कुम्भ एक परम्परागत भारतीय पात्र (बर्तन) है। कुम्भ का निर्माण करने वालों को कुम्भकार कहते हैं। 'कुम्भ' को मोटे तौर पर 'घड़ा' कह सकते हैं।
कबीरदास का 'कुम्ब' से सम्बन्धित प्रसिद्ध दोहा है-
- गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि़ गढि़ काढ़ै खोट।
- अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
सन्दर्भ
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