ऑस्कर वाइल्ड
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ऑस्कर वाइल्ड उस शख्स का नाम है, जिसने सारी दुनिया में अपने लेखन से हलचल मचा दी थी। शेक्सपीयर के उपरांत सर्वाधिक चर्चित ऑस्कर वाइल्ड सिर्फ उपन्यासकार, कवि और नाटककार ही नहीं थे, अपितु वे एक संवेदनशील मानव थे। उनके लेखन में जीवन की गहरी अनुभूतियाँ हैं, रिश्तों के रहस्य हैं, पवित्र सौन्दर्य की व्याख्या है, मानवीय धड़कनों की कहानी है।
उनके जीवन का मूल्यांकन एक व्यापक फैलाव से गुजरकर ही किया जा सकता है। अपने धूपछाँही जीवन में उथल-पुथल और संघर्ष को समेटे ‘ऑस्कर फिंगाल ओं फ्लाहर्टी विल्स वाइल्ड’ मात्र 46 वर्ष पूरे कर अनंत आकाश में विलीन हो गए।
ऑस्कर वाइल्ड 'कीरो' के समकालीन थे। एक बार भविष्यवक्ता कीरो किसी संभ्रांत महिला के यहांं भोज पर आमंत्रित थे। काफी संख्या में यहाँ प्रतिष्ठित लोग मौजूद थे। कीरो उपस्थित हों और भविष्य न पूछा जाए, भला यह कैसे संभव होता। एक दिलचस्प अंदाज में भविष्य दर्शन का कार्यक्रम आरंभ हुआ। एक लाल मखमली पर्दा लगाया गया। उसके पीछे से कई हाथ पेश किए गए। यह सब इसलिए ताकि कीरो को पता न चल सके कि कौन सा हाथ किसका है? दो सुस्पष्ट, सुंदर हाथ उनके सामने आए। उन हाथों को कीरो देखकर हैरान रह गए। दोनों में बड़ा अंतर था। जहाँ बाएँ हाथ की रेखाएँ कह रही थीं कि व्यक्ति असाधारण बुद्धि और अपार ख्याति का मालिक है। वहीं दायाँ हाथ..? कीरो ने कहा 'दायाँ हाथ ऐसे शख्स का है जो अपने को स्वयं देश निकाला देगा और किसी अनजान जगह एकाकी और मित्रविहीन मरेगा। कीरो ने यह भी कहा कि 41 से 42वें वर्ष के बीच यह निष्कासन होगा और उसके कुछ वर्षों बाद मृत्यु हो जाएगी। यह दोनों हाथ लंदन के सर्वाधिक चर्चित व्यक्ति ऑस्कर वाइल्ड के थे। संयोग की बात कि उसी रात एक महान नाटक 'ए वुमन ऑफ नो इम्पोर्टेंस' मंचित किया गया। उसके रचयिता भी और कोई नहीं ऑस्कर वाइल्ड ही थे।
बहरहाल, 15 अक्टूबर 1854 को ऑस्कर वाइल्ड जन्मे थे। कीरो की भविष्यवाणी पर दृष्टिपात करें तो 1895 में ऑस्कर वाइल्ड ने समाज के नैतिक नियमों का उल्लंघन कर दिया। फलस्वरूप समाज में उनकी अब तक अर्जित प्रतिष्ठा, मान-सम्मान और सारी उपलब्धियाँ ध्वस्त हो गईं। यहाँ तक कि उन्हें दो वर्ष का कठोर कारावास भी भुगतना पड़ा। जब ऑस्कर वाइल्ड ने अपने सौभाग्य के चमकते सितारे को डूबते हुए और अपनी कीर्ति पताका को झुकते हुए देखा तो उनके धैर्य ने जवाब दे दिया।
अब वे अपने उसी गौरव और प्रभुता के साथ समाज के बीच खड़े नहीं हो सकते थे। हताशा की हालत में उन्होंने स्वयं को देश निकाला दे दिया। वे पेरिस चले गए और अकेले गुमनामी की जिंदगी गुजारने लगे। कुछ वर्षों बाद 30 नवम्बर 1900 को पेरिस में ही उनकी मृत्यु हो गई। उस समय उनके पास कोई मित्र नहीं था। यदि कुछ था तो सिर्फ सघन अकेलापन और पिछले सम्मानित जीवन की स्मृतियों के बचे टुकड़े।
ऑस्कर वाइल्ड का पूरा नाम बहुत लंबा था, लेकिन वे सारी दुनिया में केवल ऑस्कर वाइल्ड के नाम से ही जाने गए। उनके पिता सर्जन थे और माँ कवयित्री। कविता के संस्कार उन्हें अपनी माँ से ही मिले। क्लासिक्स और कविता में उनकी विशेष गति थी।
19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में उन्होंने सौंदर्यवादी आंदोलन का नेतृत्व किया। इससे उनकी कीर्ति चारों ओर फैली। ऑस्कर वाइल्ड विलक्षण बुद्धि, विराट कल्पनाशीलता और प्रखर विचारों के स्वामी थे। परस्पर बातचीत से लेकर उद्भट वक्ता के रूप में भी उनका कोई जवाब नहीं था। उन्होंने कविता, उपन्यास और नाटक लिखे। अँग्रेजी साहित्य में शेक्सपीयर के बाद उन्हीं का नाम प्राथमिकता से लिया जाता है। 'द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे' उनका प्रथम और अंतिम उपन्यास था, जो 1890 में पहली बार प्रकाशित हुआ।
विश्व की कई भाषाओं में उनकी कृतियाँ अनुवादित हो चुकी हैं। 'द बैलेड ऑफ रीडिंग गोल' और 'डी प्रोफनडिस', उनकी सुप्रसिद्ध कृतियाँ हैं। लेडी विंडरम'र्स फेन और द इम्पोर्टेंस ऑफ बीइंग अर्नेस्ट जैसे नाटकों ने भी खासी लोकप्रियता अर्जित की। उनकी लिखी परिकथाएँ भी विशेष रूप से पसंद की गईं। उनके एक नाटक 'सलोमी' को प्रदर्शन के लिए इंग्लैंड में लाइसेंस नहीं मिला। बाद में उसे सारा बरनार्ड ने पेरिस में प्रदर्शित किया।
ऑस्कर वाइल्ड ने जीवन मूल्यों, पुस्तकों, कला इत्यादि के विषय में अनेक सारगर्भित रोचक टिप्पणियाँ की हैं। उन्होंने कहा- 'पुस्तकें नैतिक या अनैतिक नहीं होतीं। वे या तो अच्छी लिखी गई होती हैं या बुरी।' अपने अनंत अनुभवों के आधार पर एक जगह उन्होंने लिखा- 'विपदाएँ झेली जा सकती हैं, क्योंकि वे बाहर से आती हैं, किंतु अपनी गलतियों का दंड भोगना हाय, वही तो है जीवन का दंश। कला के विषय में उनके विचार थे- 'कला, जीवन को नहीं, बल्कि देखने वाले को व्यक्त करती है अर्थात तब किसी कलात्मक कृति पर लोग विभिन्ना मत प्रकट करते हैं तब ही कृति की पहचान निर्धारित होती है कि वास्तव में वह कैसी है, आकर्षक या उलझी हुई।'
ऑस्कर वाइल्ड ने अपने साहित्य में कहीं न कहीं अपनी पीड़ा, अवसाद और अपमान को ही अभिव्यक्त किया है। बावजूद इसके उनकी रचनाएँ एक विशेष प्रकार का कोमलपन लिए एक विशेष दिशा में चलती हैं। कई बड़े साहित्यकारों की तरह उन्होंने भी विषपान किया, नीलकंठ बने और खामोश रहे। विश्व साहित्य का यह तेजस्वी हस्ताक्षर आज भी पूरी दुनिया में स्नेह के साथ पढ़ा और सराहा जाता है।