खनिज विज्ञान
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खनिज विज्ञान (अंग्रेज़ी:मिनरलॉजी) भूविज्ञान की एक शाखा होती है। इसमें खनिजों के भौतिक और रासायनिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। विज्ञान की इस शाखा के अंतर्गत खनिजों के निर्माण, बनावट, वर्गीकरण, उनके पाए जाने के भौगोलिक स्थानों और उनके गुणों को भी शामिल किया गया है। इसके माध्यम से ही खनिजों के प्रयोग और उपयोग का भी अध्ययन इसी में किया जाता है। विज्ञान की अन्य शाखाओं की भांति ही इसकी उत्पत्ति भी कई हजार वर्ष पूर्व हुई थी। वर्तमान खनिज विज्ञान का क्षेत्र, कई दूसरी शाखाओं जैसे, जीव विज्ञान और रासायनिकी तक विस्तृत हो गया है। यूनानी दार्शनिक सुकरात ने सबसे पहले खनिजों की उत्पत्ति और उनके गुणों को सिद्धांत रूप में प्रस्तुत किया था, हालांकि सुकरात और उनके समकालीन विचारक बाद में गलत सिद्ध हुए लेकिन उस समय के अनुसार उनके सिद्धांत नए और आधुनिक थे। किन्तु ये कहना भी अतिश्योक्ति न होगा कि उनकी अवधारणाओं के कारण ही खनिज विकास की जटिलताओं को सुलझाने में सहयोग मिला, जिस कारण आज उसके आधुनिक रूप से विज्ञान समृद्ध है। १६वीं शताब्दी के बाद जर्मन वैज्ञानिक जॉर्जियस एग्रिकोला के अथक प्रयासों के चलते खनिज विज्ञान ने आधुनिक रूप लेना शुरू किया।
इतिहास
खनिज विज्ञान के बारे में आरंभिक लेखन, विशेषकर रत्न आदि के बारे में प्राचीन बेबीलोनिया, प्राचीन यूनान-रोम साम्राज्यों, प्राचीन चीन और प्राचीन भारत के संस्कृत में उपलब्ध पौराणिक साहित्य में मिलता है।[१] इस विषय पर उपलब्ध पुस्तकों में प्लाइनी द एल्डर की नैचुरैलिस हिस्टोरिया है, जिसमें विभिन्न खनिजों का वर्णन ही नहीं किया गया है, वरन उनके कई गुणों का भी ब्यौरा दिया है। जर्मन पुनर्जागरण विशेषज्ञ जॉर्जियस एग्रिकोला ने डी रे मैटेलिका (धातुओं पर, १५५६) और डी नैच्युरा फॉसिलियम (शैलों की प्रकृति पर, १५४६) जैसे कई ग्रन्थ दिये हैं, जिनमें इस विषय पर वैज्ञानिक पहलुओं पर विचार किया गया है। यूरोप में पुनर्जागरण उपरांत के युग में खनिजों और पाषाणों के क्रमबद्ध और सुव्यवस्थित वैज्ञानिक अध्ययनों का विकास हुआ।[२] खनिज विज्ञान के आधुनिक रूप का आधार १७वीं शताब्दी में सूक्ष्मदर्शी यंत्र के आविष्कार क्रिस्टलोग्राफी के सिद्धांतों और शैलों के अनुभाग काटों के नमूनों का सूक्ष्म अध्ययन पर हुआ।[२]
खनिजों के गुणों का अध्ययन और उनका वर्गीकरण उनकी भौतिक विशेषताओं पर निर्भर करता है। खनिज की कठोरता की जांच के लिए मॉस्केल टेस्ट किया जाता है। किसी खनिज की कठोरता या कोमलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसकी आंतरिक संरचना में परमाणुओं का विन्यास कैसा है।
आधुनिक खनिज विज्ञान
इतिहास में देखें तो, खनिज विज्ञान मूलतः शैल-घटक खनिजों के वर्गीकरण (टैक्सोनॉमी) पर ही केन्द्रित रहा है। अंतर्राष्ट्रीय खनिजविज्ञान संगठन (आई.एम.ए) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसके सदस्य विशिष्ट राष्ट्रों के प्रतिनिधि खनिजशास्त्री होते हैं। इसके क्रियाकलापों में खनिजों का नामकरण (नये खनिज एवं खनिज नाम आयोग के सहयोग द्वारा), ज्ञात खनिजों के पाये जाने के स्थान, आदि आते हैं। वर्ष २००४ के आंकड़ों के अनुसार आई.एम.ए द्वारा मान्यता प्राप्त खनिजों की ४,००० किस्में हैं। और इनमें से लगभग १५० को सामान्य, अन्य ५० को प्रासंगिक और शेष को दुर्लभ से अत्यंत दुर्लभ कहा जा सकता है।
हाल के कुछ वर्षों में हुए विकास से सामने आयी तकनीकों (जैसे न्यूट्रॉन-विवर्तन) और उपलब्ध तेज गणन क्षमता जो आधुनिक कंप्यूटरों और अत्यंत एक्युरेट परमाणु-पैमाने सिमुलेशन द्वारा क्रिस्टल व्यवहार के अध्ययन से समर्थित है; विज्ञान ने इनॉर्गैनिक रासायनिकी एवं सॉलिड स्टेट भौतिकी के क्षेत्र में गहन अध्ययन हेतु एस शाखा को पृथक किया है। फिर भी इसमें अब भी पाषाण-निर्माण में लगे खनिजों की क्रिस्टल संरचना पर ध्यान केन्द्रित रखा है। इस शाखा के विकास के में खनिजों व उनके प्रकार्यों के परमाणु-पैमाने पर अध्ययन पर प्रकाश डाला है। इस शाखा के अंतर्गत खनिजों के कई प्रकार के अध्ययन किये जाते हैं:
भौतिक खनिज विज्ञान
भौतिक खनिजशास्त्र में खनिजों के भौतिक गुणों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। भौतिक गुणों का वर्णन उनकी पहचान, वर्गीकरण, श्रेणिगत करने में विशेष सहयोगी रहता है। इसमें निम्न बिन्दुओं पर गौर किया जाटा है:[३]
रासायनिक खनिज विज्ञान
जैवखनिज विज्ञान
दृष्टि-संबंधी खनिज विज्ञान
क्रिस्टल संरचना
निर्माण कारक
प्रयोग
वर्णनात्मक खनिज विज्ञान
डिटर्मिनेटिव खनिज विज्ञान
अब तक चार हजार से अधिक खनिजों की खोज हो चुकी है। इनमें से अधिकतर ऐसे हैं, जो अब कम या बहुत कम पाए जाते हैं। मात्र १५० खनिज ही ऐसे हैं, जो वर्तमान में बड़ी मात्र में पाए जाते हैं। कुछ ऐसे भी खनिज हैं, जो कभी किसी अवसर या प्राकृतिक घटना पर ही पाए जाते हैं, इनकी संख्या ५० से १०० के बीच है। खनिजों के बारे में यही कहा जा सकता है कि ये केवल पृथ्वी की सतह पर पाए जाने वाले तत्व ही नहीं हैं, वरन भूगर्भ में, सागर में, वातावरण में भी मिलते हैं। कई खनिज स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं।
सन्दर्भ
- नीढैम जोसफ़ (१९८६) साइंस एण्ड सिविलाइज़ेशन इन चाइना: खण्ड-३। ताइपेई: केव्स बुक्स लि.
- रैम्स्डेल, लेविस एस (१९६३) एन्साइक्लोपीडीया अमेरिकाना: अन्तर्राष्ट्रीय संस्करण खण्ड-१९। न्यू यॉर्क: अमेरिकाना कॉर्प.
बाहरी कड़ियाँ
- International Mineralogical Association
- mindat.org mineralogical database
- Mineralogical Society of Americaसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- Mineralogical Association of Canada
- The Giant Crystal Project
- The Geological Society of America
- The Virtual Museum of the History of Mineralogy