पाक अधिकृत लद्दाख
को अनुप्रेषित:
POTL (पाकिस्तान अधिकृत लद्दाख क्षेत्र)
पाक-प्रशासित लद्दाख मूल लद्दाख का वह भाग है, जिस पर पाकिस्तान ने १९४७ में हमला कर अधिकार कर लिया था। यह भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र है। इसकी सीमाएं पाकिस्तानी पंजाब एवं उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत से पश्चिम में, उत्तर पश्चिम में अफ़गानिस्तान के वाखान गलियारे से, चीन के ज़िन्जियांग उयघूर स्वायत्त क्षेत्र से उत्तर और भारतीय कश्मीर से पूर्व में लगती हैं। इस क्षेत्र के पूर्व लद्दाख राज्य के कुछ भाग, ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट को पाकिस्तान द्वारा चीन को दे दिया गया था व शेष क्षेत्र को दो भागों में विलय किया गया था: उत्तरी क्षेत्र एवं पाक अधिकृत कश्मीर। इस विषय पर पाकिस्तान और भारत के बीच १९४७ में युद्ध भी हुआ था। भारत द्वारा इस क्षेत्र को पाक अधिकृत लद्दाख (पी.ओ.एल) कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र सहित अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं एम.एस.एफ़, एवं रेड क्रॉस द्वारा इस क्षेत्र को पाक-प्रशासित लद्दाख ही कहा जाता है।}}
भारत एवं पाक की स्थितियां
भारतीय स्थिति
महाराजा हरि सिंह, पूर्व कश्मीर राज्य के महाराजा भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबैटन के भारत में विलय के प्रस्ताव को मान गए थे।[5][6] इस सहायता के बदले में भारत ने सहायता देने का आश्वासन दिया था। इस विलय के उपरांत भारत को तत्कालीन कश्मीर राज्य के वर्तमान भाग पर अधिकार मिला। ये अधिकृत क्षेत्र वर्तमान नियंत्रण रेखा के पूर्वी ओर कबायली आक्रमणकारियों को हराकर मिला था। भारत का दावा है कि महाराजा हरि सिंह से हुई संधि के परिणामस्वरूप पूरे कश्मीर राज्य पर भारत का अधिकार बनता है। इस कारण भारत का दावा दोनों (पाक अधिकृत लद्दाख एवं पाक अधिकृत जम्मू सहित) पर सही है। पाकिस्तान का इस बारे में भिन्न दृष्टिकोण है।
पाकिस्तानी स्थिति
पाकिस्तान के दावे के अनुसार तत्काळीन जम्मू एवं कश्मीर राज्य भारत के उन पांच उत्तरी राज्यों में से एक था, जिनमें से मुस्लिम बहुमत के आधार पर पाकिस्तान की स्थापना होनी थी। किन्तु भारत का इस बारे में भिन्न दृष्टिकोण है।
इतिहास
मुख्य लेख: कश्मीर का इतिहास
गिल्गित बाल्टिस्तान में काराकोरम राजमार्ग पर २०,००० से अधिक पाषाण-कला एवं पेट्रोग्लिफ के नमूने हैं। इनमें से अधिकांश नमूने हुन्ज़ा एवं शातियाल के बीच दस प्रमुख स्थलों में स्थित हैं। ये नमूने इस मार्ग से निकलने वाले आक्रमणकारियों, व्यापारियों एवं तीर्थयात्रियों एवं स्थानीय निवासियों द्वारा तराशे गये थे। इसके प्राचीनतम ज्ञात काल लगभग ५००० से १००० वर्ष ई.पू. के हैं। इनमें साधारण पशुओं, मानवों की तिकोने आकार की आकृतियां हैं। इनमें आखेट के दृश्य हैं, जहां पशुऒं का आकार मनुष्यों से बहुत बड़ा दिखाया गया है। इन नक्काशियों को पाषाण-उपकरणों द्वारा तराश कर एक मोटी पैटिना की पर्त से ढंक दिया गया था, जिससे इनकी आयु का ज्ञान होता है। पुरातत्त्ववेत्ता कार्ल जेटमार ने इस क्षेत्र के इतिहास की जानकारी पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्रों से कई शिलालेखों से एकत्रित कर अपनी पुस्तक रॉक कार्विंग्स एण्ड इन्स्क्रिप्शन्स इन द नॉर्दर्न एरियाज़ ऑफ पाकिस्तान[7] में एवं बाद में छपी पुस्तक बिटवीन गांधार एण्ड द सिल्क रोड्स - रॉक कार्विंग्स अलॉन्ग द काराकोरम हाइवे[8] में लिखे हैं।
प्रशासित प्रभाग
१९४७ से १९७०
पाक-अधिकृत लद्दाख का पूर्ण क्षेत्र स्वतंत्रता पूर्व ही प्रशासित होता रहा। इसके अतिरिक्त हुन्ज़ा-गिलगित के एक भाग, रक्सम एवं बाल्टिस्तान की शक्स्गम घाटी क्षेत्र को, पाकिस्तान द्वारा १९६३ में चीन को सौंप दिया गया था। इस के बारे में जम्मू और लद्दाख विवाद लंबित ही रहा। इस क्षेत्र को सीडेड एरिया या ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट कहते हैं।
१९७० उपरांत
उत्तरी क्षेत्र। गिल्गित क्षेत्र महाराजा द्वारा ब्रिटिश सरकार को पट्टे पर दिया गया था। बाल्टिस्तान लद्दाख प्रांत के पश्चिम का क्षेत्र था, जिस पर पाकिस्तान ने १९४८ में अधिकार कर लिया था।
अक्साई चिन
अक्साई चिन नामक क्षेत्र जो पूर्व लद्दाख राज्य का भाग था, पाक अधिकृत लद्दाख में नहीं आता है। ये १९६२ से चीनी नियंत्रण में है। जम्मू एवं लद्दाख को अक्साई चिन क्षेत्र से अलग करने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा कहलाती है।
इन्हें भी देखे
चीन अधिकृत लद्दाख क्षेत्र(LAC)