करसनदास मानेक
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करसनदास नरसिंह मानेक | |
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जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
उपनाम | वैशम्पायन |
व्यवसाय | आचार्य, संपादक |
भाषा | गुजराती |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा | स्नातक |
उच्च शिक्षा | डी॰ जे॰ विश्वविद्यालय, कराची |
विधा | काव्य, नवलिका, निबंध |
उल्लेखनीय कार्यs | 'खाख ना पोयणा' (खण्ड काव्य), 'आलबेल', 'महोबतना मांडवे', 'वैशम्पायननी वाणी', 'मेघधनुष्य', 'अहो रायजी सुनिए', 'कल्याणयात्री', 'मध्याह्न', 'राम तारो दिवड़ों' |
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करसनदास मानेक (२८ नवम्बर १९०१ - १८ जनवरी १९७८) गुजराती भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार एवं कवि थे।[१] उनका जन्म तत्कालीन भारत के कराची शहर (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। गुजराती साहित्य में नवलिका, निबंध आदि क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है।