क्रिस्टलीय ठोस
क्रिस्टलीय ठोस साधारणतः लघु क्रिस्टलों की अत्यधिक संख्या से बना होता है, उनमें प्रत्येक क्रिस्टल का निश्चित ज्यामितीय आकार होता है। क्रिस्टल में परमाणुओं, अणुओं अथवा आयनों का क्रम सुव्यवस्थित होता है। इसमें दीर्घ परासी व्यवस्था होती है अर्थात् कणों की व्यवस्थाका खास पैटर्न होता है जिसकी निस्चित क्रम से पुनरावृत्ति होती है। क्रिस्टलीय ठोसो का गलनांक निश्चित होता है। क्रिस्टलीय ठोस विषमदैशिक प्रकृति के होते हैं अर्थात् उनके कुछ भौतिक गुण जैसे विद्युतीय प्रतिरोधकता और अपवर्तनांक एक ही क्रिस्टल में भिन-भिन दिशाओं में मापने पर भिन-भिन मान प्रदर्शित करते हैं। यह अलग- अलग दिशाओं में कणों की भिन व्यवस्था से उत्पन्न होता है। भिन-भिन दिशाओं में कणों की व्यवस्था अलग होने पर एक ही भौतिक गुण का मान प्रत्येक दिशा में भिन पाया जाता है।[१] उदाहरण- सोडियम क्लोराइड, क्वार्ट्ज आदि।
अधिकतर ठोस पदार्थ क्रिस्टलीय प्रकृति के होते हैं। उदाहरण के लिए सभी धात्विक तत्व; जैसे- लोहा, ताँबा और चाँदी; अधात्विक तत्व; जैसे-सल्फर, फॉसफोरस और आयोडीन एवं यौगिक जैसे सोडियम क्लोराइड, जिंक सल्पाइड और नेप्थेलीन क्रिस्टलीय ठोस हैं। क्रिस्टलीय ठोस हो निम्न प्रकार के होते हैं उनके गुण निम्न प्रकार है 1 वह ठोस जिनके के जालक में घटक कणो कि व्यवस्था निश्चित वह नियमित होती है क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं उदाहरण Nacl,kcl,fe.... 2 इनमें दीर्घा परास व्यवस्था पाई जाती है 3 क्रिस्टलीय ठोस विद्लन का गुण प्रदर्शित करते हैं 4 इनके गलनांक उच्च होते हैं व निश्चित होते हैं क्योंकि इनके घटक कणों की व्यवस्था निश्चित वा नियमित होती है, क्रिस्टलीय ठोस को गर्म करने पर एक निश्चित ताप पर ही द्रव में बदलते हैं 5 क्रिस्टलीय ठोस और विषमदैशिकता का का गुण पाया जाता है, क्योंकि क्रिस्टल लिए ठोसो में अनेक भौतिक गुण जैसे चालकता अपवर्तनांक कठोरता आदि का मानप्रत्येक दिशा समान नहीं होते हैं 6 क्रिस्टल लिए thoso का शीतलन वक्र असतात होता हैं
अक्रिस्टलीय ठोस,,
1इनके क्रिस्टल जालक में घटक कणों की व्यवस्था निश्चित व नियमित नहीं होती 2 इन ठोसो लघु परास व्यवस्था पाई जाती है 3 इनका गलनांक अनिश्चित होता है यह एक निश्चित ताप पर द्रव अवस्था में नहीं बदलते तथा ताप बढ़ाने पर धर्म होते जाते हैं क्योंकि इनके घटक कणों की व्यवस्था निश्चित वाह निर्मित नहीं होती 4 यह विदलन का गुण प्रदर्शित नहीं करते अर्थात इनको काटने पर इनकी सताए प्लेन नहीं होती खुजली होती है इनकी सताए 5 आकृष्ट लिए ठोस और शीतल वक्र सतत॒ प्राप्त होता है
क्रिस्टलीय ठोस के प्रकार
क्रिस्टलीय ठोसों को उनमें परिचालित अंतराआण्विक बलों की प्रकृति के आधार पर चार संवर्गो में वर्गीकृत किया जा सकता है- आण्विक, आयनिक, धात्विक और सहसंयोजक।[२]
आण्विक ठोस
जिन ठोसों के क्रिस्टल जालक सरल विविक्त अणुओं से बने होते हैं उन्हें आण्विक ठोस कहते हैं (उदाहरण) आयोडीन, सल्फर, आदि
अध्रुवीय आण्विक ठोस
अध्रुवीय आण्विक ठोस वे ठोस हैं जो परमाणुओं; उदाहरणार्थ. निम ताप पर ऑर्गन और हीलियम अथवा अध्रुवीय सहसंयोजक बंधनों से बने अणुओं द्वारा बने होते हैं। इन ठोसों में अणुओओं के बीच वाण्डर बंध होते हैं। यह ठोस मुलायम और विद्युत के अचालक होते हैं।.इनमें ठोस so2 और ठोस NH3 होते हैं [३]
ध्रुवीय आण्विक ठोस
ध्रुवीय-आण्विक ठोस वे ठोस हैं जिनके अणु ध्रुवीय सहसंयोजक बंधों से बने होते हैं। ऐसे ठोसों में अणु अपेक्षाकृत प्रबल द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्योन्यक्रियाओं से एक दूसरे के साथ बँधे रहते हैं। ये ठोस मुलायम और विद्युत के अचालक होते हैं। इनके गलनांक अध्रुवीय आण्विक ठोसों से अधिक होते हैं फिर भी इनमें से अधिकतर कमरे के ताप और दाब पर गैस अथवा द्रव रूप में मिलते हैं।[४]
आयनिक ठोस
आयनिक ठोस वे ठोस हैं जिनके अवयवी कण आयन होते हैं। इनका निर्माण धनायनों और ऋणायनों के त्रिविमीय विन्यासों में प्रबल स्थिर वैद्युत बलों से बँधने पर होता है। ये ठोस कठोर और भंगुर प्रकृति के होते हैं। इनके गलनांक और क्वथनांक उच्च होते हैं। चूकि इसमें आयन गमन के लिए स्वतंत्र नहीं होते, अतः ये ठोस अवस्था में विझुतरोधी होते हैं। तथापि गलित अवस्था में अथवा जल में घोलने पर, आयन गमन के लिए मुक्त हो जाते हैं और वे विद्युत का संचालन करते हैं। धातुएं, मुक्त इलेक्ट्रॉनों के समुद्र से घिरे और उनके द्वारा संलग्नित धनायनों का व्यवस्थित संग्रह हैं। ये इलेक्ट्रॉन गतिशील होते हैं और क्रिस्टल में सर्वत्र समरूप से विस्तारित होते हैं।[५]
सन्दर्भ =
- ↑ रसायनशास्त्र, भाग-१, (कक्षा १२), एनसीईआरटी, नई दिल्ली, पृष्ठ-२-३
- ↑ रसायनशास्त्र, भाग-१, (कक्षा १२), एनसीईआरटी, नई दिल्ली, पृष्ठ-४
- ↑ रसायनशास्त्र, भाग-१, (कक्षा १२), एनसीईआरटी, नई दिल्ली, पृष्ठ-४
- ↑ रसायनशास्त्र, भाग-१, (कक्षा १२), एनसीईआरटी, नई दिल्ली, पृष्ठ-४
- ↑ रसायनशास्त्र, भाग-१, (कक्षा १२), एनसीईआरटी, नई दिल्ली, पृष्ठ-४