कस्तूरी मृग

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कस्तूरी मृग
Musk deer
Moschustier.jpg
साइबेरियाई कस्तूरी मृग
Scientific classification
जातियाँ
खोपड़ी

कस्तूरी मृग (Musk deer) एशिया (विशेषकर हिमालय) में मिलने वाले सम-ऊँगली खुरदार प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है, जिसमें सात ज्ञात जातियाँ हैं। इस वंश का वैज्ञानिक नाम मोस्कस (Moschus) है, जो मोस्किडाए (Moschidae) नामक जीववैज्ञानिक कुल का एकमात्र वंश है (इस कुल के अन्य वंश सभी विलुप्त हो चुके हैं)। कस्तूरी मृग देखने में हिरण जैसे दिखते हैं और लोक-मान्यता में इन्हें हिरण ही समझा जाता है, लेकिन जीववैज्ञानिक दृष्टि से यह हिरणों के वंश (जो सर्विडाए‎ कहलाता है) का भाग नहीं हैं। कस्तूरी मृगों में असली हिरणों की भांति सींग नहीं होते और इनमें कस्तूरी ग्रंथी होती है, जो हिरणों में नहीं होती। कस्तुरी मृगों में मुँह के दो दाँत भी लम्बे और मुँह से बाहर उभरे हुए होते हैं।[१][२]

परिचय

कस्तूरीमृग नामक पशु अंग्युलेटा (Ungulata) कुल (शफि कुल, खुरवाले जंतुओं का कुल) की मॉस्कस मॉस्किफ़रस (Moschus Moschiferus) नामक प्रजाति का जुगाली करनेवाला शृंगरहित चौपाया है। प्राय: हिमालय पर्वत के २,४०० से ३,६०० मीटर तक की ऊँचाइयों पर तिब्बत, नेपाल, हिन्दचीन और साइबेरिया, कोरिया, कांसू इत्यादि के पहाड़ी स्थलों में पाया जाता है। शारीरिक परिमाण की दृष्टि से यह मृग अफ्रीका के डिक-डिक नामक मृग की तरह बहुत छोटा होता है। प्राय: इसका शरीर पिछले पुट्ठे तक ५०० से ७०० मिलीमीटर (२० से ३० इंच) ऊँचा और नाक से लेकर पिछले पुट्ठों तक ७५० से ९५० मिलीमीटर लंबा होता है। इसकी पूँछ लगभग बालविहीन, नाममात्र को ही (लगभग ४० मिलीमीटर की) रहती है। इस जाति की मृगियों की पूँछ पर घने बाल पाए जाते हैं। जुगाली करनेवाले चौड़ा दाँत (इनसिज़र, incisor) नहीं रहता। केवल चबाने में सहायक दाँत (चीभड़ और चौभड़ के पूर्ववाले दाँत) होते हैं। इन मृगों के ६० से ७५ मिलीमीटर लंबे दोनों सुवे दाँत (कैनाइन, canine) ऊपर से ठुड्ढ़ी के बाहर तक निकले रहते हैं। इसके अंगोपांग लंबे और पतले होते हैं। पिछली टाँगें अगली टाँगों से अधिक लंबी होती हैं। इसके खुरों और नखों की बनावट इतनी छोटी, नुकीली और विशेष ढंग की होती है कि बड़ी फुर्ती से भागते समय भी इसकी चारों टाँगें चट्टानों के छोटे-छोटे किनारों पर टिक सकती हैं। नीचे से इसके खुर पोले होते हैं। इसी से पहाड़ों पर गिरनेवाली रुई जैसे हल्के हिम में भी ये नहीं धँसते और कड़ी से कड़ी बर्फ पर भी नहीं फिसलते। इसकी एक-एक कुदान १५ से २० मीटर तक लंबी होती है। इसके कान लंबे और गोलाकार होते हैं तथा इसकी श्रवणशक्ति बहुत तीक्ष्ण हाती है। इसके शरीर का रंग विविध प्रकार से बदलता रहता है। पेट और कमर के निचले भाग लगभग सफेद ही होते हैं और बाकी शरीर कत्थई भूरे रंग का होता है। कभी-कभी शरीर का ऊपरी सुनहरी झलक लिए ललछौंह, हल्का पीला या नारंगी रंग का भी पाया जाता है। बहुधा इन मृगों की कमर और पीठ पर रंगीन धब्बे रहते हैं। अल्पवयस्कों में धब्बे अधिक पाए जाते हैं। इनके शरीर पर खूब घने बाल रहते हैं। बालों का निचला आधा भाग सफेद होता है। बाल सीधे और कठोर होते हुए भी स्पर्श करने में बहुत मुलायम होते हैं। बालों की लंबाई ७६ मिलीमीटर की लगभग होती है।

कस्तूरीमृग पहाड़ी जंगलों की चट्टानों के दर्रों और खोहों में रहता है। साधारणतया यह अपने निवासस्थान को कड़े शीतकाल में भी नहीं छोड़ता। चरने के लिए यह मृग दूर से दूर जाकर भी अंत में अपनी रहने की गुहा में लौट आता है। आराम से लेटने के लिए यह मिट्टी में एक गड्ढा सा बना लेता है। घास पात, फूल पत्ती और जड़ी बूटियाँ ही इसका मुख्य आहार हैं। ये ऋतुकाल के अतिरिक्त कभी भी इकट्ठे नहीं पाए जाते और इन्हें एकांतसेवी पशु ही समझना चाहिए। कस्तूरीमृग के आर्थिक महत्व का कारण उसके शरीर पर सटा कस्तूरी का नाफा ही उसके लिए मृत्यु का दूत बन जाता है।

विशिष्टताएँ

कस्तूरी मृग एक छोटे मृग के समान नाटी बनावट का होता है और इनके पिछले पैर आगे के पैरों से अधिक लंबे होते हैं। इनकी लम्बाई ८०-१०० से०मी० तक होती है, कन्धे पर ५०-७० से०मी० और भार ७ से १७ किलो तक होता है। कस्तूरी मृग के पैर कठिन भूभाग में चढ़ाई के लिए अनुकूल होते हैं।

इनका दन्त सूत्र सामान्य मृग के समान ही होता है : <math alt="Upper: 0.1.3.3, lower: 3.1.3.3">\tfrac{ 0.1.3.3}{ 3.1.3.3} </math>

उत्तराखंड राज्य में पाए जाने वाले कस्तूरी मृग प्रकृति के सुंदरतम जीवों में से एक हैं। यह 2-5 हजार मीटर उंचे हिम शिखरों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मॉस्कस क्राइसोगास्ट है। यह "हिमालयन मस्क डिअर" के नाम से भी जाना जाता है। कस्तूरी मृग अपनी सुन्दरता के लिए नहीं अपितु अपनी नाभि में पाए जाने वाली कस्तूरी के लिए अधिक प्रसिद्ध है। कस्तूरी केवल नर मृग में पायी जाती है जो इस के उदर के निचले भाग में जननांग के समीप एक ग्रंथि से स्रावित होती है। यह उदरीय भाग के नीचे एक थेलीनुमा स्थान पर इकट्ठा होती है। कस्तूरी मृग छोटा और शर्मीला जानवर होता है। इस का वजन लगभग १३ किलो तक होता है। इस का रंग भूरा और उस पर काले-पीले धब्बे होते हैं। एक मृग में लगभग ३० से ४५ ग्राम तक कस्तूरी पाई जाती है। नर की बिना बालों वाली पूंछ होती है। इसके सींग नहीं होते। पीछे के पैर आगे के पैर से लम्बे होते हैं। इस के जबड़े में दो दांत पीछे की और झुके होते हैं। इन दांतों का उपयोग यह अपनी सुरक्षा और जड़ी-बूटी को खोदने में करता है।

कस्तूरी मृग की घ्राण शक्ति बड़ी तेज होती है। कस्तूरी का उपयोग औषधि के रूप में दमा, मिर्गी, निमोनिया आदि की दवाऍं बनाने में होता है। कस्तूरी से बनने वाला इत्र अपनी खुशबू के लिए प्रसिद्ध है। कस्तूरी मृग तेज गति से दौड़ने वाला जानवर है, लेकिन दौड़ते समय ४०-५० मीटर आगे जाकर पीछे मुड़कर देखने की आदत ही इस के लिये काल बन जाती है। कस्तूरी मृग को संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल किया गया है।

कस्तूरा अभयारण्य

एक विलुप्त मोस्किडाए जाति की पुनर्रचना

पिथौरागढ़ ज़िले में चोपता के पंचकेदारों में से एक तुंगनाथ महादेव के आस-पास अस्कोट कस्तूरी मृग अभयारण्य स्थित है। तुंगनाथ महादेव मंदिर के मार्ग में ही इस अभयारण्य का कस्तूरी मृग प्रजनन केन्द्र भी स्थित है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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  2. साँचा:cite web