किताब (नाटक)
किताब | |
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निर्देशक | रफीक मंगलसेरी |
लेखक | रफीक मंगलसेरी |
प्रदर्शन साँचा:nowrap | साँचा:start date स्थल : वटाकारा केरला |
समय सीमा | करीब ३० मिनट |
देश | साँचा:flag/core |
भाषा | मलयालम विषय=मुस्लीम स्त्री के लिए समान अधिकार; शैली=युवा नाट्य और हास्य चित्रण |
किताब ( मलयालम : കിത്താബ് / कित्ताब् ), मलयालम भाषा का एक नाटक है जिसमें एक ऐसी युवा लड़की का हास्यपूर्ण चित्रण है, जो अजान (बांग) पुकारने का सपना देखती है। सामूहिक प्रार्थना करने के लिए मस्जिदों से जो आवाज दी जाती है उसे अजान कहते हैं और इसे अबतक सामान्यतः केवल पुरुष मुअज़्ज़िन या मुकरी पुकारते आए हैं। लड़की अपने समुदाय की महिलाओं के दमन एवं उत्पीड़न पर सवाल उठाती है और अपनी सहेलियों के साथ नाचते हुए, इनकार किए गये अन्न पर अपना हक जताते हुए, अजान पुकारने के अवसर की मांग करते हुए सामुदायिक मानदण्डो के खिलाफ विद्रोह करती है।[१][२]
'किताब' ने पारम्परिक मुसलमान परिवार में प्रचलित विभिन्न मुद्दों पर महिलाओं के खिलाफ हो रहे सामाजिक भेदभाव को चित्रित किया है। इस नाटक में लड़कियों के लिए आहार की अनुपलब्धता, खराब शिक्षा, और बहुविवाह की प्रथा जैसे कई भेदभाव विषयों पर चर्चा की जाती है।[३]
नाटक को पटकथा लेखक-निर्देशक रफीक मंगलसीरी ने लिखा है।[४][५][६] यह नाटक नवम्बर २०१८ में भारतीय राज्य केरल में ऐसे समय में आया जब महिला अधिकार आन्दोलन आकार ले रहा था। यह माहौल ऐसा था जिसमें महिलाओं ने अधिकारों के लिए आवाज उठायी गयी थी जिसमें सबरीमाला मन्दिर में पूजा करने का अधिकार, मुस्लिम महिलाओं के लिए धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने का अधिकार ,और धार्मिक स्थानों में लिंग समानता के हेतु महिलाओं की इमामों के रूप में नियुक्ति, मस्जिदों में और नमाज़ में भाग लेना शामिल था ।[१]
प्रेरणा
रफीक मंगलासरी कहते हैं कि उनका नाटक किताब सीधे तौर पर वांगु की कहानी पर आधारित नहीं था, बल्कि लेखक उन्नी आर की कहानी वांगु से प्रेरित एक स्वतंत्र रूपान्तरण था। जहाँ लेखक उन्नी आर ने खुद को मंगलसेरी के नाटक से यह कहते हुए दूर कर लिया कि यह उनके विचारों के अनुरूप नहीं है और मंगलसेरी के नाटक में उनकी कथा के मुकाबले आध्यात्मिक मूल्य में कमी है।[७] मलयालम निर्देशक वीके प्रकाश की भी उन्नी आर की कहानी वांगु को फिल्म के लिए रूपांतरित करने की स्वतंत्र योजना थी।[८]
कथ्य
एक मुस्लिम लड़की अपने पिता की तरह मुअज़्ज़िन बनना चाहती है, और अजान बोलना चाहती है। उसकी अपनी माँ ने घर के पुरुषों के खाने लिए मछली पकाई है जिसे वह लड़की चुरा लेती है और कहती है कि ऐसा करना नैतिक रूप से गलत नहीं है क्योंकि पादशॉं (ईश्वर) यह बात समझते हैं कि लड़कियों को पर्याप्त भोजन नहीं दिया जाता है। उसके पिता तब उसे रोकते हैं, उसे बताते हैं कि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले हर चीज का आधा हिस्सा ही मिलना चाहिए। इस पर लड़की स्पष्ट रूप से पूछती है कि तब महिलाओं ने क्या पुरुषों के मुकाबले आधे कपडे़ ही पहनना सही होगा।[९]
इन संघर्षों के बीच, वह अज़ान पुकारने की इच्छा व्यक्त करती है। उसके पिता एक बड़ी किताब (किताब) के हवाले से उसके सभी सवालों का जवाब देते हैं, और वह उसे बन्द कर देता है ताकि वह फिर से नाटक (नाटक के भीतर एक नाटक) में भाग न ले पाए। वह उससे कहता है कि अगर वह इस तरह की हरकतें करती रही तो वह स्वर्ग की प्राति नहीं कर सकेगी।[९]
वह कहती हैं कि "मैं गाती हूँ और नृत्य करती हूँ, इस कारण यदि मुझे स्वर्ग में प्रवेश न मिले, तो वह स्वर्ग मुझे नहीं चाहिए। जब वह पिता की इच्छा के बावजूद स्कूल के नाटक में भाग लेती है तो पिता लड़की को मार डालने का मन बना लेता है। जब उसकी माँ उसे याद दिलाती है कि वह न सिर्फ मुअज्जिन है, बल्कि एक पिता भी है, तो वह उसे अज़ान पुकारने की अनुमति देता है, और नाटक लड़की के अज़ान पुकारने और बाकी लोग प्रार्थना करने साथ समाप्त होता है।[९]
विवाद
ग्रामीण कोझीकोड में मेमुंडा हायर सेकेंडरी स्कूल ने वडकारा में जिला स्तर पर इंटरस्कूल प्रतियोगिता के लिए इस नाटक का मंचन किया, जिसमें इस नाटक ने जिला स्तर पर सर्वश्रेष्ठ नाटक और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए पुरस्कार जीते। इसके बाद और केरल राज्यस्तरीय इंटरस्कूल प्रतियोगिता में सहभागिता जारी रखी जानी थी। चूंकि नाटक इस्लाम के सन्दर्भ में लैंगिक न्याय से सम्बन्धित है, इसलिए इसका विरोध किया गया, और धार्मिक-राजनीतिक रूढ़िवादी एवं यथास्थितिवादियों ने आस्था के मुद्दों का उपयोग मेमुंडा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के उपर अनुचित दबाव बनाकर विद्यालय की छात्राओं को इस प्रतियोगिता में भाग लेने से रोकने में सफलता प्राप्त की ।[१][४]इस नाटक ने लैंगिक समानता और धार्मिक असहिष्णुता पर चर्चा शुरू की। बाद की तारीख में नाटक का अलग से मंचन कर प्रदर्शन किया गया।[१०]
इसके बाद मलयालम मंच पर 'कित्ताबीले कुरा' नामक एक 'इसका-उसका-क्या' (व्हॉटअबाऊटरी) काउंटर-प्ले भी पर प्रदर्शित किया गया जिसमें एक महिला को धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता चाहते हुए दर्शाया गया है।[विवरण-१ १] मलयालम रंगमंच के कार्यकर्ताओं में से एक, अब्बास कलाथोड, ने काउंटर-प्ले से उत्साहित नहीं होने के बावजूद, मुस्लिम समुदाय में हाल के कई दूरगामी बदलावों पर विचार नहीं करने के लिए, मंगलसरी के 'किताब' की आलोचना की। उन्होंने कहा, "मुकीरी को समुदाय में खलनायक के रूप में चित्रित करना एक अपूर्ण विवरण है क्योंकि अन्य खलनायक भी मुसलमानों के बीच उभरे हैं।" मंगलसारी ने असहमति जताते हुए कहा कि, "यह कहना सही नहीं है कि मुस्लिम समुदाय ने सामाजिक जीवन में एक सन्तुलित प्रगति दर्ज की है। अन्य समुदायों की तरह मुस्लिमों में भी बदलाव हो सकता है। लेकिन प्रतिगामी ताकतों ने भी हावी होना शुरू कर दिया है। पर्दा, जो कि केरल में एक नगण्य अल्पसंख्यक की पोशाक थी, अब मुस्लिम महिलाओं की पहचान बन गया है। मुझे पता है कि मुकीर केवल मस्जिद में एक कर्मचारी है, लेकिन वह पुरोहीत वर्ग के वर्चस्व का प्रतिनिधित्व करता है, जिसकी शिकंजे जैसी पकड़ मुस्लिमों के बीच मजबूत हुई है। यह नाटक समुदाय के लिए नये विचार की दिशाएं दिखलाते हुए सम्पन्न होता है।"[११] मंगलास्सेरी आगे कहते हैं, "यहाँ पृष्ठभूमि एक मुस्लिम परिवार की है, और इसलिए यह नाटक मुस्लिम जीवन को जताता है। किसी विशेष धर्म का अपमान करने का कोई प्रयास नहीं है।"[४]
के सच्चिदानन्दन और एस हरीश सहित कार्यकर्ताओं और लेखकों ने "किताब" नाटक को राज्य नाट्य उत्सव से बाहर रखवाने के खिलाफ अपना विरोध जताया। एक संयुक्त बयान में उन्होंने सुधारवादी पुनर्जागरण मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर धार्मिक संगठनों के हस्तक्षेप की निन्दा की।[६][७] सिनेमैटोग्राफर प्रताप जोसेफ ने एक सोशल मीडिया अभियान चलाया, जिसमें दावा किया गया कि नाटक की वापसी " पुनर्जागरण मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा" है।
नाटककार, ए शान्ताकुमार ने फेसबुक के माध्यम से लिखा है कि "स्कूल ने इस नाटक को वापस लेकर अपने हाथ धोते हुए धार्मिक नेताओं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। उन्हें शिकायत है कि परिणाम स्वरूप नाटक के लेखक, रफीक मंगलसेरी को भी अलग-थलग कर दिया गया है।" कुमार ने पूछा कि जो लोग "पुनर्जागरण मूल्यों" के बारे में बढचढ कर बात करते हैं, वे 'अल्पसंख्यक कट्टरवाद' के हाथों मंगलसरी के अलगाव के बारे में चुप्पी क्यों साधे हुए थे।[६]
रफीक मंगलसेरी
रफीक मंगलासेरी, भारत के केरल राज्य के मलप्पुरम के चेट्टीपडी से मलयालम भाषा के एक पटकथा लेखक और निर्देशक हैं। उनके 'अन्नपूर्णा' नामक नाटक में कई लोगों के भूखे होते हुए भी, भोजन की बर्बादी को दर्शाया गया है।[१२] उन्होंने 'कोट्टेम करीम' का निर्देशन भी किया । [४]
उन्होंने 2013 में 'जिन्नु कृष्णन' नामक नाटक के लिए केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता था[१३][१४] और केरल संगीत नाटक अकादमी की ओर से 'ईराट्टा जीविथांगलिलूडे (दो जीवनों से गुजरते हुए) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए पुरस्कार दिया गया।[१५] वह बच्चों के थिएटर में एक प्रमुख अदाकार है।[१६]
इन्हें भी देखें
विवरण
- ↑ व्हॉटअबाऊटरी एक ऐसा मिथ्या कुतर्कका एक प्रकार है, जो किसी विरोधी पक्ष के मूल प्रश्न या तर्क का सिधे जवाब दिए या खंडन करे बगैर ही; 'इस बात का क्या -उस बात का क्या' पुछते हुए विषयान्तर कर विरोधी पक्ष की स्थिति को झुठलाने का प्रयत्न करता है। मगर वस्तुस्थिति विरोधी पक्ष का मूल प्रश्न तर्क अनुत्तरित रहता है, उसका खण्डन नहीं होता।
(Whataboutism (also known as whataboutery) is a variant of the tu quoque logical fallacy that attempts to discredit an opponent's position by charging them with hypocrisy without directly refuting or disproving their argument)
सन्दर्भ
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