किडनी की सूजन

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किडनी की सूजन को चिकित्सा शास्त्र में ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस कहा जाता है। किडनी की सूजन किडनी की वैसी बीमारी है जिसके कारण किडनी के फिल्टर में सूजन हो जाती है। किडनी का फिल्टर किडनी में बहुत छोटी रक्त वाहिकाओं से बना होता है, जिसे ग्लोमेरुली कहा जाता है। जब यह अचानक शुरू होता है तो यह गंभीर  हो सकता है और जब इसकी शुरुआत धीरे-धीरे होती है तो यह क्रोनिक हो सकता है। लेकिन दोनों ही स्थितियों में इसके परिणाम भयावह हो सकते हैं। इसका जल्द पता लगने और जल्दी इलाज हो जाने पर इससे कम नुकसान होगा। लेकिन कुछ महीनों तक इसका इलाज नहीं कराने पर इससे किडनी को स्थायी क्षति हो सकती है!

इसलिए अज्ञानतावश इसके लक्षणों को कभी भी नजरअंदाज न करें। इसके लक्षणों को समझना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि समय पर नेफ्रोलॉजी इंटरवेशन की मदद से किडनी को बचाया जा सके।

ग्लोमेरुली की भूमिका

हमारी किडनी में लाखों की संख्या में ग्लोमेरुली होते हैं। ये किडनी में छोटे फिल्टर होते हैं। इनके क्षतिग्रस्त हो जाने पर, किडनी अधिक समय तक गंदगी और अधिक तरल को कुशलता पूर्वक निकाल नहीं सकती है। यदि यह बीमारी लगातार बनी रहती है, तो किडनी पूरी तरह से काम करना बंद कर सकती हैं। खून का फिल्टर नहीं होने के कारण किडनी फेल्योर हो सकता है अथवा मूत्र में मिल सकता है।

ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस के लक्षण हैं:

— जागने पर चेहरे पर सूजन, पानी जमा होने के कारण टखनों में सूजन

— भूरे रंग का मूत्र या मूत्र में रक्त आना

— मूत्र में झाग होना

— मूत्र में प्रोटीन मौजूद होना

— कम पेशाब होना

— फेफड़े में तरल का होना जिसके कारण खांसी और सांस लेने में दिक्कत होना

— उच्च रक्त चाप

बीमारी के गंभीर हो जाने पर रोगी इसके लक्षणों को महसूस करेगा। लेकिन क्रोनिक मामलों में, लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं कि कभी- कभी मरीज उन लक्षणों को समझ ही नहीं पाते। इस तरह, अज्ञानता के कारण, किडनी के फिल्टर के इंफ्लामेशन के कारण किडनी को स्थायी क्षति हो जाती है और  किडनी फेल्योर हो जाता है।

किडनी फेल्योर से पीड़ित लोगों की भूख कम हो सकती है, मतली और उल्टी हो सकती है। वे थकावट महसूस कर सकते हैं और रात के दौरान मांसपेशियों की ऐंठन के कारण उन्हें नींद आने में कठिनाई हो सकती है। उनकी त्वचा शुष्क हो सकती है और त्वचा में खुजली हो सकती है। कुछ मरीजों को पीठ के  ऊपरी हिस्से में, पसलियों के पीछे किडनी में अत्यधिक दर्द हो सकता है।

कारण

यह बीमारी स्ट्रेप्टोकोकल के कारण गले में खराश या त्वचा में संक्रमण जैसे संक्रमणों के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में कमी के कारण एक्यूट हो सकती है। ज्यादातर मामलों में ऐसे संक्रमण ठीक हो जाते हैं और किडनी में सुधार होता है।

किडनी की कई प्राइमरी समस्याओं का प्रभाव ग्लोमेरुलस पर पड़ता है। जैसे, नेफ्रोपैथी में न्यूनतम परिवर्तन, एफएसजीएस (फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरुलोस्क्लेरोसिस, एमजीएन (मेम्ब्रेनस ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस, एमपीजीएन (मेम्ब्रेन प्रोलिफरेटिव ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस, आईजीए नेफ्रोपैथी और मेसैंजियोप्रोलिफरेटिव ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस)। जल्दी इलाज षुरू कर देने पर इनमें से अधिकतर समस्याएं ठीक हो जाती हैं।

मधुमेह जैसी प्रणालीगत बीमारियों, और ल्यूपस और एएनसीए वस्कुल्टिस जैसी कुछ आॅटो इम्युन बीमारियों से पीड़ित लोगों में सेकंडरी ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस विकसित हो जाता है। ऐसी स्थितियों में भी समय पर इलाज से किडनी को बचाया जा सकता है। कभी-कभी दर्द निवारक और एंटीबायोटिक दवाइयों के दुष्प्रभाव के कारण भी ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस हो सकता है। दुष्प्रभाव वाली दवा की पहचान कर और उनका सेवन नहीं कर रोगी में सुधार होता है। कुछ स्थिति पारिवारिक होती हैं।

समस्या की पहचान नहीं कर पाने और इलाज नहीं कराने पर क्रोनिक ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस होने का खतरा बढ़ जाता है। यह स्थिति दुर्भाग्य से तेजी से बढ़ने वाली होती है। हालांकि, नेफ्रोलाॅजी विशेषज्ञ से सही ढंग से इलाज कराने पर बीमारी का बढ़ना रुक जाता है।

निदान

उच्च रक्तचाप होना, विशेषकर इसका कम उम्र में ही होना या इसे नियंत्रित करने में मुश्किल आना ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस शुरू होने का संकेत हो सकता है। सूजन, अपच, कमजोरी इसके अन्य लक्षण हैं। यूरिन में आरबीसी / रक्त और प्रोटीन की उपस्थिति का पता लगाने वाली जांच बहुत सस्ती हैं और यह आसानी से उपलब्ध परीक्षण है। यूरिया क्रिएटिनिन एएनए सी 3 सी 4 एएनसीए सी और पी एएसओ जैसे रक्त परीक्षण से डॉक्टर को पता लगाने में मदद मिलती है कि आपको किस प्रकार की बीमारी है और उससे आपकी किडनी को कितना नुकसान पहुंचा है। यदि किडनी का आकार सामान्य है, तो किडनी बायोप्सी की आवश्यकता हो सकती है। बायोप्सी की रिपोर्ट से चिकित्सक को आपके लिए सबसे अच्छा इलाज की योजना बनाने में मदद मिलती है।

इलाज

इस बीमारी का इलाज स्थिति के एक्यूट या क्रोनिक होने, इसके अंतर्निहित कारणों और लक्षणों की गंभीरता पर निर्भर करता है।

संक्रमण के बाद होने वाला ग्लोमेरुलो नेफ्राइटिस आमतौर पर संक्रमण के नियंत्रित हो जाने के बाद स्वतः ठीक हो जाता है। इसके अलावा, रोगी को शायद द्रव का सेवन कम करना पड़ेगा, और शराब या अधिक प्रोटीन, नमक या पोटाशियम वाले पेय या खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना होगा। मूत्रवर्धक (डायूरेटिक्स) उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करे सकते हैं और गुर्दा के धीमी गति से काम करने में सुधार कर सकते हैं। रक्तचाप की दवा रक्त वाहिकाओं को आराम पहुंचाती है।

प्रतिरक्षा समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति को प्लाज्माफेरेसिस करना पड़ सकता है। प्लाज्माफेरेसिस एक यांत्रिक प्रक्रिया है जिसमें रक्त से प्लाज्मा को एंटीबॉडी के साथ निकाल दिया जाता है, और इसकी जगह पर अन्य द्रव या दान दिये गये प्लाज्मा को चढ़ाया जाता है। अंतर्निहित कारणों के आधार पर, स्टेरॉयड, साइक्लोफाॅस्फैमाइड, साइक्लोस्पोरिन, टैक्रोलिमस, अजैथीओप्रिन एमएमएफ आदि जैसी दवाओं की आवश्यकता हो सकती है। किडनी फेल्योर के मामले में, डायलिसिस की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन ऐसे इलाज की जरूरत अस्थायी तौर पर होती है और किडनी में सुधार होने के बाद डायलिसिस को बंद कर दिया जा सकता है।

यदि इस स्थिति में बीमारी का इलाज नहीं हो पाता है, तो यह बीमारी क्रोनिक और प्रोग्रेसिव हो जाती है। ऐसी स्थितियों में भी, बीमारी की प्रगति को धीमा करने के लिए दवाओं और नेफ्रोलोजी फॉलो-अप के साथ उचित आहार की योजना जरूरी होती है।

ग्लोमेरुलोनफ्राइटिस को रोकथाम

— गले में खराश या रुकावट पैदा करने वाले स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण का इलाज कराएं।

— मधुमेह और रक्तचाप को नियंत्रण में रखें

— सुरक्षित सेक्स करें और हेपेटाइटिस बी, सी और एचआईवी जैसे संक्रमण से बचने के लिए गैरकानूनी इंट्रावेनस दवाओं के इस्तेमाल से बचें जो ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस का कारण हो सकता है।

— सूजन, अपच और उच्च रक्तचाप के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें।

— मूत्र जांच की रिपोर्ट में प्रोटीन और आरबीसी / रक्त पाये जाने को कभी भी नजरअंदाज नहीं करें।

— यदि आपका डॉक्टर किडनी बायोप्सी की सलाह देता है, तो डरें मत। इस तरह की प्रक्रिया आपकी किडनी का इलाज करने में सहायक हो सकती है।

— व्यायाम, गुणवत्ता पूर्ण नींद और स्वस्थ कम प्रोटीन वाले आहार के सेवन के साथ-साथ स्वस्थ जीवन शैली अपनाने से क्रोनिक ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस के मामले में किडनी फेल्योर की वृद्धि को रोकने में मदद मिलेगी।

— ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस के सभी चरणों में नेफ्रोलोलॉजिस्ट से नियमित रूप से जांच कराना आवश्यक है।