आईएनएस कुर्सुरा (एस20)

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संग्रहालय के रूप में कुर्सुरा पनडुब्बी

आईएनएस कुर्सुरा (एस20) भारतीय नौसेना की कल्वरी-स्तरीय डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी है। वह भारत की पाँचवीं पनडुब्बी थी। कुर्सुरा को 18 दिसंबर 1969 को भारतीय नौसेना में जोड़ा गया था और 31 साल की सेवा के बाद 27 फरवरी 2001 को इसे सेवामुक्त किया गया। इसने 1971 में भारत-पाकिस्तानी युद्ध में भाग लिया, जहां इसने गश्त देने वाले मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सेवामुक्ति के बाद, इसे विशाखापत्तनम में आरके बीच पर सार्वजनिक पहुँच के लिए एक संग्रहालय के रूप में संरक्षित किया गया है। ये चुनिंदा पनडुब्बी संग्रहालयों में से एक है जिसकी मौलिकता बनी रही है और इसे विशाखापत्तनम का अवश्य देखे जाने वाला पर्यटक स्थल माना जाता है।

विवरण

कुर्सुरा की लंबाई 91.3 मीटर (300 फीट) है। यह अधिकतम 985 फीट (300 मीटर) की गहराई तक जा सकती है। इसमें 75 लोग आ सकते हैं, जिसमें 8 अधिकारी और 67 नाविक शामिल हैं।[१] पनडुब्बी में तीन शाफ्ट हैं, जिनमें से प्रत्येक में छह ब्लेड वाला प्रोपेलर है। यह तीन कोलोम्ना 2D42M डीजल इंजन द्वारा संचालित है, प्रत्येक में 2,000 हॉर्सपॉवर (1,500 kW) है। इसके पास तीन इलेक्ट्रिक मोटर भी हैं, जिनमें से दो 1,350 हॉर्सपावर (1,010 kW) और एक 2,700 हॉर्सपावर (2,000 wW) के साथ हैं। यह सतह पर 16 नॉट (30 किमी / घंटा) की अधिकतम गति प्राप्त कर सकती है।

परिचालन इतिहास

कुर्सुरा को 18 दिसंबर 1969 को रीगा, सोवियत संघ में निर्मित किया गया था। इसने 20 फरवरी 1970 को भारत में अपनी पहली यात्रा शुरू की।[२]

भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, कुर्सुरा अरब सागर में संचालित हुआ। युद्ध शुरू होने से पहले उसे दो निर्दिष्ट क्षेत्रों में गश्त की ड्यूटी दी गई थी। लेकिन उसे दो प्रतिबंधों के तहत काम करने का आदेश दिया गया था: वह सीमांकित शिपिंग गलियारों को पार नहीं करेगी और वह सकारात्मक पहचान के बाद ही लक्ष्य पर हमला कर सकती थी। उसकी गश्त का उद्देश्य किसी भी पाकिस्तानी नौसैनिक युद्धपोतों को डुबोना था, विशेष रूप से आदेश दिए जाने पर व्यापारी नौवहन को रोकना और सामान्य गश्त करना और निगरानी का संचालन करना।[३]

संग्रहालय (2002 – वर्तमान)

सेवामुक्त करने के बाद, पनडुब्बी को विशाखापत्तनम के आरके बीच में ले जाया गया और इसे संग्रहालय के रूप में स्थापित किया गया।[४] यह दक्षिण एशिया में पहला पनडुब्बी संग्रहालय है। इसे संग्रहालय के रूप में स्थापित करने का विचार देने का श्रेय एडमिरल वी. पसरीचा को दिया जाता है। पनडुब्बी को संग्रहालय बनाने के स्थान पर लाने के लिये 600 मीटर अंदर लाया गया जिसमें 18 महीने लगे और 5.5 करोड़ लागत लगी। 9 अगस्त 2002 को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा इसका उद्घाटन किया गया था और यह 24 अगस्त 2002 को जनता के लिए खुला।[२][५] इसमें छह सेवानिवृत्त नौसैनिक कार्मिक गाइड के रूप में और एक अन्य क्यूरेटर के रूप में काम करते हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ