कुलोत्तुंग चोल प्रथम

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कुलोत्तुंग चोल
முதலாம் குலோத்துங்க சோழன்
चित्र:kulothunga territories a.png
चोल साम्राज्य, १०७० ई०
शासन १०७० - ११२० ई०
उपाधि राजकेसरी
राजधानी गंगैकोण्ड चोलपुरम
रानी मदुरान्तकी
Thyagavalli
Elisai Vallabhi
Solakulavalliyār
संतान राजराजा मुम्मुंडी चोल
Rajaraja Chodaganga
Vikrama Chola
four other sons
Suttamalli
पूर्वाधिकारी अतिराजेन्द्र चोल
उत्तराधिकारी विक्रम चोल
पिता -
जन्म अज्ञात
मृत्यु ११२२ ई०
चोल राजाओं की सूची
प्रारंभिक चोल
Elara चोल  •   235 BC - 161 BC
Ilamcetcenni  •   Karikala चोल
Nedunkilli  •  
Killivalavan  •   Kopperunचोलन
Kocengannan  •   Perunarkilli
Interregnum (c.200–848)
मध्यकालीन चोल
विजयालय चोल 848–871(?)
आदित्य प्रथम 871–907
प्राणांतक चोल I 907–950
गंधारादित्य 950–957
अरिंजय चोल 956–957
सुन्दर चोल 957–970
उत्तम चोल 970–985
राजराज चोल I 985–1014
राजेन्द्र चोल I 1012–1044
राजाधिराज चोल 1018–1054
राजेन्द्र चोल II 1051–1063
वीरराजेन्द्र चोल 1063–1070
अतिराजेन्द्र चोल 1067–1070
उत्तरवर्ती चोल
कुलोत्तुंग चोल I 1070–1120
विक्रम चोल 1118–1135
कुलोत्तुंग चोल II 1133–1150
राजराज चोल II 1146–1173
राजाधिराज चोल II 1166–1178
कुलोत्तुंग चोल III 1178–1218
राजराज चोल III 1216–1256
राजेन्द्र चोल III 1246–1279
चोल समाज और संस्कृति
चोल प्रशासन
चोल सेना  •   चोल नौसेना
चोल कला  •   चोल सहित्य
Solesvara मंदिर
Poompuhar  •   Urayur
Melakadambur
गंगईकोंडा चोलपुरम
थंजावुर  •   तेलुगु चोल
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कुलोत्तुंग चोल प्रथम (१०७०-११२२ ई.) दक्षिण भारत के चोल राज्य का प्रख्यात शासक था। यह वेंगी के चालुक्यनरेश राजराज नरेंद्र (१०१९-१०६१ ई०) का पुत्र था और इसका नाम राजेंद्र (द्वितीय) था। इसका विवाह चोलवंश की राजकुमारी मधुरांतका से हुआ था जो वीरराजेंद्र की भतीजी थी। यह वेंगी राज्य का वैध अधिकारी था किंतु पारिवारिक वैमनस्य के कारण वीरराजेंद्र ने राजेंद्र (द्वितीय) के चाचा विजयादित्य (सप्तम) को अधीनता स्वीकार करने की शर्त पर राज्य प्राप्त करने में सहायता की। इस प्रकार यह वेंगी का अपना पैत्रिक राज्य प्राप्त न कर सका। किंतु कुछ वर्षों बाद वीरराजेंद्र का उत्तराधिकारी और पुत्र अधिराजेंद्र एक जनविद्रोह में मारा गया तब चालुक्य राजेंद्र (द्वितीय) ने चोल राज्य को हथिया लिया और कुलोत्तुंग (प्रथम) के नाम से इसका शासक बना। तब इसने अपने पैतृक राज्य वेंगी से विजयादित्य (सप्तम) को निकाल बाहर किया और अपने पुत्रों को वहाँ का शासक बनाकर भेजा।

कुलोत्तुंग की गणना चोल के महान नरेशों में की जाती है। अभिलेखों और अनुश्रुतियों में उसका उल्लेख संगमतविर्त्त (कर-उन्मूलक) के रूप में हुआ है। उसके शासनकाल का अधिकांश भाग अद्भुत सफलता और समृद्धि का था। उसकी नीति थी अनावश्यक युद्ध न किया जाय और उनसे बचा जाए। परिणामस्वरूप श्रीलंका को छोड़कर चोल साम्राज्य के सारे प्रदेश १११५ ई. तक उसके अधीन बने रहे। उसे मुख्य रूप से वीरराजेंद्र के दामाद कल्याणी के चालुक्य नरेश विक्रमादित्य (षष्ठ) से निरंतर संघर्ष करना पड़ा। इसके कारण उसके अंतिम दिनों में चोल राज्य की स्थिति काफी दयनीय हो गई और वह तमिल देश और तेलुगु के कुछ भागों में ही सिमट कर रह गया।

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सन्दर्भ