अनामदास का पोथा

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अनामदास का पोथा  
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अनामदास का पोथा
लेखक आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
देश भारत
भाषा हिंदी
प्रकार प्रेमकथा
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन

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अनामदास का पोथा आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी[१] द्वारा लिखित एक उपन्यास है। इस उपन्यास में उपनिषदों की पृष्ठभूमि में चलती एक बहुत ही मासूम सी प्रेमकथा का वर्णन है। साथ ही साथ उपनिषदों की व्याख्या व समझने का प्रयास, मानव जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में विचारों के मानसिक द्वंद्व व उनके उत्तर ढूंढने का प्रयास इस उपन्यास की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ व कहना चाहिए कि उपलब्धियाँ भी है।

इस उपन्यास में परिलक्षित लेखक का उपनिषद-ज्ञान व मानवीय मनोभावों को समझने की क्षमता व उनको अपनी कलम से सजीव कर देने की क्षमता निश्चित ही प्रशंसनीय है।

प्रमुख पात्र

  • रैक्व
  • जाबाला
  • अरुंधति

पृष्ठभूमि

इस उपन्यास की पृष्ठभूमि छान्दोग्य उपनिषद में वर्णित कथा है जिसके अनुसार दो पक्षियों की वार्ता सुनकर राजा ने रैक्व नामक "पीठ खुजलाने वाले बैलगाड़ी वाले साधु" की महिमा जानी और उनकी शरण में जाकर ज्ञानयाचना की। साधु ने ज्ञान देने से मना कर दिया। तत्पश्चात् राजगुरुओं की सलाह से राजा पुनः वहां गए और भेंट के साथ अपनी पुत्री जाबाला को भी ले गए। जाबाला के सौंदर्य से प्रभावित हो रैक्व मान गए तथा उन्होंने राजा को ज्ञानवचन कहे जो कि छान्दोग्य उपनिषद में संकलित हैं।

लेखक प्रारंभ में यह कथा लिखते हुए अपनी आपत्ति जताते हैं कि इस कथा में कुछ अधूरा प्रतीत होता है

कथानक

रैक्व जंगल में निवास करने वाला एक ऋषिपुत्र है, जिसकी माता की मृत्यु उसके जन्म के समय ही हो गयी थी। वेदों का कुछ ज्ञान प्रदान कर बाल्यकाल में ही उसके पिता भी चल बसे। पिता प्रदत्त ज्ञान से उत्पन्न जिज्ञासा को स्वानुभव से स्पष्ट करने की चेष्टा में जंगल में भटकता हुआ यह बालक किशोरावस्था में पहुंचते पहुंचते तक आसपास के गांवों में संन्यासी बालक के रूप में जाना जाने लगता है।

एक दिन एक भयानक तूफान आता है, जिसे देख बालक वायु तत्व को सर्वशक्तिमान मानने लगता है। तूफान थमने पर वह जंगल निकलता है। अहोभाव से वायुशक्ति से हुए विनाश का अवलोकन करते हुए उसे एक दुर्घटनाग्रस्त बैलगाड़ी दिखती है, जिसके पास ही दो मानव शरीर पड़े हैं। एक की मृत्यु हो चुकी है। लेकिन दूसरा, यह जीवित तो है लेकिन बेहोश है। लेकिन यह क्या .... यह तो कोई विचित्र प्राणी है - इतने सुंदर लंबे मुलायम केश, इतनी सुंदर इतनी बड़ी मृग सरीखी आंखें, इतना सुंदर मुख? नहीं नहीं यह मानव नहीं हो सकता अवश्य ही यह कोई देवलोक का प्राणी है। इतने में घायल राजकुमारी को होश आ जाता है।

यहां से शुरु होती है बैलगाड़ी वाले ऋषिपुत्र की कथा, जिसकी पीठ में रह रह कर खुजली उठती है जो शांत ही नहीं होती, या यूं कहें कि कथा के अंत में ही शांत होती है।

सन्दर्भ