ऊष्मायन अवधि

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ऊष्मायन अवधि (Incubation period) किसी रोगजनक जीव, रसायन या विकिरण (रेडियेशन) से सम्पर्क होने और इस सम्पर्क के कारणवश रोग के प्रथम लक्षण व चिन्ह स्पष्ट होने के बीच की अवधि होती है। संक्रमण (इनफ़ेक्शन) की स्थिति में इस अवधि में रोगजनक जीव अपनी संख्या बढ़ाकर उस स्तर तक पहुँचता है कि रोगी के शरीर में रोग के लक्षण (मसलन ज्वर, दर्द, सूजन, उल्टी होना, इत्यादि) दिखने लगते हैं। उदाहरण के लिए डेंगू बुख़ार की ऊष्मायन अवधि 3 से 14 दिनों के बीच है, यानि मच्छर द्वारा काटे जाने पर शरीर में डेंगू वायरस के प्रवेश के पश्चात 3 से 14 दिनों तक रोगी को इस रोग के पनपने का पता नहीं चलता हालांकि डेंगू वायरस की संख्या बढ़ रही होती है। ऊष्मायन अवधि पूरी होने पर लक्षण दिखने लगते हैं।[१][२]

इस से मिलती-जुलती अवधारणा प्रसुप्ति अवधि (latency period) की है, जो रोगजनक जीव से सम्पर्क होने और रोगी के शरीर द्वारा संक्रमण फैलाने की क्षमता के आरम्भ होने के बीच की अवधि होती है। प्रसुप्ति अवधि का ऊष्मायन अवधि से कम होना खतरनाक माना जाता है क्योंकि इस स्थिति में स्वस्थ्य लगने वाले व्यक्ति के शरीर में फैल सकने वाला संक्रमण हो सकता है। सम्भव है कि व्यक्ति को स्वयं ही आभास न हो कि वह रोगी बनने वाला है। ऐसे रोग तेज़ी से फैल सकते हैं।[३]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite journal
  2. साँचा:cite journal
  3. "Introduction to Epidemiology," Ray Merrill, Jones & Bartlett Learning, 2010, ISBN 9780763766221