उर्मिला पवार
उर्मिला पवार एक भारतीय लेखिका और कार्यकर्ता हैं। वह भारत में दलित और नारीवादी आंदोलनों में अपने योगदान अथवा लेखों के लिए प्रसिद्ध हैं , जो सभी मराठी भाषा में लिखे गए हैं | उन्हें अक्सर टीकाकारों और मीडिया द्वारा सामाजिक भेदभाव और सवर्ण शोषण के आलोचक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। [१]
उर्मिला जी की लघु कहानियाँ जिनमें "कवच" और "ए चाइल्डहुड टेल" शामिल हैं, व्यापक रूप से पढ़ी जाती हैं और कई भारतीय विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं। दलित महिलाओं की भागीदारी पर मीनाक्षी मून के साथ उनका प्रलेखन, भारत में एक नारीवादी दृष्टिकोण से दलित इतिहास के निर्माण में एक प्रमुख योगदान के रूप में देखा जाता है ।
उर्मिला की आत्मकथा एडन (वीव), जो किसी दलित महिला द्वारा लिखी गयी इस तरह की रचनाओं में से पहली थी, जिसने उन्हें प्रशंसा और प्रशिद्धि दिलाई । इस पुस्तक को बाद में माया पंडित द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित किया गया और "द वीव ऑफ माई लाइफ: ए दलित वुमन'स मेमोयर्स " शीर्षक के तहत जारी कि गयी । वंदना सोनकर ने इसी पुस्तक के लिए प्रस्तावना पृष्ट को लिखा है।
व्यवसाय
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
उर्मिला पवार का जन्म 1945 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी (अब महाराष्ट्र राज्य) के कोंकण क्षेत्र में रत्नागिरी जिले के अदगाँव गाँव में हुआ था। [२] जब वह 12 वर्ष की थी, तब बीआर अंबेडकर द्वारा दलित समुदाय के लोगों से हिंदू धर्म त्यागने के आह्वान के बाद, वह और उनका परिवार अपने समुदाय के अन्य सदस्यों के साथ बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गया। [३]
उर्मिला जी को एक बच्चे के रूप में भी अपनी जातिगत पहचान के बारे में अच्छी तरह से पता था क्योंकि उन्होंने अपने स्कूल और अन्य स्थानों पर भेदभाव और अपमान का सामना बहुत बार किया था | वह स्कूल में घटित एक घटना के बारे में बात करती है, जहां उनके सहपाठियों ने उन्हें पॉट लंच के लिए आमंत्रित किया, लेकिन उन्हें स्पष्ट रूप से कोई भी भोजन लाने के लिए नहीं कहा। भोजन उपरांत, उन्होंने पाया कि उनके सहपाठियों ने उन्हें ज्यादा खाना खाने के लिए उपहास का विषय बना लिया है | वह एक ऐसी घटना भी सुनाती है जहाँ उनके अंग्रेजी शिक्षक ने उन्हें उनकी खराब अंग्रेजी के लिए अपमानित किया। उन्होंने ये भी वर्णन किया कि कैसे उनका समुदाय गाँव के केंद्र में रहता था, ना कि प्रेसीडेंसी में रहने वाले अन्य दलित समुदायों के विपरीत जिन्से आमतौर पर गांव के बाहरी परिसर में रहने की उम्मीद की जाती थी।[२] उनके पिता अछूत बच्चों के लिए बने स्कूल में शिक्षक थे। उन्होने यह भी नोट किया है कि उसके पिता ने न तो अंबेडकर द्वारा आयोजित महाद सत्याग्रह में भाग लिया था और न ही विनायक दामोदर सावरकर द्वारा आयोजित अंतर-भोजन की व्यवस्था थी, हालांकि उनकी बड़ी बहन, शांतीका, अक्सर वहाँ परोसे जाने वाले मीठे व्यंजनों के लालच में भाग लेने के लिए स्कूल जाने से चूक जाती थीं। [४]
पवार ने मराठी साहित्य में मास्टर ऑफ आर्ट्स किया हैं । वह महाराष्ट्र राज्य के लोक निर्माण विभाग के एक कर्मचारी के रूप में सेवानिवृत्त हुई है।साँचा:ifsubst
ऐदन ( द वीव ऑफ माई लाइफ: ए दलित वुमन 'स मेमोइर्स् )
ऐदन मराठी में लिखी गई उन्की आत्मकथा का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया, जिसका शीर्षक द वीव ऑफ माय लाइफ: ए दलित वुमन 'स मेमोइर्स् है । अंग्रेजी अनुवाद के लिए उनके प्रस्तावना में, वंदना सोनालकर लिखती हैं कि पुस्तक का शीर्षक द वीव पवार द्वारा नियोजित लेखन तकनीक का एक रूपक है, "उनके परिवार के विभिन्न सदस्यों, उनके पति के परिवार, उनके पड़ोसियों और सहपाठियों के जीवन, को एक कथा के रुप में एक साथ बुना गया है जो धीरे-धीरे दलितों के रोजमर्रा के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करता हैं, और उन कई तरीके को प्रकट करता है जिसमें जाति खुद को मुखर करती है और उन्हें प्रताड़ित करती है " [५]
पुरस्कार और प्रशंसा
पवार ने महाराष्ट्र साहित्य परिषद (महाराष्ट्र साहित्य सम्मेलन), द्वारा ऐदन के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रकाशित आत्मकथा के लिए लक्ष्मीबाई तिलक पुरस्कार जीता। [४] परन्तु पवार ने पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया। परिषद को लिखे अपने पत्र में, उन्होंने बताया कि देवी सरस्वती की प्रार्थना के साथ कार्यक्रम शुरू करने के इरादे ने एक ही धर्म के प्रतीकों और रूपकों को दिखाने का प्रयास किया है। उन्होंने सवाल किया कि मराठी साहित्य में इस तरह के विचार क प्रदर्शन क्यों होने चाहिए। [६]
पवार को साहित्य और सक्रियता के क्षेत्र में उनके काम के लिए 2004 में सम्बोधि प्रतिष्ठान द्वारा मातोश्री भीमाबाई अंबेडकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। [७]
संदर्भ
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- ↑ Rai, Nandini (December 2007). "Writing Caste/Writing Gender: Narrating Dalit Women's Testimonios, 2006". Social Change. 37 (4): 211–213. doi:10.1177/004908570703700413. ISSN 0049-0857.
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