इस्लाम में मानवाधिकारों की काहिरा घोषणा
5 अगस्त 1990 [१] को मिस्र के काहिरा में इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) के सदस्य देशों द्वारा इस्लाम में मानवाधिकार सम्बन्धी जो घोषणा की गयी थी उसे इस्लाम में मानवाधिकारों की काहिरा घोषणा ( CDHRI ) कहते हैं। यह घोषणा मानवाधिकारों के बारे में इस्लामी परिप्रेक्ष्य का सार प्रस्तुत करती है। इस घोषणा की विशेष बात यह है कि यह इस्लामी शरीयत को मानवाधिकार के एकमात्र स्रोत के रूप में स्वीकार करता है। यह घोषणा "मानव अधिकारों के क्षेत्र में OIC के सदस्य राज्यों के लिए सामान्य मार्गदर्शन" शीर्षक से की गयी है।
इस घोषणा को व्यापक रूप से 1948 में अपनाए गए संयुक्त राष्ट्र के 'मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा' (UDHR) के प्रति इस्लामिक प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है।
यह घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित सार्वभौम मानवाधिकारों में से कुछ अधिकारों की गारंटी देता है, लेकिन सभी अधिकारों की गारनी नहीं देता। इसके अलावा इन मानवाधिकारों को शरिया द्वारा निर्धारित अधिकारों तक सीमित रखा गया है। इसी लिए काहिरा मानवाधिकार घोषणा की बहुत आलोचना हुई और कहा गया कि यह घोषणा वस्तुतः तेल निर्यातक देशों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन पर परदा डालने के उद्देश्य से तैयार की गयी है। धर्म की स्वतंत्रता की गारन्टी न देने, मृत्युदण्ड को उचित ठहराने, गैर-मुसलमानों एवं महिलाओं के साथ भेदभाव करने के लिए भी इस घोषणा की आलोचना की गयी है।
आलोचना
काहिरा मानवाधिकार घोषणा की व्यापक रूप से आलोचना की गयी है और इसे सदस्य देशों के मानवाधिकार उल्लंघनों पर परदा डालने के लिए तैयार किया गया घोषणा कहा गया है।
घोषणा के अनुच्छेद 24 में कहा गया है: "इस घोषणा में निर्धारित सभी अधिकार और स्वतंत्रताएं इस्लामिक सीरिया के अधीन हैं।" अनुच्छेद 19 यह भी कहता है: "शरिया में दिए गए अपराध और दण्ड के अलावा कोई अपराध या दण्ड नहीं होगा।" [२]
धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी न होने के लिए भी काहिरा इस्लामी मानवाधिकार घोषणा की आलोचना की गई है। इसमें भी विशेष रूप से प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को बदलने के "मौलिक और गैर-अपमानजनक अधिकार" न देने की आलोचना हुई है। [२] अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी और नैतिक संघ (IHEU) , एसोसिएशन फॉर वर्ल्ड एजुकेशन (AWE) और एसोसिएशन ऑफ वर्ल्ड सिटीजन (AWC) द्वारा प्रस्तुत संयुक्त लिखित बयान में इस घोषणा पर कई चिंताएं व्यक्त की गयीं थीं। इसमें कहा गया था कि काहिरा इस्लामी मानवाधिकार घोषणा ने मानव अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित किया है। बयान में निष्कर्ष निकाला गया है कि "इस्लाम में मानव अधिकारों की काहिरा घोषणा स्पष्ट रूप से मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा तथा अंतर्राष्ट्रीय वाचाओं (Covenants) में निहित अधिकारों को सीमित करने का एक प्रयास है। इसे किसी भी तरह से सार्वभौम घोषणा के पूरक के रूप में नहीं देखा जा सकता है। " [३] सितंबर 2008 में, संयुक्त राष्ट्र के एक लेख में, सेंटर फॉर इंक्वायरी लिखती है कि काहिरा घोषणा "इस्लामिक शरिया कानून के आधार पर लगभग हर मानव अधिकार पर प्रतिबंध लगाकर व्यक्तियों की समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्म की स्वतंत्रता के महत्व को अनदेखा किया है। " [४]
इन्हें भी देखें
संदर्भ
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