ख़
ख़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। हिंदी-उर्दू के कई शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे कि ख़रगोश, ख़ुश, ख़बर, ख़ैर और ख़ून। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसके उच्चारण को x के चिह्न से लिखा जाता है और उर्दू में इसे خ लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम ख़े है।3!
अघोष कण्ठ्य संघर्षी
ख़ को भाषाविज्ञान के नज़रिए से अघोष कण्ठ्य संघर्षी वर्ण कहा जाता है (अंग्रेजी में इसे वाएस्लेस वेलर फ़्रिकेटिव कहते हैं)।
वैदिक संस्कृत में
'ख़' की ध्वनि के बारे में एक ग़लत धारणा है कि इसे भारत में केवल अरबी-फ़ारसी के शब्दों की वजह से मान्यता प्राप्त है। प्राचीन वैदिक संस्कृत में 'ख़' की ध्वनि पाई जाती थी और इसे जिह्वामूलीय की श्रेणी में डाला जाता था।[१] 'ख़' की ध्वनि को विसर्ग में ही अघोष कण्ठ्य वर्णों से पहले उच्चारित किया जाता था।[२] पाणिनि के समय तक यह ध्वनि संस्कृत से लुप्त हो गयी और केवल एक सरल विसर्ग ही उच्चारित किया जाने लगा। उर्दू के अलावा भारत के ऑफ़िशल भाषाओं में से सिर्फ़ असमिया भाषा में ही इसका इस्तेमाल होता है। असमिया में 'स' (স), 'ष' (ষ) और 'श' (শ) का उच्चारण 'ख़' है -
- 'অসম' (ôxôm) - अर्थः असम
- 'সাধাৰণ' (xadharôn) - अर्थः 'साधारण'
- 'সিন্ধু' (xindhu) - अर्थः 'सिंधु'
- 'সত্য' (xôtyô) - अर्थः 'सत्य'
- 'সেনা' (xêna) - अर्थः 'सेना'
[यहाँ पर 'x' का उच्चारण 'ख़' है, 'ô' का उच्चारण छोटी 'ऑ' है और असमिया में किसी भी स्वरवर्ण का दीर्घ उच्चारण नहीं होता है।]
भारत की कुछ आदिवासी भाषाओं में भी यह ध्वनि अभी तक पाई जाती है, जैसे की झारखंड और बिहार की उरांव जनजाति की बोली का नाम ही कुड़ुख़ है।
ग़लत उच्चारण
'ख़' की ध्वनी का उच्चारण कईं लोग ग़लती से 'ख' से मिलता-जुलता कर देते हैं। इस से कभी-कभी शब्दों का अर्थ बदल कर ग़लत अर्थ निकल आता है। कुछ उदहारण हैं -
- ख़ाना का अर्थ होता है कोई कमरा या घर (जैसे की ग़ुसलख़ाना, पागलख़ाना, मयख़ाना, चायख़ाना) जबकि खाना का अर्थ है कोई खाने की चीज़ (खाद्य पदार्थ)
- ख़ुदा का अर्थ है भगवान जबकि खुदा का अर्थ है वो जगह जहां खुदाई करी गई हो. अगर कहें "इधर भी ख़ुदा है, उधर भी ख़ुदा है" तो इसका अर्थ है "इधर भी भगवान है, उधर भी भगवान है" यानी भगवान सर्वत्र है। लेकिन अगर कहें "इधर भी खुदा है, उधर भी खुदा है" तो इसका अर्थ है के "इधर, उधर, हर जगह पर खुदाई हुई है" जिसका मतलब पहले वाक्य से बिलकुल भिन्न है।