत्तर रेलवे में शाहदरा सहारनपुर रेल मार्ग पर रेलवे स्टेशन हैं। खेकड़ा रेलवे स्टेशन से बड़ागांव जैन मंदिर तक हर घण्टे व हर रेल के समय गाड़ी उप्लब्ध है। रेलवे स्टेशन का उद्घाटन 1972 में इंदिरा गांधी ने ब्रॉड गेज लाइन के रूप में किया था; पहले यह एक संकीर्ण गेज था, जिसे छोटी लाइन कहा जाता था। अब खेकड़ा से दिल्ली रेलवे लाइन का विद्युतीकरण भी हो गया है।

शिक्षा केन्द्र

यह नगर शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी हैं। खेकड़ा में दर्जनों शिक्षण संस्थान हैं। अकेले डिग्री कालेज की बात करें, तो यहां ​तीन डिग्री कालेज इस प्रकार हैं :

  • महामना मालवीय डिग्री कालेज
  • जैन कन्या महा विद्यालय
  • संस्कृत महाविद्यालय पाठशाला

धार्मिक स्थल

संतो का बाड़ा एक धार्मिक स्थल है, जो तांगा स्टैंड के पास स्थित है। प्रति वर्ष अनेको बार संतो के मेले लगते हैं, पहला होली और दूसरा दिवाली और तीसरा सावन पूर्णिमा पर उत्सव मनाया जाता है। संतो का बाड़ा में दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, यू.पी., पंजाब और उत्तर भारत क्षेत्र के कई भक्त हैं, वर्तमान में महात्मा श्री देवेंद्र दास जी महाराज पवित्र गद्दी के महंत हैं। यह स्थान अब जिला बागपत के महाभारत सर्किट में है। यहाँ प्रतिमाह पूर्णिमा को विशेष सत्संग का आयोजन होता जिसमे विशाल भंडारा किया जाता है और हजारो लोगो को खाना खिलाकर, दान दक्षिणा व वस्त्र आदि भेट किये जाते है। मुस्लिम धार्मिक स्थल (जामा मस्जिद) यह शहर की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी मस्जिद है जो छोटा बाजार में स्थित है एक साथ एक हजार लोग यहाँ नमाज अदा कर सकते हैं। काले सिंह मंदिर शहर और क्षेत्र में एक प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर बहुत घने हरे क्षेत्र में स्थित है इसलिए बहुत से नागरिक इसे पिकनिक स्थल और पूजा स्थल के रूप में आनंद लेते हैं। बालाजी मंदिर पांडव की पुलिया और यादव चौक के बीच शहर के केंद्र में स्थित है। कुछ अन्य प्रमुख धार्मिक स्थल हैं :

  • विश्व प्रसिद्ध जैन मंदिर
  • श्री पार्श्वनाथ प्रचीन मंदिर, बड़ागांव गाँव
  • त्रिलोक तीर्थ, बड़ागांव गाँव
  • साधु वृत्ति आश्रम, बड़ागांव गाँव
  • श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर
  • श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर
  • श्री शांतिनाथ जैन मंदिर
  • श्री आदिनाथ ने जैन मंदिर
  • श्री चंद्र प्रभू जैन मंदिर

सामाजिक संस्थाएं

इस नगर में दर्जनों सामाजिक संस्थाएं हैं। 1902 में स्थापित आर्य समाज की आधारशिला यहां स्वामी श्रद्धानंद ने रखी थे। यह भूमि पट्टी रूधो द्वारा स्वतंत्रता सेनानी साहब सिंह के परिजनों चौधरी डूंगर इत्यादि द्वारा दान में दी गई थी। दयानंद सेवा संस्थान की भूमि चौधरी टेकचंद आर्य ने दान में दी थी। वैदिक बाल संस्था की स्थापना भी यहां की गई थी। खेकड़ा युवक मंच और खेकडा युवा परिषद की भी यहां है। जैन मिलन खेकडा, लायंस क्लब, रोटरी क्लब जैसे सामाजिक संगठन भी इस नगर में हैं।

  • आर्य समाज मंदिर
  • दयानंद सेवाश्रम
  • वैदिक बाल संस्था
  • जैन मिलन खेकडा
  • खेकड़ा युवक मंच
  • खेकडा युवा परिषद
  • युवा विकास परिषद
  • लायंस क्लब
  • वृद्धाश्रम

बालीवुड में खेकड़ा का योगदान

इस नगर का बालीवुड में भी योगदान रहा है। प्रख्यात निर्माता सत्येंद्र पाल चौधरी यहीं एक निजी चिकित्सालय में जन्में थे और खेकड़ा से सटे हुए बसी गांव में उनके परिजन अभी भी रहते हैं। सत्येंद्र पाल चौधरी ने अमिताभ बच्चन को लेकर कई फिल्मों का निर्माण किया था। शराबी, नमक हलाल, हेराफेरी, एक कुंवारा एक कुंवारी समेत उन्होंने दर्जनों फिल्मे बनाई। शराबी को फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था। 29 अप्रेल 2014 को उनका निधन हुआ। [३४] इस गांव में जन्में प्रख्यात साहित्यकार तेजपाल सिंह धामा के कई उपन्यासों पर आधारित बालीवुड की उत्कृष्ट फिल्मों का निर्माण हुआ है। तेजपाल सिंह धामा के उपन्यास अग्नि की लपटे पर संजय लीला भंसाली की बहु​चर्चित फिल्म पदमावत का निर्माण हुआ है।[३५][३६][३७][३८][३९] इन्होंने पाकिस्तानी अभिनेत्री वीना मलिक के लिए भी फिल्म का लेखन किया है और जब वे गायब हो गई तो इन्होंने ही खुलासा किया था कि वे गायब नहीं हुई हैं, यह गलत खबर है।[४०] दयानंद सरस्वती पर आधारित टीवी सीरियल की वन लाइन स्टोरी, एवं कुछ एपिसोड इन्होंने लिखे थे।[४१][४२] भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा संस्कृति मनीषी सम्मान से सम्मानित इसी गांव की मधु धामा[४३][४४] के जीवन पर दर्जनों बार देश-विदेश में नाटकों का मंचन[४५][४६][४७][४८][४९][५०][५१][५२][५३] हो चुका है। खेकड़ा में कई फिल्मों की शू​​टिंग भी हो चुकी हैं।

खेलों में योगदान

खेकड़ा नगर का खेलों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योगदान रहा है। गांव के अखाड़े ने एक ओर जहां देश को एक से बढ़कर एक पहलवान दिए हैं। महाराम पहलवान के नाम पर यहां एक अखाड़ा सौ साल से भी पुराना है। दारा सिंह भी यहां कई बार कुश्ती लड़ने आए थे। दादा महारम का जन्म खेकड़ा में वर्ष 1798 में एक जाट परिवार में हुआ था। गढ़ मुक्तेश्वर गंगा मेले के प्रसिद्ध दंगल में 12 साल तक दादा के नाम का ढोल बजता था। उत्तर भारत का कोई भी पहलवान उनसे टक्कर नहीं ले पाता था। दादा महारम पत्थर के जिस मुगदर से कसरत करते थे, उसका वजन 120 किलो था। उनके परिजन रणजीत सिंह, धर्मपाल, कालू बताते हैं कि गोलाकार मुगदर को दादा एक हाथ से उठाकर घुमाते थे। वे इसकी रोजाना पूजा करते है। दूरदराज के पहलवान मुगदर को देखने आते हैं। धन, सम्पदा का मोह त्यागने वाले महारम का 1869 में 71 वर्ष की आयु में निधन हो गया था।[५४] दादा के नाम से संचालित अखाडे़ ने देश को दर्जनों राष्ट्रीय और एक पहलवान दिया है। अन्य खेलों में भी इस गांव के युवा अग्रणी रहे हैं। पैरा एथलीट अंकुर धामा को अर्जुन अवार्ड[५५] मिला है, जो इसी गांव में जन्मे और यहीं गांव में ही रहते हैं। पैरा एथलीट अंकुर धामा ने अर्जुन अवार्ड जीतकर जिले को छठा अर्जुन अवार्ड दिलाया है। बचपन में ही आंखों की रोशनी गंवाने वाले अंकुर ने पैरा ओलंपिक खेलों में भाग लिया। साल 2014 के एशियाई खेलों में दमदार खेलों का प्रदर्शन कर पदक जीते।[५६] लाखों रुपए की लागत से खेकड़ा में गौशाला की जमीन पर एक खेल स्टेडियम भी पाठशाला रोड पर बनाया गया है। प्रतिभाशाली महिला क्रिकेटर मधु धामा का टी-20 रणजी महिला टीम में चयन हुआ है।[५७] उन्होंने महिला क्रिकेट में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है।

इसे भी देखें

सन्दर्भ

  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975
  3. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ध-33
  4. B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.237, s.n.55
  5. O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.45,s.n. 1312
  6. साँचा:cite web
  7. साँचा:cite web
  8. साँचा:cite web
  9. साँचा:cite web
  10. साँचा:cite web
  11. साँचा:cite web
  12. साँचा:cite web
  13. आजाद हिन्द फौज के गुमनाम सैनिक, मन्मथनाथ गुप्त, हिन्द पाकेट बुक्स, संस्करण 1968
  14. साँचा:cite web
  15. साँचा:cite web
  16. भूली बिसरी ऐतिहासिक कहानियां, सूर्या भारती प्रकाशन चावड़ी बाजार नई दिल्ली, संस्करण 2012,
  17. साँचा:cite web
  18. साँचा:cite web
  19. साँचा:cite web
  20. साँचा:cite web
  21. साँचा:cite web
  22. साँचा:cite web
  23. साँचा:cite web
  24. साँचा:cite web
  25. साँचा:cite web
  26. साँचा:cite web
  27. साँचा:cite web
  28. साँचा:cite web
  29. साँचा:cite web
  30. साँचा:cite web
  31. * आजाद हिन्द की पहली जासूस, मधु धामा, सागर प्रकाशन, शाहदरा दिल्ली, संस्करण 2018
  32. साँचा:cite web
  33. साँचा:cite web
  34. साँचा:cite web
  35. साँचा:cite web
  36. साँचा:cite web
  37. साँचा:cite web
  38. साँचा:cite web
  39. साँचा:cite web
  40. साँचा:cite web
  41. साँचा:cite web
  42. साँचा:cite web
  43. साँचा:cite web
  44. साँचा:cite web
  45. साँचा:cite web
  46. साँचा:cite web
  47. साँचा:cite web
  48. साँचा:cite web
  49. साँचा:cite web
  50. साँचा:cite web
  51. साँचा:cite web
  52. साँचा:cite web
  53. साँचा:cite web
  54. साँचा:cite web
  55. साँचा:cite web
  56. साँचा:cite web
  57. साँचा:cite web