कुमार अंबुज
कुमार अंबुज (13 अप्रैल 1957) हिन्दी के सुप्रसिद्ध, चर्चित कवि हैं।[१] उनका पहला कविता संग्रह 'किवाड़' (1992), जिसकी शीर्षक कविता को भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार मिला। 'क्रूरता' (1996), दूसरा कविता संग्रह है। उसके बाद 'अनंतिम' (1998), 'अतिक्रमण' (2002) और 'अमीरी रेखा' (2011) कविता संग्रह विशेष रूप से चर्चित हुए हैं। अलग और प्रशंसित शिल्प-कथ्य की अनेक कहानियाँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं, जो संग्रहाकार 'इच्छाएँ' (2008) में आईं।[२] कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, श्रीकांत वर्मा सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान, केदार सम्मान, माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार और वागीश्वरी पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित अनेक प्रतिनिधि संचयनों में कविताऍं/कहानियाँ शामिल। कुछ कविताऍं और कहानियाँ विभिन्न पाठयक्रमों में शरीक। इस तरह कुल पाँच कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह और दो डायरी एवं निबंध संग्रह प्रकाशित हैं। 2012 में किताबघर प्रकाशन की बहुचर्चित सीरीज 'कवि ने कहा' अंतर्गत चयनित कविताओं का संकलन और राजकमल प्रकाशन की प्रतिष्ठ सीरीज'प्रतिनिधि कविताएँ' अंतर्गत 2014 में संग्रह प्रकाशित है। 'मनुष्य का अवकाश' वैचारिक लेखों की पुस्तक है। डायरी और सर्जनात्मक टिप्पणियों की पुस्तक 'थलचर' 2016 में आई है। एक कहानी संग्रह और एक कविता संग्रह अभी यंत्रस्थ हैं।
कुछ चर्चित और अन्य भाषाओं में अनूदित शताधिक कविताऍं हैं। जैसे-'क्रूरता, चंदेरी, जंजीरें, भरी बस में लाल साफेवाला आदमी, चुंबक, तुम्हारी जाति क्या है, अक्तूबर का उतार, अकेला आदमी, नागरिक पराभव, किवाड़, चाय की गुमटी, साध्वियां, प्रधानमंत्री और शिल्पी, होम्योपैथी, कोई मांजता है मुझे, मेरा प्रिय कवि, भाषा से परे, खाना बनाती स्त्रियां, नयी सभ्यता की मुसीबत' आदि। इसी तरह 'माँ रसोई में रहती है', 'सनक', 'एक दिन मन्ना डे' जैसी अनेक कहानियाँ चर्चित, रंगमंच हेतु रूपांतरित और अन्य भाषाओं में अनूदित हुई हैं।