1934 नेपाल बिहार भुकम्प
परिमाण | 8.0 ṃ[१] |
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गहराई | साँचा:convert[१] |
अधिकेन्द्र स्थान | साँचा:coord[१] |
प्रभावित देश या इलाके | India, Nepal |
अधि. तीव्रता | XI (Extreme) |
हताहत | 10,700–12,000 |
'1934 नेपाल-बिहार भूकंप या 1934 बिहार-नेपाल भूकंप नेपाल और बिहार, भारत के इतिहास में सबसे खराब भूकंप में से एक था। यह 8.0 परिमाण के भूकंप ०२:१३ के आसपास १५ जनवरी को आया था। इस भूकंप के कारण बहुत तबाही मची थी।
हमारे बाबा स्वर्गीय श्री रघुनाथ त्रिपाठी जी बताते थे कि भूकंप के समय हम पशुओं को खिलाने वाले नाद के पास खड़े थे सुमेश्वर नाद में पानी भर चुका था भूकंप के बाद नाद से पानी बाहर आ गया था। गड्ढों मे भरा पानी भी बाहर आ गया था जमीन जगह-जगह फट गई थी।उसके बाद भीसड़ अकाल और बहुत ही महामारियो का प्रकोप हुआ था ।जमीन 6 से 12 फुट लहर मार रही थी तथा जमीन बड़े पैमाने पर धस गयी थी। आधे से 27 फिट चौड़ाई और 50 फिट गहराई में जगह जगह दरारें पड़ गई थी।नदियो के पाट सिकुड़ कर मिट्टी नदी के बीच में आ गया था। पीने का पानी गायब हो गया था। ध्वत घरों में बर्तन और खाने का सामान दब गया था भूकंप के बाद चारो तरफ तबाही का मंजर था। उन्होँने कहा था कि उनके पिता जी ने उन्हें बताया था कि 70बर्ष पहले भी भयानक भूकंप आया था। जिसमें बहुत कम लोग बचे थे।उस समय वे लोग बुढियाबारी नामक ग्राम में रहते थे।
परिणाम
महात्मा गांधी ने बिहार राज्य का दौरा किया था। उन्होंने लिखा है कि बिहार भूकंप अस्पृश्यता उन्मूलन में भारत की विफलता के लिए संभावित प्रतिशोध था।[२] रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने बयान में तर्कहीनता पर अपराध किया और गांधी पर अंधविश्वास का आरोप लगाया, भले ही वे छुआछूत के मुद्दे पर गांधी के साथ पूरी तरह से सहमत थे।[३][४] बिहार में, श्री बाबू (श्री कृष्ण सिन्हा) और अन्य महान नेता अनुग्रह बाबू (अनुग्रह नारायण सिन्हा) ने राहत कार्य में खुद को झोंक दिया।[५]