कुकी जनजाति

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कुकी मंगोली नस्ल की एक वनवासी जाति है जो असम और अराकान के बीच लुशाई और काचार जिले में रहती है। इनको चिन, जोमी, मिजो (मिज़ोरम में) भी कहते हैं। कूकी लोग भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों, उत्तरी म्याँआर, बंगलादेश के चित्तग्राम पहाड़ियों पर निवास करते हैं। भारत में अरुणाचल प्रदेश को छोडकर वे सभी उत्तरपूर्वी राज्यों में पाये जाते हैं। अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर उनका बिखरे होना मुख्यतः ब्रिटेन की औपनिवेशिक नीति का परिणाम है।

इसके बोंजुंग कुकी, बायटे कुकी, खेलमा कुकी आदि कई कुलवाची भेद हैं। ये बलिष्ठ एवं ठिंगने होते हैं और नागा लोगों की अपेक्षा अधिक खूंखार समझे जाते हैं। आज से लगभग डेढ सौ वर्ष पूर्व लुशाई और कुकी लोगों में युद्ध हुआ जिसमें कुकी लोगों की हार हुई और वे अपना निवास छोड़कर काचार में आ बसे। उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने प्रश्रय दिया और २०० कुकियों को सीमांत रक्षार्थ सैनिक शिक्षा दी।

कुकी लोग अपने सरदार की आज्ञा का पालन अपना धर्म समझते हैं। सरदार उनका एक प्रकार से राजा होता है और समझा जाता है कि वह दैवी अंश है। इस कारण वे लोग उसका कभी अनादर करने का साहस नहीं करते वरन् वह जो आदेश देता है उसका आँख मूँदकर पालन करते हैं। विशेष अवसर आने पर सरदार संकेत द्वारा आदेश जारी करता है। यदि कोई व्यक्ति सरदार का भाला सुसज्जित रूप में लेकर गाँव में घूमता है तो उसका अर्थ होता है कि सरदार ने सब लोगों को अविलंब बुलाया है। इस वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति अपने सरदार को प्रति वर्ष करस्वरूप एक टोकरी चावल, एक बकरी, एक कुक्कुट और अपने शिकार का चौथा भाग प्रदान करता है और चार दिन की कमाई देता है। सरदार की सहायता के लिए एक मन्त्रिमंडल होता है जिसकी सहायता से वह न्याय करता है।

कुकी लोगों में विश्वासघात की सजा मृत्यु है। खून के अपराध में खूनी और उसके परिवार को गुलामी करनी होती है। स्त्रियों को किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं है, उनपर सरदार का आदेश लागू होता है। कुकी लोग 'उथेन' नामक देवता की पूजा करते हैं।