आदिवासी
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सामान्यतः "आदिवासी" (Indigenous peoples) शब्द का प्रयोग किसी भौगोलिक क्षेत्र के उन निवासियों के लिए किया जाता है जिनका उस भौगोलिक क्षेत्र से ज्ञात इतिहास में सबसे पुराना सम्बन्ध रहा हो। परन्तु संसार के विभिन्न भूभागों में जहाँ अलग-अलग धाराओं में अलग-अलग क्षेत्रों से आकर लोग बसे हों उस विशिष्ट भाग के प्राचीनतम अथवा प्राचीन निवासियों के लिए भी इस शब्द का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, "इंडियन" अमरीका के आदिवासी कहे जाते हैं और प्राचीन साहित्य में दस्यु, निषाद आदि के रूप में जिन विभिन्न प्रजातियों समूहों का उल्लेख किया गया है उनके वंशज समसामयिक भारत में आदिवासी माने जाते हैं। आदिवासी के समानार्थी शब्दों में ऐबोरिजिनल, इंडिजिनस, देशज, मूल निवासी, जनजाति, गिरिजन, बर्बर आदि प्रचलित हैं। इनमें से हर एक शब्द के पीछे सामाजिक व राजनीतिक संदर्भ हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता राकेश देवडे़ बिरसावादी जयस बिरसा ब्रिगेड के अनुसार- "आदिवासी भारत भूमि का इंडिजिनियस एबोरिजन आदिवासी गणसमूह है जो अरावली विंध्याचल सतपुड़ा सह्याद्री पर्वत माला और चंबल बनास लूनी साबरमती माही नर्मदा ताप्ती गोदावरी नदियों की उत्पत्ति काल से भारत की मूल मिट्टी पानी आबोहवा में जन्मा उपजा मूलबीज मूल वंश है।"
संस्कृति
अधिकांश आदिवासी संस्कृति के प्राथमिक धरातल पर जीवनयापन करते हैं। वे सामन्यत: क्षेत्रीय समूहों में रहते हैं और उनकी संस्कृति अनेक दृष्टियों से स्वयंपूर्ण रहती है। इन संस्कृतियों में ऐतिहासिक जिज्ञासा का अभाव रहता है तथा ऊपर की थोड़ी ही पीढ़ियों का यथार्थ इतिहास क्रमश: किंवदंतियों और पौराणिक कथाओं में घुल मिल जाता है। सीमित परिधि तथा लघु जनसंख्या के कारण इन संस्कृतियों के रूप में स्थिरता रहती है, किसी एक काल में होनेवाले सांस्कृतिक परिवर्तन अपने प्रभाव एवं व्यापकता में अपेक्षाकृत सीमित होते हैं। परंपराकेंद्रित आदिवासी संस्कृतियाँ इसी कारण अपने अनेक पक्षों में रूढ़िवादी सी दीख पड़ती हैं। लेकिन भारत मे हिंदू धर्म की संस्कृति इनमें देखी जाती है और वो सनातन के वँशज कहलाते है। उत्तर और दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, एशिया तथा अनेक द्वीपों और द्वीपसमूहों में आज भी आदिवासी संस्कृतियों के अनेक रूप देखे जा सकते हैं।
भारत के आदिवासी
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भारत में अनुसूचित आदिवासी समूहों की संख्या 700 से अधिक है।भारत में 1871 से लेकर 1941 तक हुई जनगणनाओं में आदिवासियों को अन्य धमों से अलग धर्म में गिना गया है, जैसे Other religion-1871, ऐबरिजनल 1881, फारेस्ट ट्राइब-1891, एनिमिस्ट-1901, एनिमिस्ट-1911, प्रिमिटिव-1921, ट्राइबल रिलिजन -1931,"ट्राइब-1941" इत्यादि नामों से वर्णित किया गया है। हालांकि 1951 की जनगणना के बाद से आदिवासियों को हिन्दू धर्म मे गिनना शुरू कर दिया गया है।
भारत में आदिवासियों को हिंदू धर्म के दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है- अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित आदिम जनजाति। हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2 (2) के अनुसार अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं है। यदि ऐसा है, तो हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 9 के तहत फैमिली कोर्ट द्वारा जारी किया गया निर्देश अपीलकर्ता पर लागू नहीं होता है। " आदिवासी लोग हिन्दू धर्म का पालन करते हैं,और सारे त्यौहार मनाते है। इन पर मुसलमानों ने सदैव ज़ुल्म किये जब भारत मुसलमान और अंग्रेजों का गुलाम था। उनकी प्रथागत जनजातीय आस्था के अनुसार विवाह और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में सभी विशेषाधिकारों को बनाए रखने के लिए उनके जीवन का अपना तरीका भी है।
भारत की जनगणना 1951 के अनुसार आदिवासियों की संख्या 9,91,11,498 थी जो 2001 की जनगणना के अनुसार 12,43,26,240 हो गई। यह देश की जनसंख्या का 8.2 प्रतिशत है।
प्रजातीय दृष्टि से इन समूहों में नीग्रिटो, प्रोटो-आस्ट्रेलायड और मंगोलायड तत्व मुख्यत: पाए जाते हैं, यद्यपि कतिपय नृतत्ववेत्ताओं ने नीग्रिटो तत्व के संबंध में शंकाएँ उपस्थित की हैं। भाषाशास्त्र की दृष्टि से उन्हें आस्ट्रो-एशियाई, द्रविड़ और तिब्बती-चीनी-परिवारों की भाषाएँ बोलनेवाले समूहों में विभाजित किया जा सकता है। भौगोलिक दृष्टि से आदिवासी भारत का विभाजन चार प्रमुख क्षेत्रों में किया जा सकता है : उत्तरपूर्वीय क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, पश्चिमी क्षेत्र और दक्षिणी क्षेत्र।
आदिवासी निवास क्षेत्र
उत्तर पूर्वीय क्षेत्र के अंतर्गत हिमालय अंचल के अतिरिक्त तिस्ता उपत्यका और ब्रह्मपुत्र की यमुना-पद्या-शाखा के पूर्वी भाग का पहाड़ी प्रदेश आता है। इस भाग के आदिवासी समूहों में गुरूंग, लिंबू, लेपचा, आका, डाफला, अबोर, मिरी, मिशमी, सिंगपी, मिकिर, राम, कवारी, गारो, खासी, नाग, कुकी, लुशाई, चकमा आदि उल्लेखनीय हैं।
मध्यक्षेत्र का विस्तार उत्तर-प्रदेश के मिर्जापुर जिले के दक्षिणी ओर राजमहल पर्वतमाला के पश्चिमी भाग से लेकर दक्षिण की गोदावरी नदी तक है। संथाल, मुंडा, माहली,उरांव, हो, भूमिज, खड़िया, बिरहोर, जुआंग, खोंड, सवरा, गोंड, भील, बैगा, कोरकू, कमार आदि इस भाग के प्रमुख आदिवासी हैं।
पश्चिमी क्षेत्र में भील, मीणा, ठाकूर, कटकरी,टोकरे कोली,कोली महादेव,मन्नेवार,गोंड,कोलाम,हलबा,पावरा (महाराष्ट्र)आदि प्रमुख आदिवासी जनजातिया निवास करते हैं। मध्य पश्चिम राजस्थान से होकर दक्षिण में सह्याद्रि तक का पश्चिमी प्रदेश इस क्षेत्र में आता है। गोदावरी के दक्षिण से कन्याकुमारी तक दक्षिणी क्षेत्र का विस्तार है। इस भाग में जो आदिवासी समूह रहते हैं उनमें चेंचू, कोंडा, रेड्डी, राजगोंड, कोया, कोलाम, कोटा, कुरूंबा, बडागा, टोडा, काडर, मलायन, मुशुवन, उराली, कनिक्कर आदि उल्लेखनीय हैं।
नृतत्ववेत्ताओं ने इन समूहों में से अनेक का विशद शारीरिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अध्ययन किया है। इस अध्ययन के आधार पर भौतिक संस्कृति तथा जीवनयापन के साधन सामाजिक संगठन, धर्म, बाह्य संस्कृति, प्रभाव आदि की दृष्टि से आदिवासी भारत के विभिन्न वर्गीकरण करने के अनेक वैज्ञानिक प्रयत्न किए गए हैं। इस परिचयात्मक रूपरेखा में इन सब प्रयत्नों का उल्लेख तक संभव नहीं है। आदिवासी संस्कृतियों की जटिल विभिन्नताओं का वर्णन करने के लिए भी यहाँ पर्याप्त स्थान नहीं है। राठवा,भिल,तडवी,गरासिया,वसावा,बावचा,चौधरी, दुंगरा भील,पटेलिया ये सब आदिवासी (गुजरात) में रहते है। ओर वे प्रकृति की पूजा करते है। गुजरात के सोनगढ़ व्यरा, बारडोली सूरत,राजपिपला, छोटा उदेपुर,दाहोद, डांग ये जिलों में आदिवासी पाए जाते है।
आदिवासी परंपरा
प्राचीनकाल में आदिवासियों ने भारतीय परंपरा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया था और उनके रीति रिवाज और विश्वास आज भी हिंदू समाज में देखे जा सकते हैं, तथापि यह निश्चित है कि वे बहुत पहले ही भारतीय समाज और संस्कृति के विकास की प्रमुख धारा में मिल गए थे। आदिवासी समूह हिंदू समाज के अनेक महत्वपूर्ण पक्षों में समान है,कुछ समूहों में कई महत्वपूर्ण अंतर भी हैं। समसामयिक आर्थिक शक्तियों तथा सामाजिक प्रभावों के कारण भारतीय समाज के इन विभिन्न अंगों की दूरी अब कम हो चुकि है।
आदिवासियों की सांस्कृतिक भिन्नता को बनाए रखने में कई प्रयत्नों का योग रहा है। मनोवैज्ञानिक धरातल पर उनमें से अनेक में प्रबल "जनजाति-भावना" (ट्राइबल फीलिंग) है। सामाजिक-सांस्कृतिक-धरातल पर उनकी संस्कृतियों के गठन में केंद्रीय महत्व है। असम के नागा आदिवासियों की नरमुंडप्राप्ति प्रथा बस्तर के मुरियों की घोटुल संस्था, टोडा समूह में बहुपतित्व आदि का उन समूहों की संस्कृति में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है। परंतु ये संस्थाएँ और प्रथाएँ भारतीय समाज की प्रमुख प्रवृत्तियों के अनुकूल नहीं हैं। आदिवासियों की संकलन-आखेटक-अर्थव्यवस्था तथा उससे कुछ अधिक विकसित अस्थिर और स्थिर कृषि की अर्थव्यवस्थाएँ अभी भी परंपरास्वीकृत प्रणाली द्वारा लाई जाती हैं। परंपरा का प्रभाव उनपर नए आर्थिक मूल्यों के प्रभाव की अपेक्षा अधिक है। धर्म के क्षेत्र में जीववाद, जीविवाद, पितृपूजा आदि हिंदू धर्म के और समीप लाते है।
आज के आदिवासी भारत में हिन्दू-संस्कृति-प्रभावों की दृष्टि से आदिवासियों के चार-धाम मुख्य धार्मिक स्थलों में से एक है।हिन्दू-संस्कृतियों का स्वीकरण इस मात्रा में कर लिया है कि अब वे केवल नाममात्र के लिए आदिवासी रह गए है।
आदिवासी प्रमुख व्यक्ति
- संत सुरमल दास भील - भीलो के धार्मिक गुरू
- मतंग ऋषि - आदिवासी गुरु
आदिवासी राजा
- एकलव्य - राजा हिरण्य धनु के पुत्र ,महान धनुर्धर एवं शिव भक्त, श्रृंगवेरपुर के राजा , निषाद भिल राजा ।
प्रमुख क्रांतिकारी
- बिरसा मुंडा - मुंडा विद्रोह के जननायक
- टंट्या भील - भारत के रोबिन्हुड
- झलकारी बाई
- सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू
- तिलका माँझी
- गंगा नारायण सिंह - भूमिज विद्रोह और चुआड विद्रोह के महानायक
- बुधू भगत
- तेलंगा खड़िया
- रानी शिरोमणि
गुजरात में आदिवासी बाबा पिथोरा देव को उनके भगवान मानते है।
आदिवासी विद्रोह
18 वीं शताब्दी
- 1766-72 - राजा जगन्नाथ सिंह के नेतृत्व में चुआर विद्रोह।
- 1770-1787 - चट्टग्राम पहाड़ी क्षेत्र में चकमा विद्रोह।
- 1771-1809 - जंगल महलों की भूमिज जनजातियों द्वारा चुआर विद्रोह।
- 1774-1779: ब्रिटिश सेनाओं और मराठों के खिलाफ बस्तर राज्य में हलबी जनजातियों द्वारा हलबा डोंगर।
- 1778: अंग्रेजों के खिलाफ छोटा नागपुर के पहाड़िया सरदारों का विद्रोह।
- 1784-1785: महाराष्ट्र में महादेव कोली जनजाति और संताल जनजाति के तिलका मांझी का विद्रोह।
- 1789: अंग्रेजों के खिलाफ छोटानागपुर के तामार का विद्रोह।
- 1794-1795: तामारों ने फिर से विद्रोह किया।
- 1798: छोटानागपुर में पंचेट एस्टेट की बिक्री के खिलाफ आदिवासियों का विद्रोह।
19 वीं शताब्दी
- 1812: वायनाडी में कुरिचियार और कुरुम्बर का विद्रोह।
- 1825: सिंगफो ने असम के सादिया में ब्रिटिश पत्रिका पर हमला किया और आग लगा दी।
- 1833: गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में बीरभूम में भूमिज विद्रोह।
- 1843: सिंगफो प्रमुख निरंग फिदु ने ब्रिटिश गैरीसन पर हमला किया और कई सैनिकों को मार डाला।
- 1849: कदमा सिंगफो ने असम में ब्रिटिश गांवों पर हमला किया और कब्जा कर लिया गया।
- 1850: प्रमुख बिसोई के नेतृत्व में खोंड जनजाति ने उड़ीसा की सहायक नदियों में विद्रोह किया।
- 1855: सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में राजमहल हिल्स में अंग्रेजों के खिलाफ संथाल समुदाय द्वारा संताल हुल।
- 1857: 1857 के व्यापक विद्रोह के हिस्से के रूप में छोटा नागपुर में चेरो और खारवार विद्रोह ।
- 1857-1858: भील ने 1857 के विद्रोह के हिस्से के रूप में भगोजी नाइक और काजर सिंह के नेतृत्व में विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमाला के बीच विद्रोह किया।
- 1859: एबरडीन की लड़ाई में अंडमानी।
- 1860: मिजो ने त्रिपुरा राज्य पर छापा मारा और 186 ब्रिटिश विषयों को मार डाला।
- 1860-1862: पूर्वी बंगाल और असम में जयंतिया पहाड़ियों में सिंटेंग विद्रोह।
- 1861: जुआंग समुदाय ने उड़ीसा में विद्रोह किया।
- 1862: कोया समुदाय ने गोदावरी जिले में मुत्तादेर्स के खिलाफ विद्रोह किया।
- 1869-1870: संथालों ने एक स्थानीय सम्राट के खिलाफ धनबाद में विद्रोह किया। विवाद सुलझाने के लिए अंग्रेजों ने की मध्यस्थता।
- 1879: नागा ने असम में विद्रोह किया।
- 1879: कोया ने तमंदोरा के नेतृत्व में विशाखापत्तनम हिल ट्रैक्ट एजेंसी के मलकानगिरी में विद्रोह किया।
- 1883: हिंद महासागर में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के प्रहरी आदिवासी लोगों ने अंग्रेजों पर हमला किया।
- 1889: मुंडा द्वारा छोटा नागपुर में अंग्रेजों के खिलाफ जन आंदोलन।
- 1891: एंग्लो-मणिपुरी युद्ध जहां अंग्रेजों ने मणिपुर राज्य पर विजय प्राप्त की।
- 1892: लुशाई लोगों ने बार-बार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
- 1899-1900: बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा आदिवासी समुदाय द्वारा विद्रोह।
20 वीं शताब्दी
- 1910: बस्तर के मध्य प्रांत के बस्तर राज्य में बस्तर विद्रोह।
- 1913-1914: बिहार में ताना भगत आंदोलन।
- 1913: अरावली रेंज की मानगढ़ पहाड़ियों में भीलों का विद्रोह।
- 1917-1919: मणिपुर में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ उनके सरदारों के नेतृत्व में कुकी विद्रोह जिसे हाओस कहा जाता है।
- 1920-1921: ताना भगत आंदोलन फिर हुआ।
- 1922: अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में कोया आदिवासी समुदाय ने गोदावरी एजेंसी में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
- 1932: मणिपुर में 14 वर्षीय रानी गैडिंल्यू के नेतृत्व में नागाओं ने विद्रोह किया।
- 1941: हैदराबाद राज्य के आदिलाबाद जिले में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सहयोग से गोंड और कोलम ने विद्रोह किया।
- 1942: जयपोर राज्य के कोरापुट में लक्ष्मण नाइक के नेतृत्व में आदिवासी विद्रोह।
- 1942-1945: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की जनजातियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सैनिकों द्वारा अपने द्वीपों पर कब्जे के खिलाफ विद्रोह किया।
आदिवासी अधिकार
आदिवासी योजनाएं
पर्यावरण आणि आदिवासी
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
संस्थाएँ
- UN Permanent Forum on Indigenous Issues (UN PFII)
- Working Group on Indigenous Populations/Communities in Africa, African Commission on Human and Peoples' Rights (ACHPR)
- UNEP Indigenous People's Website
- IFAD and indigenous peoples (International Fund for Agricultural Development, IFAD)
- Working Group on Indigenous Populations (WGIP)
- friends of Peoples close to Nature (fPcN)
- Survival International - Global movement for tribal peoples
- International Work Group for Indigenous Affairs (IWGIA)
- IPS Inter Press Service News on indigenous peoples from around the world
- Indigenous Peoples Center for Documentation, Research and Information (doCip)
- Australia Regrets For Its Aboriginal Natives
- Pyara Kerketta Foundation a community effort of tribal pepole of Jharkhand, Indaia आदिवासी भाषा, संस्कृति और पहचान के लिए कार्यरत संस्थान
आदिवासी अध्ययन
- WWW Virtual Library- Indigenous studies resources
- Center for World Indigenous Studies (CWIS)
- Indigenous Peoples of the Central African rainforest
- Indigenous Peoples Issues & Resources
- Janssen, D. F., Growing Up Sexually. Volume I. World Reference Atlas [full text]
पत्रिकाएँ
- Bemaadizing: An Interdisciplinary Journal of Indigenous Life (an online journal limited to Native Americans in North America).
- जोहार सहिया (आदिवासियों की लोकप्रिय मासिक पत्रिका नागपुरी-सादरी भाषा में)
- जोहार दिसुम खबर (12 आदिवासी भाषाओं में प्रकाशित भारत का एकमात्र पाक्षिक अखबार)
- Jharkhandi Bhasha Sahitya Sanskriti Akhra (11 आदिवासी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका)
- गोंडवाना समय