अन्तोनी गौदी

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अन्तोनी गौदी
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1878 में गौदी
व्यक्तिगत जानकारी
नाम अन्तोनी गौदी
राष्ट्रीयता स्पेनी
जन्म तिथि 25 June 1852
जन्म स्थान रेउस, कातालोन्या, स्पेन[१]
मृत्यु तिथि 10 June 1926(1926-06-10) (उम्र साँचा:age)
मृत्यु स्थान बार्सिलोना, कातालोन्या, स्पेन
कार्य
उल्लेखनीय इमारतें सग्रादा फमिलिया, कासा मिला,
कासा बैतलो
उल्लेखनीय परियोजनाएं पार्क गुएल, कोलोनिया गुएल का गिरजाघर

अन्तोनी गौदी ई कौर्नेत (साँचा:lang-ca; 25 जून 1852 – 10 जून 1926) स्पेनी कातालोन्याई वास्तुकार थे। गौदी रेउस के निवासी थे व कला और साहित्य आंदोलन कैटलन मोड्र्निज़्मे के कल्पित सरदार थे। गौदी का कार्य जो कि मुख्य रूप से बार्सिलोना में संकेन्द्रित है उनकी अत्यधिक व्यक्तिगत और विशिष्ट शैली को दर्शाता है। इनका सबसे उत्कृष्ट कार्य सग्रादा फमिलिया नाम का रोमन कैथलिक गिरजाघर है जो कि अपनी अपूर्ण स्थिति में भी युनेस्को विश्व विरासत स्थल है।

गौदी का ज्यादातर कार्य उनके जीवन के तीन बड़े जुनून: वास्तुशास्त्र, प्रकृति और धर्म द्वारा चिह्नित किया गया। वे अपनी रचनाओं के हर विस्तार का अध्ययन करते थे, अपनी वास्तुकला में कारीगरी की उन श्रेणियों को एकीकृत करते थे जिन में वे कुशल थे: चीनी मिट्टी, दाग कांच, गढ़ा लौहकार्य फोर्जिंग और बढ़ईगीरी। इन्होने वास्तुकला सम्बन्धित माल के इस्तेमाल के लिए नई तकनीक विकसित की थीं, जिन में ट्रेनकादीस भी शामिल है जो बेकार चीनी मिट्टी के टुकड़े से बना मोज़ेक होता है।

कुछ वर्षो के पश्चात नव-गॉथिक कला और प्राच्य तकनीको के प्रभाव में गौदी मोड्र्निज़्मे आंदोलन के हिस्सा बन गए, जो कि उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के शुरुआत में अपने शिखर पर पहुँच रहा थी। इनके कार्य ने मुख्यधारा मोड्र्निज़्मे को अलग आयाम तक पहुँचाया जिस में प्रकृति से प्रेरित जैविक शैली सम्मीलित थी। गौदी शायद ही कभी अपने कार्य की विस्तृत योजना तैयार करते थे, इसके बजाय वे तीन-आयामी पैमाने का मॉडल का निर्माण करना पसंद करते थे जिसे अपनी अवधारणा के साथ-साथ ढालते रहते थे।

गौदी के कार्य को अन्तराष्ट्रीय अपील प्राप्त है तथा कई अध्ययन इनकी वास्तुकला को समझने के लिए समर्पित किए गए हैं। वर्तमान में इनके कार्य के वास्तुकारों और आम जनता के बीच समान रूप से प्रशंसक मिलते हैं। इनकी उत्कृष्ट कृति, अभी भी अपूर्ण सग्रादा फमिलिया, कातालोन्या के सबसे प्रसिद्ध और बड़े पर्यटकों के आकर्षण के केन्द्रों में से एक है। 1984 से 2005 के बीच यूनेस्को ने इनके सात कार्यो को विश्व विरासत स्थल घोषित किया। गौदी की रोमन कैथलिक आस्था जीवन के साथ-साथ और अधिक घनिष्ठ होती चली गई और धार्मिक चित्र इनके कार्य में व्याप्त हैं। इसके कारण इन्हें 'भगवान का वास्तुकार' का उपनाम मिला और इनके बीऐटफकेशन (धन्य-घोषणा) की मांग उठने लगी।

प्रारंभिक जीवन

गौदी का जन्म 25 जून 1852 को स्पेन के कातालोन्या प्रांत के ऋुडोम्स या रेउस नगर में एक समान्य परिवार में हुआ था। इनके पिता ताम्रकार थे। वास्तुकला में अपनी शुरूआती दिलचस्पी के पश्चात ये 1869/70 में बार्सिलोना पढ़ने चले गए, जो उस समय कातालोन्या का राजनीतिक और बौद्धिक केन्द्र होने के आलावा स्पेन का सबसे आधुनिक शहर था। इन्होंने कुछ समय सेना में भी व्यतीत किया जिसके कारण इनकी शिक्षा में भी विघ्न पड़ा।

व्यक्तिगत जीवन

गौदी ने अपने व्यवसाय के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन सम्रपित कर दिया था व जीवन भर कुंवारे रहे। इनके निजी जीवन के बारे में जितनी जानकारी है उसके अनुसार ये केवल मातारो कॉपरेटिव की होसेफ़ा मोरेउ नाम की एक अध्यापिका के प्रति आकर्षित हुए थे, परन्तु दूसरी तरफ़ से इन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। तत्पश्चात गौदी ने अपने कैथोलिक विश्वास द्वारा प्रदान की गई गहन आध्यात्मिक शांति में शरण ली। इनका व्यक्तित्व अक्सर एकांतप्रिय और अप्रिय दर्शाया गया है, एक कर्कश प्रतिक्रियाओं और अभिमानी भाव वाला व्यक्ति। हालांकि जो इनके करीब थे उन्होंने इनका वर्णन मिलनसार और विनम्र व्यक्ति के रूप में किया, जो बात करने में खुशनुमा और मित्रों के प्रति वफ़ादार था।

नॉर्डिक मुखाकृति, सुनहरे बाल और नीली आँखों वाला गौदी का व्यक्तिगत स्वरूप समय के साथ-साथ मौलिक रूप से बदलता गया। युवा अवस्था में ये अपने व्यवहार, वस्त्र और रूप के उपर विशेष ध्यान देते थे जिसमें ये महँगा सूट पहनते, अच्छी तरह से बाल और दाढ़ी तैयार करते, रुचिकर स्वाद वाला भोजन खाते, रंगमंच और ऑपेरा का लगातार दौरा करते तथा घोड़ा गाड़ी में अपने परियोजना स्थलों का दौरा करते थे। वृद्ध अवस्था में गौदी मितव्ययिता से खाया करते, पुराने और फटे हुए सूट पहनते और इस हद तक अपने स्वरूप की उपेक्षा करने लगे थे कि कई बार उन्हें दूसरे लोग भिखारी तक समझ बैठते थे, जैसा इनकी दुर्घटना के दौरान भी हुआ और शायद इनका रूप ही इनकी मृत्यु का कारण बना।

मृत्यु

7 जून 1926 को गौदी अपनी सेंट फेलिप नेरी गिरजाघर तक की दैनिक सैर पर थे, जहाँ वे नियमित रूप से प्रार्थना और स्वीकारोक्ति किया करते थे। रास्ते में इनकी एक चलती हुई ट्राम से टक्कर हो गई और ये बेहोश हो गए। पहचान दस्तावेजों के अभाव और दरिद्र वस्त्र पहने होने के कारण इन्हें रास्ते के मुसाफिरों ने सड़क का भिखारी समझा और कोई तत्काल सहायता इन्हें नहीं मिल पाई। अंततः एक पुलिसकर्मी ने इन्हें टैक्सी द्वारा सांटा क्रेयु अस्पताल पहुँचाया जहाँ इन्हें प्रारंभिक देखभाल मिली। अगले दिन जब सग्रादा फमिलिया के पादरी मोसेन गिल पारेस ने इनकी पहचान की तब तक इनकी हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि अतिरिक्त उपचार से भी लाभ मिलना असम्भव था। दुर्घटना के तीन दिन पश्चात 10 जून 1926 को 73 वर्ष की उम्र में इनकी मृत्यु हो गई और उसके दो दिन पश्चात इन्हें दफन कर दिया गया। सग्रादा फमिलिया के ऑवर लेडी ऑफ़ माउंट कार्मेल चैपल में बहुत बड़ी संख्या में लोग इनके अंतिम दर्शन करने के लिए उपस्थित थे।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ