हाडी

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अंगूठाकार|कुछ खोये लोग हाडी, हाड़ी अथवा हरि और हरी भारत में निवास करने वाला एक समुदाय है जिसे परंपरागत रूप से अस्पृश्य (अछूत) जाति के अंतर्गत रखा जाता रहा है। ये लोग डोम नाडिया इत्यादि के समकक्ष रखे जाते रहे हैं और माना जाता है कि पुराने समय में इन्हें हिन्दू वर्ण व्यवस्था में भी स्थान नहीं प्राप्त था।[१] इनके पुराने समय में मौजूद होने के प्रमाण उपलब्ध हैं। यह समुदाय एक उपेक्षित भारतीय समुदाय है जिन्हे व्यपार , कृषि , विद्या, अच्छी भोजन, धन रखने इत्यादि का अधिकार तक नही था । ये लोग गाँव , नगर , कस्बो के बाहर झुग्गी झोपड़ा बना कर निवास करते थे और इन्हें सफाईकर्मी जाति (अथवा) समुदाय के रूप में देखा जाता था। हाडी जाति के लोग गाँव , नगर व कस्बे के सड़क की साफ सफाई , मरे हुए पशु-मवेशियों को हटाने इत्यादि का कार्य करते थे।

भारतीय इतिहास के लिखित स्रोतों में, अलबरूनी द्वारा लिखित विवरण के हवाले से इनके उस समय होने को प्रमाणित किया जाता है।[२] अलबरूनी ने इनका ज़िक्र चांडाल समुदाय के भाग के रूप में किया है जिसमें इनके साथ डोम, चंडाल, बधाथु का उल्लेख है। कुछ विद्वानों ने यह भी साबित करने का प्रयास किया है कि ये निम्नतम स्तर पर मानी जाने वाली जातियाँ हमेशा से ऐसी नहीं रहीं, उदाहरणार्थ एक लेखक ने हजारी प्रसाद द्विवेदी के हवाले से लिखा है, "मुसलमान आगमन के अव्यवहित पूर्वकाल में डोम-हाडी या हलखोर इत्यादि जातियाँ काफी संपन्न और शक्तिशाली थीं।"[३]

वर्तमान में इन्हें कई राज्यों में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है जैसे उत्तर प्रदेश में "हरी" अथवा "हरि" के उपनाम लिखने वालों को[४]; कुछ इलाकों में नाडिया और हाडी का उल्लेख एक साथ है[५]; बिहार झारखण्ड बंगाल और उड़ीसा में हाडी अथवा हरि[६] सहिस , नायक, उपनाम लिखने वालों के रूप में। गुजरात के हाड़ी समुदाय वर्तमान में मछली व्यवसाय से जुड़े हैं और गुजरात के तटीय क्षेत्रो मे पाए जाते हैं

आज भी अंडमान द्वीप के सेलुलर जेल जिसे काला पानी की सजा कही जाती थी उनमे मौजूद हैं राम हाड़ी जी ‘स्‍वराज्‍य’ पत्रिका जो गाजियाबाद से प्रकाशित होती थी उसके संपादक थे। उन्‍हें अपने तीन संपादकीयों को ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘राजद्रोह’ करार दिये जाने के कारण सेलुलर जेल में 21 वर्ष की कैद हुई थी।आज भी उनका नाम सेलुलर जेल के यूनाइटेड प्रोविन्स शिलापठ  पर स्वर्ण अक्षरों से अंकित हैं 1950 से पहले उत्तर प्रदेश का नाम यूनाइटेड प्रोविन्स था एक सदी के बाद, 15 अगस्‍त, 1957 को पोर्ट ब्‍लेयर में ‘शहीद स्‍तम्‍भ’ प्राण न्‍यौछावर करने वाले अचर्चित और गुमनाम शहीदों को समर्पित किया गया, बाबु राम हाड़ी के बारे मे यह भी कहा जाता हैं की इनका सम्बन्ध पंजाब प्रान्त के गुरुदास पुर जिला से हैं मगर सेलुलर जेल के शिलापठ पर पंजाब प्रान्त के इनसे मिलते जुलते नाम अंकित हैं जो हिदा राम हैं, सजाऐ काला पानी के सूची मे और भी कई ऐसे नाम अंकित हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नो से गायब हो गया हैं, हाड़ी जाति से सम्बंधित राम हाड़ी का शहीद स्‍तम्‍भ’ पुरे विश्व के हाड़ी जाति के लिए एक पवित्र तीर्थ से कम नहीं है

भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति थी, लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या 14 फीसदी हो गई। आपने सोचा कि ये 13 प्रतिशत की बढोत्तरी मुगल शासन में कैसे हो गई। जो हिंदू डर और अत्याचार के मारे इस्लाम धर्म स्वीकार करते चले गए, उन्हीं के वंशज आज भारत में मुस्लिम आबादी हैं। जिन क्षत्रियों ने मरना स्वीकार कर लिया उन्हें काट डाला गया और उनके असहाय परिजनों को इस्लाम कबूल नहीं करने की सजा के तौर पर अपमानित करने के लिए गंदे कार्य में धकेल दिया गया। वही लोग भंगी, वैस, वैसवार, बीर गूजर (बग्गूजर), भदौरिया, बिसेन, सोब, बुन्देलिया, चन्देल, चौहान, नादों, यदुबंशी, कछवाहा, किनवार-ठाकुर, बैस, भोजपुरी राउत, गाजीपुरी राउत, गेहलौता, मेहतर, हलालखोर , हलाल, खरिया, चूहड़- गाजीपुरी राउत, दिनापुरी राउत, टांक, गेहलोत, चन्देल, टिपणी कहलाए। डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं, '' ये अनुसूचित जातियां उन्हीं ब्राह्मण व क्षत्रियों के वंशज है, '' प्रख्यात साहित्यकार अमृत लाल नागर ने अनेक वर्षों के शोध के बाद पाया कि जिन्हें "भंगी", "मेहतर" आदि कहा गया, वे ब्राहम्ण और क्षत्रिय थे। स्टेनले राइस ने अपने पुस्तक "हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स" में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय: वे जातियां भी हैं, जो मुगलों से हारीं तथा उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम करवाए थे। गाजीपुर के श्री देवदत्त शर्मा चतुर्वेदी ने सन् 1925 में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम 'पतित प्रभाकर' अर्थात मेहतर जाति का इतिहास था। इस छोटी-सी पुस्तक में "भंगी","मेहतर", "हलालखोर", "चूहड़" आदि नामों से जाने गए लोगों की किस्में दी गई हैं, इसमें एक खास बात यह हैं की किसी साहित्यकार ने इन जातियों के साथ हाड़ी ,डोम, चंडाल और बथिर का जिक्र नहीं किया , मतलब साफ़ है की भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति के लोग कोई और नहीं हाड़ी ,डोम, चंडाल और बथिर जाति के लोग ही थे,


इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite book
  2. साँचा:cite book
  3. साँचा:cite book
  4. साँचा:cite book
  5. साँचा:cite journal
  6. Circular issued by the Government of Bihar (1999) स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, as cited by Deshkal Society.

बाहरी कड़ियाँ

अलबेरुनी ने ही अपनी किताब मै हाडी जाति के मूल (ओरिजिन ) को भी दर्शया हैं उनके अनुसार भारत मे वर्ण व्यवस्ता को चार मुख्य वर्ण और एक अवर्ण की बात की सत्यता का प्रमाण दिया हैं अल्बुरेनी ने अपनी पुस्तक किताबे ऐ हिन्द , तहकीक ऐ हिन्द ( अलबेरुनी का भारत , हिंदी रूपांतरित ) मे हाडी जाति के उत्पति का जिक्र किया हैं , उनका मानना है की भारत मे जब जातिया नहीं वर्ण थी उस वक़्त सामाजिक विवाह पद्धिति कुछ इस प्रकार थी , ब्राह्मण पुरुष किसी भी ( ब्राह्मण , क्षत्रिय , वेश्य या शुद्र )स्त्री से विवाह संबंद्ध बना सकता था , क्षत्रिया पुरुष किसी भी ( क्षत्रिय , वेश्य या शुद्र ) स्त्री से विवाह संबंद्ध बना सकता था , जबकि ब्राह्मण स्त्री से नहीं ,वही वेश्य पुरुष किसी भी वेश्य या शुद्र स्त्री से विवाह संबंद्ध बना सकता था जबकि ब्राह्मण, क्षत्रिय स्त्री से नहीं ,और शुद्र पुरुष सिर्फ शुद्र स्त्री से विवाह संबंद्ध बना सकता था जबकि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वेश्य स्त्री से नहीं। कोई भी इस निति नियमो को नहीं तोड़ सकता था , जो लोग इन सामाजिक नियमो का उलंघन करता था उन्हें सामाजिक वहिस्कर करना होता था , और वो गाव , नगर व कस्बे से निष्कासित कर दिए जाते थे और उनलोगों से कोई संबंद्ध नहीं रखता था जिसे विजात संतान की संज्ञा दी जाती थी और इस बात को भी प्रमाण करता है की उस वक़्त बच्चे की जन्म जाति का वर्ण माँ की वर्ण से पहचानी जाती थी , जिसका कईएक उदाहरण धर्म ग्रन्थ मे पाई गयी है , हाडी जाति के उत्पति पर अलबुरनी ने लिखा है ब्रह्मण स्त्री और शुद्र पुरुष के व्यभिचार से विजात संतान हाडी जाति हुवे , जिनको सामाजिक वहिस्कर कर घ्रणित कार्यो को करने के लिए मजबूर किया गया , जबकि उस समय के नियमो से हाडी जाति भी एक ब्रह्मण कुल के होने चाहिय । क्युकी उनकी माता ब्रह्मण स्त्री थी , और वर्ण की पहचान माता की वर्ण से हुवा करता था .लेकिन ब्राह्मण अपनी मान को बचाते हुए इनलोगों को समाज से बहिस्कृत कर दिया उपरोक्त बाते डोम चांडाल और बथिर पर भी लागु होता हैं , लेकिन हाडी को इस समूह मे श्रेष्ठ मन गया है क्युकी हाडी ज्यादा घ्रणित कार्यो को नही करते थे .