हर्षचरितम्

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(Harshcharitra से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

हर्षचरित संस्कृत में बाणभट्ट द्वारा रचित एक ग्रन्थ है। इसमें भारतीय सम्राट हर्षवर्धन का जीवनचरित वर्णित है। ऐतिहासिक कथानक से सम्बन्धित यह संस्कृत का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।

परिचय

इस समय उपलब्ध हर्षचरित आठ उच्छ्वासों में विभाजित है। जिसमें से पहले ढाई उच्छ्वास बाण की आत्मकथा रूप में हैं। तदुपरान्त स्थाणीश्वर (आधुनिक थानेश्वर) के पुष्यभूति वंश, जिनमें हर्ष के पिता प्रभाकरवर्धन का जन्म हुआ था, का वर्णन है। बाण ने प्रभाकरवर्धन की पुत्री राज्यश्री और कन्नौजाधिपति ग्रहवर्मा मौखरि के विवाह का वर्णन किया है। अपने ज्येष्ठ पुत्र राजवर्धन को हूणों का हनन करने के लिए भेजकर प्रभाकरवर्धन ज्वरग्रस्त हो गए। बाण ने उसके रोग, मृत्यु, दाह-संस्कार एवं साम्रज्ञी यशोमती के आत्मदाह का वर्णन किया है। उसके बाद गौड़ एवं मालव सेनाओं के कन्नौज पर आक्रमण तथा ग्रहवर्मा की हत्या की सूचना मिलती है यह सुनकर राज्यवर्धन कन्नौज की ओर बढ़े। शत्रुओं ने हथियार डाल दिए। परन्तु चालाकी खेली। राज्यवर्धन को शत्रु शिविर में आमंत्रित किया गया और उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। हर्ष ने अपने बहनोई एवं भाई की हत्या का बदला लेने की प्रतिज्ञा की तथा कन्नौज की ओर प्रस्थान किया। हर्ष की बढ़ती हुई सेना के सामने शत्रु भाग निकला। यह सुनकर हर्ष के विस्मय का अन्त न था कि राज्यश्री कैद से छूटकर विंध्याचल की ओर चली गई। बहुत परिश्रमयुक्त खोज के पश्चात् हर्ष ने आत्मदाह करने को तत्पर राज्यश्री को दिवाकर मित्र ऋषि के आश्रम के पास पाया और गंगा के तट पर अपने शिविर में ले आया। यहाँ ग्रंथ अकस्मात् समाप्त हो जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि बाण का विचार हर्ष के चरित्र को पूर्णरूपेण लिखने का नहीं था। वह इसका केवल मात्र एक अंश लिखना चाहते थे क्योंकि उन्होंने अपने श्रोताओं को बतलाया है ‘हर्ष के जीवन का वर्णन’ सैकड़ों जीवनों में भी नहीं किया जा सकता। यदि आप उसका एक अंश सुनना चाहते हो तो मैं तैयार हूँ। यह भी ठीक ही कहा जाता है कि ‘हर्षचरित’ हर्ष के जीवन की केवल एक घटना मात्र है क्योंकि हर्ष चरित से उपलब्ध ऐतिहासिक ज्ञान बहुत ही कम है। परन्तु इस ग्रंथ की समालोचना करते हुए हमें इसे ऐतिहासिक रचना के रूप में नहीं देखना चाहिए। वस्तुतः उसे ऐतिहासिक कथानक से युक्त एक काव्य कहना ही अधिक युक्तिसंगत है। लेखक की पूर्ण शक्ति काव्य-प्रतिभा का प्रदर्शन करने पर ही केन्द्रित है और ऐतिहासिकता उनके लिए गौण है। उन्होंने कृति के प्रतिनायक भूत गौड़ एवं मालव राजाओं का नाम भी नहीं दिया है। भूमि को गौड़ों से शून्य करने के हर्ष के निश्चय होने पर भी, बाण ने गौड़ों की भावी घटनाओं को छोड़ दिया है। जहां पाठक विंध्यपर्वत में से हर्ष की गवेषणा के परिणाम को सुनने को उत्कण्ठित हैं वहां बाण विन्ध्यपर्वत का सूक्ष्म वर्णन करने में संलग्न हैं।

अस्तु, बाण ने हर्ष की प्रस्थान करती हुई सेना का, राज्यसभा का, धार्मिक सम्प्रदायों का, ग्रामों का सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है जो कि इतिहास की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ