होलिका दहन

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होलिका दहन
Holi Bonfire Udaipur.jpg
प्रकार हिन्दू,
उत्सव होली के एक दिन पूर्व
आरम्भ फाल्गुन पूर्णिमा
तिथि मार्च
समान पर्व होली

होलिका दहन, हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है।[१][२]

कथा

हिरण्यकशिपु का ज्येष्ठ पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के लाख कहने के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता रहा। दैत्य पुत्र होने के बावजूद नारद मुनि की शिक्षा के परिणामस्वरूप प्रह्लाद महान नारायण भक्त बना। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परन्तु भगवान नारायण स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। ।[३]दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका जल गई। इस प्रकार हिन्दुओं के कई अन्य पर्वों की भाँति होलिका-दहन भी बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।[४]

सन्दर्भ

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