ऋणात्मक दाब श्वासयंत्र

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इसके कार्य करने का सिद्धान्त अत्यन्त सरल है। 'लौह फुफ्फुस प्रकोष्ठ' (काला) ; रोगी का सिर प्रकोष्ठ से बाहर हवा में रखा जाता है और ऐसी व्यवस्था (sealing) रहती है कि जब प्रकोष्ठ में ऋणात्मक दाब (वायुमण्डल के दाब से कम दाब) निर्मित किया जाय तो वायु का प्रवेश नाक/मुख से ही हो, किसी अन्य स्थान से नहीं। नाक/मुख से जाने वाली यह वायु फेफड़ों में जब जाती है तो फेफड़े इस वायु से आक्सीजन ग्रहण कर लेते हैं। प्रकोष्ठ में पुनः धनात्मक दाब (वायुमण्डल के दाब से अधिक दाब) बनाने पर फेफड़ों की हवा नाक से होकर बाहर निकल जाती है। ऋनात्मक/धनात्मक दाब बनाने के लिए डायाफ्राम का प्रयोग किया जाता है।

ऋणात्मक दाब श्वासयंत्र, एक प्रकार का श्वासयंत्र है जो उन व्यक्तियों को सांस लेने में समर्थ बनाता है जो फेफड़ों की मांसपेशी नियंत्रण खोने से सांस लेने में असमर्थ या कमजोर होते हैं (जैसे पोलियो के कुछ रोगी)। इसे प्रायः लौह फुफ्फुस (आइरन लंग्स) के नाम से भी जानते हैं। अब ऋणातामक दाब श्वास्यंत्र का स्थान पूरी तरह से धनात्मक दाब श्वास यंत्र या बाइपासिक क्युरास स्वासयंत्र ने ले लिया है। किन्तु सन २०२०-२१ में आये कोरोना के कारण इस कम खर्चीले यंत्र का महत्व फिर देखने को आ रहा है।

प्रविधि और प्रयोग

मनुष्य भी अधिकांस प्राणियों की तरह नकारात्मक दबाव पद्धति से सांस लेता है। फेफड़ों की पेशियाँ अनवरत रूप से फैलती और सिकुड़ती रहती है। पेशियों के फैलने पर फेफड़ों का आकार बढ़ जाता है। इससे वहाँ बाहरी वातावरण की तुलना में हवा का दबाब कम रह जाता है। इससे वातावरण से वायु नाक की श्वास नली से होकर फेफड़ों में पहुँच जाती है। फिर मांसपेशियों के संकुचित होने पर उ्चच्च दाब निर्मित हो जाता है और वायु फेफड़ों से निःश्वास के रूप में बाहर चली जाती है। किसी कारण संकुचण और विस्तार करने वाली पेशियाँ यदि कमजोर पड़ जाएं, नियंत्रण में न रहें तो व्यक्ति के लिए सांस लेना मुश्किल या असंभव हो जाता है।

लौह फेफड़े का प्रयोग करने वाले व्यक्ति को इस्पात के बंद बेलन में नियंत्रित दाब में रखा जाता है। व्यक्ति का सिर तथा गरदन बाहर और शेष सारा शरीर वायुरुद्ध स्थिति में बेलन के भीतर रहता है। बेलन से संबद्ध पंप नियमित रूप से बेलन में हवा डालकर और निकालकर व्यक्ति के चारों ओर के और खास तौर पर फेफड़ों के पास छाती पर वायुदाब को बढ़ाता और घटाता रहता है। वायुदाब कम होने की स्थिति में बाहरी वातावरण की हवा स्वासनली के रास्ते फेफड़ों में प्रवेश कर जाती है बेलन के भीतर का दाब बढ़ने पर फेफड़ों की हवा बाहर निकल जाती है।

इतिहास

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

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