ख़ाकी (2004 फ़िल्म)

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ख़ाकी
चित्र:ख़ाकी.jpg
ख़ाकी का पोस्टर
निर्देशक राजकुमार संतोषी
लेखक राजकुमार संतोषी
अभिनेता अमिताभ बच्चन,
अक्षय कुमार,
ऐश्वर्या राय,
अजय देवगन,
तुषार कपूर,
तनुजा,
लारा दत्ता,
जयाप्रदा
प्रदर्शन साँचा:nowrap 23 जनवरी, 2004
देश भारत
भाषा हिन्दी

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ख़ाकी वर्ष 2009 की एक्शन थ्रिलर-ड्रामा आधारित निर्देशक राजकुमार संतोषी की हिन्दी भाषा की फिल्म है। संतोषी जी ने श्रीधर राघवन के साथ पटकथा का सह-लेखन भी किया है। फिल्म की कहानी भारतीय पुलिस टीम के उस अभियान पर केंद्रित है जहाँ उन्हें महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर से एक गिरफ्तार संदिग्ध आतंकवादी को मुंबई वापिस लाना है। फिल्म में कई प्रतिष्ठित अभिनेता जैसे अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, अक्षय कुमार, प्रकाश राज, अतुल कुलकर्णी, तुषार कपुर, तनुजा और एश्वर्या राय बच्चन सम्मिलित है। लारा दत्ता फिल्म गीत 'ऐसा जादू' में एक बार-डांसर की भूमिका में है। फिल्म व्यावसायिक एवं समीकाक्षात्मक रूप से काफी प्रशंसनीय प्रदर्शन करती है। वर्ष 2011 में सत्यमेव जयते नाम से तेलुगु संस्करण का पुनर्निर्माण होता है।

सार

महाराष्ट्र के एक नगर चंदनगढ़ में हुए साम्प्रदायिक दंगों की जांच में लगी राज्य पुलिस को डाॅ. इक़बाल अंसारी (अतुल कुलकर्णी), नाम से एक मुस्लिम डाॅक्टर के आवास से भारी मात्रा में अवैध हथियारों की बरामदगी होती हैं। जिससे पुलिस उसे आईएसआई एजेंट और दंगे की साजिशकर्ता का आरोप मढ़ती हैं। गिरफ्तार अंसारी की पेशी के लिए मुंबई विशेष न्यायालय बुलाया जाता हैं, लेकिन चंदनगढ़ से पुलिस घेराबंदी के बीच निकलवाने बावजूद उनपर किसी अज्ञात दल का हमला होता है। पुलिस किसी तरह उसे बचा तो लेती हैं पर तब तक काफी गंभीर नुकसान हो चुका होता है।

पुलिस चीफ, एसीपी नायडू (प्रकाश राज) को विशेष न्यायालय की सुनवाई पर अंसारी को पेशी पर चंदनगढ़ से लाने के लिए पांच पुलिसकर्मियों की नियुक्ति की जिम्मेदारी मिलती है। टीम प्रमुख में डीसीपी अनंत श्रीवास्तव (अमिताभ बच्चन) को नियुक्त किया जाता है जो एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर है पर स्वयं के कैरियर में अब तक कोई विशेष प्रभाव नहीं ला सके सिवाय भ्रष्ट आचरण को अस्वीकार करने से। वह इस अभियान को इसलिए राजी होता है कि किसी तरह अपने कैरियर में सफल होने पर उसे एडिशनल कमिश्नर की पदोन्नति मिले ताकि उसके सेवाएँ एवं प्रयासों का उचित सम्मान मिल सके।

अब उसकी टीम में सम्मिलित हैं वरिष्ठ इंस्पेक्टर शेखर वर्मा (अक्षय कुमार) जो एक भ्रष्ट पुलिसकर्मी हैं, सह-इंस्पेक्टर अश्विन गुप्ते (तुषार कपूर) और दो हवलदार कमलेश सावंत और गजानन म्हात्रे। लेकिन मुंबई से प्रस्थान से पूर्व ही उनके हाथों एक फोटोग्राफर (अबीर गोस्वामी) पकड़ा जाता हैं जो गुप्त रूप से उनकी तस्वीरें ले रहा था पर उनसे वे कुछ उगलवा नहीं पाते। दरअसल वह यशवंत आंग्रे (अजय देवगन) के कहने पर टीम की जासूसी कर रहा था। लेकिन पुलिस इन दोनों के बीच जुड़े सूत्र पर कुछ कार्यवाई करती आंग्रे उस फोटोग्राफर और उसके परिवार को उनके टेलीफोन रिसीवर से जुड़े विस्फोटक के जरिए धमाका कर मार डालता है।

अनंत अपनी टीम साथ चंदनगढ़ पहुंचता ही है कि पुलिस को महालक्षमी (एश्वर्या राय) नाम से एक स्कूल टीचर की ओर से उसके स्कूल संपदा में कुछ संदिग्ध गतिविधियों के खुलासे की खबर मिलती है। अनंत और उसकी टीम को स्थानीय पुलिस के साथ जांच में आतंकियों के कमरे से शव बरामद होते हैं। जब कमरे में छापेमारी जारी ही रहती है तभी फोन की रिंग बज उठती है, लेकिन अनंत सभी को फोन रिसीवर उठाने से पहले सावधानी से सुनिश्चित करता है जिसके परिणाम में उन्हें रिसीवर से जुड़े विस्फोटक का पता चलता है, उसे हटाकर फोन रिसीव करने पर कोई जवाब नहीं मिलता। अनंत का विश्वास पुख्ता होता हैं कि कोई ऐसा गिरोह है जिन्हें उनके प्रत्येक गतिविधियों और इस अभियान की जानकारी प्राप्त है, जिसमें उन्हें तत्काल योजना में बदलाव लेने का फैसला करना पड़ता है।

पुलिस स्टेशन में वापसी दौरान अनंत से मिलने अंसारी की मां (तनुजा) यह फरियाद लेकर आती हैं कि उसे बीच राह में न मारकर सीधे अदालत ले जाए और सही न्याय कराए। अनंत उसे आश्वस्त कराता है उसे उसके बेटे से जरूर मिलवायेगा। वहीं आंग्रे की ओर से अनंत को अंजान काॅल मिलती है, लेकिन वह पहचान नहीं पाता और काॅल ट्रेस करने की कोशिश भी नाकाम रहती है। पर तभी उसी लाईन पर उसकी पत्नी और बेटी की आवाज सुनाई पड़ती हैं। अनंत फौरन घर को फोन काॅल लगाता हैं लेकिन स्थिति सामान्य पाकर समझ जाता है कि आंग्रे ने महज उसे डराने के लिए रिकाॅर्डिंग टेप का इस्तेमाल किया था।

अनंत अपनी टीम में महालक्षमी को साथ लेकर मुंबई को रवाना ही होते हैं कि हाईवे पर लगी लंबे जाम पर उनको रुकना पड़ता है। इस जाम से परे निकलकर एक कच्चे रास्ते द्वारा चलते ही है कि उनका सामना पशु-मेले के तौर पर भारी भीड़ का सामना होता हैं। रास्ते से मवेशियों और लोगों को हटाते हुए अनंत को तभी आंग्रे का फोन आता हैं जोकि कि उसी के आस-पास होने का एहसास कराता हैं। पर अनंत उसे खोज ही लेता है और अश्विन के साथ पीछा करता हैं। शेखर वर्मा, जिप्सी से उतर अंसारी की बड़ी वैन पर चढ़ जाता है ताकि दोनों ओर से सुरक्षा की जा सके। आंग्रे मेले में जबरदस्त भगदड़ मचाकर अनंत के पकड़ से बच जाता हैं।

जैसे ही अनंत अपनी टीम के साथ आगे बढ़ता है कि शेखर को एहसास होता है कि वैन के देखरेख की हड़बड़ी में जीप असुरक्षित रह गई थी। जीप रोककर शेखर फौरन गाड़ी नीचे झांकता है और तब उसे विस्फोटक दिखाई पड़ता है। फिर वह सभी को पीछे हटने को कहते हुए भागता ही हैं कि जीप धमाके से धवस्त हो जाती है लेकिन उसके जबरदस्त धक्के से वैन की इंजन पर बुरा असर पड़ता है।

अनंत तब टीम के साथ हाईवे से अलग वैन को धक्के लगाता सुनसान रास्ते होते हुए एक मकान पर पहुँच वैन मरम्मत कर रुकने और फिर आगे कार्यवाई करने का फैसला करती हैं। अनंत अब मौजूदा स्थिति के बारे बताने नायडू को फोन करता है और स्थानादि का पता देकर अतिरिक्त पुलिस सहायता भेजने को कहती है। अनंत उस घर पर मेले में दिखे अंजान व्यक्ति को पहचानने की कोशिश करता है, उसे तब आंग्रे की याद आती है जो उसके विभाग का ही घोर भ्रष्ट और निर्मम पूर्व-ऑफिसर हैं। जिसे पाँच निर्दोषों की हत्या करने के अपराध में अनंत उसे जेल भेजकर पुलिस विभाग से बर्खास्त करता हैं।

फिर तब टीम को पुलिस वैन नजर आती है, पर जिसे वो अपनी सहयोग टीम मान रही थी असल में वे आंग्रे के हत्यारे साबित होते हैं। चंद मिनटों में भारी गोलीबारी चलती है और जवाबी बचाव में अनंत की टीम के सारे गोली-कारतूस कम पड़ जाते हैं। वहीं आंग्रे के आदमी पुलिस के हवलदार ड्राइवर को फेंक अंसारी को रिहा करने को कहते हैं। शेखर को और कोई विकल्प समझ न आने पर अंसारी को खींच बाहर करने की चेष्टा ही करता कि अनंत उसकी राह रोकता हैं। और तब दोनों के बीच तकरार मचती हैं, जिसमें शेखर के अनुसार उसके प्रमुख अनंत एक महत्वहीन पुलिसकर्मी हैं जो सबकी जीवन की उपेक्षा कर अपने नैतिक आदर्शों को बचाने का ही पक्ष लेगा।

बहस को उलझते देख अंततः अनंत और अश्विन अपनी पिस्तौलें शेखर पर तान देते हैं लेकिन तब अंसारी बिफरते हुए कह देता है कि यहां आतंकवादी उसकी रिहाई के लिए नहीं बल्कि मारने आए हैं।

उसके मुताबिक वह तो महज चंदनगढ़ का साधारण डाॅक्टर है जो ईमानदारी से अपने पेशे और परिवार के बीच सामंजस्य बिठाए था। उन्हीं दिनों दंगा पीड़ितों की इलाज के दौरान भास्कर जोशी नाम के पत्रकार से मुलाकात होती है जिसे पता है कि इस साम्प्रदायिक दंगों का असल जिम्मेवार विधायक देवधर ही है जो अपने खिलाफ खड़े इन सामाजिक कार्यकर्ता को मार अपने जुर्म छिपाना चाहता हैं। भास्कर इसी पुख्ता सबूत की तैयारी में डाॅक्टर अंसारी के पास आता है क्योंकि जिन मृतकों की वह जांच कर रहा है उसका निष्कर्ष देवधर के विरोध ही जाएगा। अंसारी वह रिपोर्ट भास्कर को सौंपता है लेकिन उसके प्रकाशित होने के पहले ही भास्कर घातक हमले में मारा जाता है और फोन पर देवधर की फाइल देने की धमकियाँ दी जाती है। अंसारी फाइल देने से इंकार करता है और नतीजतन दंगाई और भ्रष्ट पुलिस की मिलीभगत से उसका घर तबाह करने साथ समूचे परिवार को भी मार दिया जाता है और झूठे सबूतों की बिना पर आतंकवादी घोषित किया जाता हैं।

इसी बीच, आंग्रे और उसके आदमी घर अंदर पहुँचकर अनंत और बाकियों पर बंदूक तान ही देते हैं सिवाय शेखर और अश्विन के जो अंधेरे का लाभ उठाकर फौरन अंसारी को घर पीछे के वेयरहाऊस में छिप जाते हैं। जब तक आंग्रे के आदमी घर की तलाशी करते, आंग्रे अनंत से उसके हाथों बेज़्जती का बदला लेने के तरीके बताता हैं क्योंकि उसके मुताबिक अनंत को अपनी जान से ज्यादा अपने कर्तव्य और आदर्शों की ही परवाह हैं। वहीं आंग्रे के आदमी घर की छानबीन करते हूए वेयरहाऊस पहुँचते हैं। आंग्रे उनके साथ प्रवेश ही कर पाता कि वहां रखे ज्वलनशील गैस से भरे सिलिण्डरों पर बाहर खड़ा अश्विन उस पर गोली दाग एक जानलेवा धमाका करता है जिससे कुछ गुण्डे मारे जाते हैं। इस अफरातफरी में टीम पुलिस वैन पर जल्द सवार होकर भागती ही हैं कि आंग्रे की चलाई गोली से अंसारी बुरी तरह घायल होता है। तभी अनंत को नायडू से अंसारी को गोली लगने की खबर पुछा जाता हैं। अनंत समझ जाता है कि नायडू भी एक भ्रष्ट पुलिसकर्मी हैं जो देवधर का काम करता हैं और अनंत की हर गतिविधियों की जानकारी आंग्रे को देता हैं।

अनंत अपनी टीम के साथ घायल अंसारी को स्थानीय अस्पताल में भरती कराते हैं, डाॅक्टर उसकी जान तो बचा लेते हैं मगर उसकी स्थिति और बिगड़ने की भी अंदेशा करते हैं। अनंत अपनी टीम के सदस्यों को इस अभियान से मुक्त होने को कहते है क्योंकि जिन लोगों ने इस मिशन पर जाने को कहा वे स्वयं इसे सफल नहीं होने देना चाहते। वे बताते हैं कि वे आखिर तक इसे अंजाम देकर रहेंगे। तब शेखर बीती रात को हुई बदतमीज़ी की माफी मांगता है और वह भी उनके साथ आखिर तक चलने की जिद करता है ताकि एक बार खुद को ईमानदार पुलिस साबित कर सकें। और फिर अन्य सदस्य भी अपनी यही राय देते हैं।

वहीं स्थानीय पुलिस अनंत की टीम को पुलिस थाने ले जाती है जहां उन्हें कहा जाता है कि उनको विश्राम देने और अंसारी की जिम्मेदारी से मुक्त कराए जाने का आदेश प्राप्त है। ऑफिसर को मिले इस जिम्मेवारी पर अनंत अपना रोष जाहिर करता हैं कि किस कदर भ्रष्टाचार में डुबी पुलिसकर्मी देवधर जैसे बेईमान राजनीतिज्ञ लोगों की उन्हीं के विभाग का अफसर नायडू हुक्मउदूली करता है। ऑफिसर उन्हें गौर करते हुए उनकी मदद का आश्वासन देता है और नायडू से मिले काॅल पर गलत लोगों को गिरफ्तार किए जाने की गलतफहमी जताता है।

वहीं आंग्रे और नायडू की नाकामी पर मंत्री देवधर अनंत की टीम के खिलाफ समाचार-समूह की मंत्रणा पर जनता को प्रचारित करता है कि यह टीम बिक चुकी हैं और आईएसआई के संबंध से जुड़ चुकी हैं। दूरदर्शन और अन्य समाचार माध्यमों से गुमराह एक जन-समूह उसी अस्पताल के यहां पहुँच अंसारी को उनके सुपुर्द करने के लिए पथराव करती है। अनंत बिना विरोध किए उनके मध्य जाकर कहता है कि जो लोग सच्चाई से अवगत नहीं होते तो ऐसे ही भ्रष्ट राजनेता उनको भ्रमित कर अपना हित साधते हैं।

यहां अनंत की टीम को मुंबई रवाना होने के लिए एक कार्यवाहक रेल सुविधा मिलती है। लेकिन उनकी सावधानी बरतने से पहले ही उसी ट्रेन पर आंग्रे अपने हथियारबंद आदमियों के साथ स्टेशन पहुँचता है। पर तभी हवलदार कमलेश को स्टेशन बाहर पुलिस वैन भगाते देख आंग्रे व उसके आदमी गोलियाँ बरसाने के झांसे में फंसते हैं और उन्हीं के पीठ पीछे शेखर ट्रेन पर कब्जा जमाते हुए वहीं छिपे अन्य सदस्यों को बचाते हुए अनंत बाकी आतंकियों पर गोलीबारी करता है। कमलेश पटरियों के समीप वैन रोक ट्रेन पकड़ने की कोशिश करता है पर अंततः आंग्रे के चलाई गोली से वह मारा जाता।

मुंबई पहुँचकर जब अंसारी को अस्पताल में इलाज के लिए लाया जाता है डाॅक्टर उसके गंभीर स्थिति को देखते हुए मृत घोषित करते हैं। वहीं अंसारी की मां को लगता हैं कि अनंत ने जानबूझकर उनकी प्रार्थना की उपेक्षा की हैं और उसकी जवाबदेही से पहले ही गुस्से में पत्रकारों के बीच उन्हें तमाचा मारती हैं। बावजूद अगली सुबह अनंत अपनी टीम के साथ अंसारी का सम्मान सहित अंतिम संस्कार कराती है, और मिडिया के समक्ष इस केस की दुबारा कार्यवाई का ऐलान करती हैं।

मिडिया में अनंत के दिए बयान से बौखलाया देवर उसे अपनी सीमा में रहने की धमकी देता हैं लेकिन अनंत उसके बहकावे में नहीं आते। यहां अनंत अपनी टीम को पत्रकार भास्कर के बेटे के जरिए उस के ठिकाने को किसी प्रकार ढुंढ़ निकालती हैं। शेखर और महालक्षमी उस फाईल को तलाशने ग्रेंड पोस्ट-ऑफिस पहुँचते हैं जहां पहले ही घात लगाए आंग्रे से उनका सामना होता है। स्थिति बिगड़ने से पहले शेखर वह फाईल महालक्षमी को देकर अनंत को सौंपने का जिम्मा देता है और शेखर तब आंग्रे के आदमियों से भिड़ जाता है।

किसी तरह शेखर को नजदीकी स्टेडियम तक पहुँचाने बाद वह समझ जाता हैं कि महालक्षमी आंग्रे की ही गर्लफ्रैंड है जो उनकी ही सूचना पर इस फाईल को कब्जा चुकी है। शेखर मरने से पहले ही अनंत को काॅल करता है जिससे मालूम हो जाता है कि महालक्षमी आंग्रे की जासूस है और फिर शेखर आंग्रे के हत्यारों के चलाई गोलीबारी में शहीद होता है।

अगले दिन अनंत और अश्विन महालक्षमी का पीछा करते हुए आंग्रे को ढुंढ़ निकालते हैं। लेकिन गोलीबारी की मुठभेड़ में आंग्रे महालक्षमी को अपनी आड़ में लेकर उसे भी मार देता हैं।

अनंत तब आंग्रे का पीछा करते हूए अन्य पुलिसकर्मियों के सहारे उसे घेर लेता है और गिरफ्तारी से पहले अनंत आवेग में आंद्रे की खूब पिटाई कर उसे बेदम कर पुलिस के हवाले करता है।

बरामद फाइल की पुख्ता सबूतों के मद्देनजर न्यायालय आंग्रे, देवधर और नायडू पर विभिन्न संगीन अपराधों में संलिप्त होने का दण्ड करार देती हैं। कारावास को ले जाने दौरान आंग्रे को जिस वैन से ले जाया गया उसकी हथकड़ी फंसाने वाली फ्रेम को वह ढीला पाता है। खुद को फौरन छुड़ाते हुए, आंग्रे हवलदार पर हमला कर, रायफल छीनते हुए वैन को रोकता है। तब तक अश्विन के वैन से बाहर आते ही आंग्रे उसपर रायफल तानता हैं। आंग्रे ट्रिगर खींचता है, लेकिन गोली न होने पर चला नहीं पाता। बंदूक रखकर जैसे ही आंग्रे समर्पण कर उसकी बेवकूफी समझ हंसता अश्विन दो गोलियाँ आंग्रे पर दाग देता हैं और उन्हीं बोल्ट्स को दिखाते हुए पहले से ही जानबूझकर खोले जाने का उजागर करता है। अश्विन तब हवलदार को पूरे घटनाक्रम के जरूरी निर्देश देता हैं और अपने वरिष्ठ अफसर को फोन पर आंग्रे के हिरासत से भागने और आत्मरक्षा में गोली चलाने की दुर्घटना में बुरी तरह घायल होने की सूचना देता है।

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