आणुविक अभिज्ञान

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पेप्टाइड् का कृस्टल (जीवाणु के कोशिका झिल्लियों में), जो प्रतिजैविक वैन्कोमैसिन से सटक जाता है हाइड्रोजन बाँड के बल से (नोक्स और प्रैट, Antimicrob. Agents. Chemother., 1990 1342-1347
कृस्टल पर अतिथि अणुकणिकाओं के सटक जाने से बनता है यह संकेतक (मूर और साथी,Chem. Commun., 1998, 1313-1314.)

आणुविक अभिज्ञान दो संपूरक अणुकणिकाओं के बीच के विशेष बन्धन को कहा जाता है, जो गैर सह-संयुज अंतःक्रियाओं से अणुकणिकाओं के एक दूसरे को पहचानने से होता है। इसमें से किसी एक को परिचारक और दूसरे को अतिथि कहा जा सकता है और इनके बीच बनता है परिचारक-अतिथि संश्लिष्ट[१][२] । अन्य शक्तियाँ जो आणुविक अभिज्ञान पर प्रभाव डालती हैं: हाइड्रोजन बाँड, धातु तालमेल, जल विरोधी बल, वॉन डर वॉल बल, pi-pi अंतःक्रिया और स्थिरविद्युतविशाल अणुकणिका रासायन शास्त्र में आणुविक अभिज्ञान के अनुप्रयोग पर अनुसंधान चल रहा।

जैविक प्रणालियां

आणुविक अभिज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण प्रकृति में जैविक प्रणालियों में देखने को मिलता है, जैसे कि अभिग्राहक-लिजैन्ड, प्रतिजन-प्रतिरक्षी, डी एन ए-प्रोटीन, शक्कर-लेक्टिन, आर एन ए-रैबोसोम, इत्यादि। आणुविक अभिज्ञान का बेहतरीन उदाहरण है प्रतिजैविक वैन्कोमैसिन, जिसका पेप्टाइड् जीवाणुओं के अंतक D-alanyl-D-alanine पर जुड जाता है और जीवाणु के कोशिका झिल्लियों को बनने नहीं देता।


स्थैतिक बनाम गतिक

दो तरह के आणुविक अभिज्ञान को देखा जा सकता है:

  • स्थैतिक आणुविक अभिज्ञान: इसकी उपमा है ताला-चाबी। एक परिचारक का सही मेल एक ही अतिथि से होता है, जो बनाता है परिचारक-अतिथि संश्लिष्ट
स्थैतिक और गतिक आणुविक अभिज्ञान के उदाहरण
  • गतिक आणुविक अभिज्ञान: यहाँ अतिथि परिचारक के एक बन्धन स्थल पर जुडता है, जिसके कारण अतिथि के दूसरे बन्धन स्थल पर प्रतिक्रिया की प्रवृति को बढा या घटा देता (जिसके आधार पर इसे धनात्मक या ऋणात्मक वयवस्था कहते हैं)।[३] गतिक आणुविक अभिज्ञान का अभिप्रयोग रासायनिक संकेतों और आणुविक यंत्रों को बनाने में किया जा रहा है।

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

  1. Lehn, J.M. (1995). विशाल अणुकणिका रासायन शास्त् - सिद्धांत और परिप्रेक्ष्य. न्यू योर्क: VHC.
  2. भूमिका: आणुविक अभिज्ञान सैम्युअल एच गेलमैन, Chem. Rev.; 1997; 97(5) pp 1231-1232. doi:10.1021/cr970328j
  3. धनात्मक वयवस्था में गतिक आणुविक अभिज्ञान से बना मचान सेईजी शिंकै,* मासातो इकेडा, आतसूशी सुगासाकी और मासायूकी ताकेउची Acc. Chem. Res., 2001, 34, 494 -503 doi:10.1021/ar000177y S0001-4842(00)00177-1