औषधि बगीचा, मुनि की रेती
![]() | This article has multiple issues. Please help improve it or discuss these issues on the talk page. (Learn how and when to remove these template messages)
|
ऋषिकेश-गंगोत्री रोड पर ओंकारानंद आश्रम तथा भद्रकाली मंदिर की और चले तो डॉ सुशीला तिवारी औषधि बगीचा मिलेगा जहां वनौषधि तथा सुगंधित जड़ी-बुटियों की भरमार है। इसकी स्थापना वर्ष 2003 में उत्तराखंड के भूतपूर्व मुख्यमंत्री डॉ एन डी तिवारी के आदेशानुसार हुआ तथा यह 4.23 हेक्टेअर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह सरकार के वन विभाग द्वारा संचालित है।
जैसे ही इस गार्डेन में घुसते हैं, नींबू घास हमारे इन्द्रियों को खुशबु से सुगंधित कर देती है। बगीचे के केन्द्र में बांस के गजीबो में वन विभाग द्वारा संचालित महिलाओं की स्वयं सहायता समुह लेमन घास के गुदे से अगरबत्ती बनाती हैं। वहां के प्रधान अधिकारी (इंचार्ज) श्री ओ. पी. सिंह वहां पर लगी विभिन्न प्रजातियों की दुर्लभ जड़ी-बुटियों एवं पौधे के बारे में बताते हैं। उदाहरण के लिए अगर स्तीविया रौरिदिना को लें तो इसकी पत्तियां तीक्ष्ण है और इसमें कोई आश्चर्च की बात नहीं। यह चीनी से 300 गुणा ज्यादा मीठा होता है जिसका प्रयोग मधुमेह रोगियों के लिए मिठास तथा दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है। अलो वेरा के औषधीय गुण से हम सभी परिचित हैं और इनके कई प्रजातियों के पौधे यहां हैं। अगर इसके गुदे को कच्चा खाया जाय तो यह लीवर के लिए उपयोगी है। उसके बाद थूनेर टेक्सासबकाला की बात करें तो यह ऊंचाई के स्थान पर पाया जाने वाला है जिसे प्रयोग के तौर पर यहां लाया गया है। इसके एक ग्राम तेल का मूल्य 1.20 लाख रुपये हैं जिसके प्रयोग कैंसर के उपचार के लिए किया जाता है।
यहां 160 से अधिक प्रजातियों के पौधे तथा जड़ी-बुटियों है। इस गार्डेन के मुख्य ग्राहक किसान तथा औषधि बनाने वाली कम्पनियां हैं जो भारतीय वन अधिकारियों, वन के रखवालों तथा वन के सुरक्षा कर्मियों को प्रशिक्षण भी देते हैं।
यहां ये पौधे तथा महिलाओं के बनाये अगरबत्तियां खरीद सकते हैं।