अपकृत्य

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विधि के क्षेत्र में, ऐसे दोषपूर्ण कार्य को अपकृत्य या अपकृति (Tort) कहते हैं जो संविदा के उलंघन से सम्बन्धित न हो और न ही आपराधिक हो (non-contractual, non-criminal)। अपकृति का प्रयोग कानून में किसी ऐसे अपकार अथवा क्षति के अर्थ में होता है जिसकी अपनी निश्चित विशेषताएँ होती हैं। मुख्य विशेषता यह है कि उसका प्रतिकार क्षतिपूर्ति के द्वारा संभव हो तथा कारावास भेजने की आवश्यकता न हो।

अपक्रुत्य् कि विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(१) अपक्र्त्य् किसी व्यक्ति के अधिकार का अतिक्रमण अथवा उसके प्रति किसी अन्य व्यक्ति के कर्तव्य का उल्लंघन हैं;

(२) इसका प्रतिकार व्यवहारवाद द्वारा हो सकता है;

(३) इंग्लैंड में सन्‌ १८९५ ई. के पूर्व अपक्र्त्य् का प्रतिकार सामान्य कानून के अंतर्गत हुआ करता था।

अपक्र्त्य् के अनेक रूप हैं। मूल शब्द "टार्ट' का सार्वजनिक रूप में अर्थ यही है कि सीधे एवं सरल मार्ग का अतिक्रमण। अपकृति के प्रमुख रूप ये हैं:

  • शारीरिक क्षति, जैसे आघात, आक्रमण या मिथ्या कारावास,
  • संपत्ति संबंधी अपकार, जैसे अनधिकार प्रवेश, सार्वजनिक बाधा, मानहानि, द्वेषपूर्ण अभियोजन, धोखा अथवा छल तथा विविध अधिकारों की क्षति।

इतिहास

अंग्रेजी विधि प्रणाली में "टार्ट' शब्द का प्रयोग नार्मन तथा रंगेविन सम्राटों के राज्यकाल में प्रारंभ हुआ। सन्‌ 1896 ई. के पूर्व प्राय: पाँच शताब्दियों तक अपकृति का प्रतिकाल सम्राट् के लेख पर निर्भर रहा। अपकृति संबंधी अंग्रेजी कानून अधिकांश में वादजनित विधि के रूप में मिलता है यद्यपि गत शताब्दी के प्रारंभ में कुछ अनुविधि भी बनाए गए। अतएव सारभूत विधि के रूप में अपकृति कानून का विकास आधुनिक काल में हुआ।

भारतवर्ष में अंग्रेजी विधिप्रणाली अपनाई जाने के बहुत पहले, सुदूर अतीत में, अपकृति संबंधी कानून के प्रमाण मिलते हैं। मनु, याज्ञवल्क्य, नारद, व्यास, बृहस्पति तथा कात्यायन की स्मृतियों में अपकृति संबंधी हिंदू विधिप्रणाली का आधार हमें मिलता है। हिंदू तथा अंग्रेजी अपकृत्य-विधि-प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि हिंदू प्रणाली में क्षतिपूर्ति द्वारा प्रतिकार केवल तभी संभव है जब आर्थिक क्षति हुई हो, न कि आग्रमण या मानहानि या परस्त्रीगमन के मामलों में। मुस्लिम विधिप्रणाली में अपकृति कानून का क्षेत्र और भी अधिक संकीर्ण हो गया। उसमें हिंसात्मक कार्यो में दंड दिया जाता था, केवल संपत्ति के बलाद्ग्रहण के मामलों में क्षतिपूर्ति के नियम थे।

अपक्र्त्य् तथा अपराध में अन्तर

अपकृत्य् तथा अपराध के सिद्धांत एवं प्रक्रिया दोनों में अंतर है। अपकृति क्षति या कर्तव्य का वह उल्लंघन है जिसका संबंध व्यक्ति से होता है और वह व्यक्ति अपकारों द्वारा क्षतिपूर्ति का अधिकारी होता है। परंतु अपराध लोककर्तव्य का उल्लंघन समझा जाता है और इसके लिए समाज अथवा राज्य अपराधी को दंड देता है। क्षति के कई दृष्टांत ऐसे हैं जो अपकृति तथा अपराध दोनों श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं; जैसे आक्रमण अपमानलेख या चोरी। कभी-कभी कोई क्षति केवल अपराध की श्रेणी में रखी जा सकती है; जैसे सार्वजनिक बाधा और इसके ठीक विपरीत कतिपय क्षतियाँ केवल अपकृति की श्रेणी में आती हैं; जैसे अनधिकार प्रवेश। अपकृति तथा अपराध संबंधी प्रक्रिया में यह अंतर है कि अपकृति के मामले का वाद व्यवहार न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है परंतु आपराधिक मामलों का अभियोग दंड न्यायालय में चलता है।

अपकृत्य् और संविदाभंग

अपकृति में वादी का अधिकार साधारण विधि के अंतर्गत प्राप्य अधिकार है परंतु संविदाभंग के मामले में पक्षों के अधिकार एवं कर्तव्य संविदा के उपबंधों के अनुसार ही होते हैं। संविदा में प्राय: क्षतिपूर्ति की राशि भी निश्चित हो जाती है और क्षतिपूर्ति सिद्धांत रूप में दंड न होकर केवल संविदा के उपबंध का पालन मात्र है।

सन्दर्भ

  • सामंड आन टार्ट्स, 12वाँ संस्करण;
  • एस. रामस्वामी अय्यर: दि लॉ ऑव टार्ट्‌स

बाहरी कड़ियाँ